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Editorial: 2023 में वैश्विक व्यापार में 1.2% की गिरावट…तैयार रहने की जरूरत

अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्विता ने दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच कारोबारी रिश्ते को कमजोर किया है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- April 24, 2024 | 9:34 PM IST

वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार में 1.2 फीसदी की गिरावट के बाद दुनिया भर में वस्तु व्यापार का आकार इस वर्ष 2.6 फीसदी और अगले वर्ष 3.3 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। इसके बावजूद कारोबारी समूहों के बीच गहराती समस्याओं और बढ़ते तनाव ने सीमापार के व्यापारिक रिश्तों को जोखिम में डाल दिया है।

बहुपक्षीय संस्थाओं मसलन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने महामारी के बाद की दुनिया में व्यापारिक प्रवाह के प्रतिबंधों को उचित ही रेखांकित करते हुए कहा है कि आर्थिक खुलेपन के लाभ को बचाने की आवश्यकता है।

आईएमएफ के ताजा विश्व आर्थिक अनुमान में कहा गया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से विभिन्न देश खुद को अपने-अपने कारोबारी समूह के देशों के साथ सहज पा रहे हैं बजाय कि राजनीतिक दृष्टि से दूर स्थित कारोबारी समूहों के।

जो देश एक ही व्यापारिक समूह में नहीं हैं उनके बीच के कुल वाणिज्यिक व्यापार में 2.4 फीसदी की कमी आई है। इससे संकेत मिलता है कि व्यापारिक प्रवाह बहुत हद तक विभिन्न देशों की आर्थिक स्थिति और उनके संभावित कारोबारी साझेदारों से तय होती है। रणनीतिक क्षेत्रों में व्यापार को लेकर यह रिश्ता और अधिक मजबूत है मसलन मशीनरी और केमिकल आदि।

अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्विता ने दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच कारोबारी रिश्ते को कमजोर किया है। इसके परिणामस्वरूप पश्चिम के देश ऐसी नीतियां अपना रहे हैं जहां वे मित्र राष्ट्रों और करीब स्थिति देशों की मदद लेकर अपने कारोबार का जोखिम कम कर रहे हैं जबकि चीन आत्मनिर्भरता की बात कर रहा है।

उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों और भारत जैसे विकासशील देश इस मामले में जो भी रुख अपनाएंगे वह अहम होगा। निर्गुट देशों के लिए तथा ऐसे देशों के लिए जो किसी कारोबारी समूह से नहीं जुड़े हैं, हालात और अधिक मुश्किल हो सकते हैं।

पनामा और स्वेज नहर जैसे दो अहम नौवहन मार्गों का बाधित होना कारोबारी संभावना के लिए जोखिम बढ़ाने वाला है। पनामा नहर में स्वच्छ जल की कमी तथा नौवहन यातायात को लाल सागर से दूर किए जाने से आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो रही हैं तथा लागत बढ़ रही है। इस तरह का विभाजन केवल वस्तु व्यापार में नहीं हो रहा है बल्कि सेवा व्यापार और डेटा प्रवाह नीतियों में भी इसे महसूस किया जा सकता है।

यह बात भारत जैसे देशों को प्रभावित कर सकती है जो सेवा क्षेत्र में महारत रखते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका अपने एशियाई कारोबारी साझेदारों खासकर भारत से सूचना, संचार और तकनीकी सेवाओं में जो आयात करता है वह 2018 के 45.1 फीसदी से घटकर 2023 में 32.6 फीसदी रह गया।

इसी अवधि में उत्तरी अमेरिकी कारोबारी साझेदारों से अमेरिका का आयात 15.7 फीसदी से बढ़कर 23 फीसदी हो गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि वह अपने करीब स्थित देशों के साथ कारोबार बढ़ा रहा है। व्यापार का इस प्रकार विभाजित होना खतरनाक है क्योंकि इससे प्रतिस्पर्धा में कमी आने और विशेषज्ञता की कमी के कारण किफायत नहीं रहने के हालात बनने का खतरा होता है।

डब्ल्यूटीओ का एक अध्ययन बताता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस प्रकार भूराजनीतिक धड़ों में बंट जाने से लंबी अवधि में दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में पांच फीसदी तक की कमी आ सकती है। वहीं डेटा प्रवाह नीतियों का भूराजनीतिक आधार पर बंटना वास्तविक वैश्विक निर्यात में 1.8 फीसदी और वास्तविक जीडीपी में एक फीसदी की कमी ला सकता है।

इन कारोबारी बाधाओं के कारण पोर्टफोलियो और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवक में कमी उभरते बाजारों में पूंजी के एकत्रीकरण में कमी की वजह बन सकता है। वैश्विक कारोबार में इस उभरते रुझान के निकट भविष्य में समाप्त होने की संभावना नहीं दिख रही है। ऐसे में भारत की व्यापार नीति को वैश्विक बाजार में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की तैयारी रखनी होगी।

First Published : April 24, 2024 | 9:28 PM IST