केंद्र सरकार का थिंक टैंक नीति आयोग भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 25 वर्ष की रूपरेखा तैयार कर रहा है। इस समाचार पत्र में सोमवार को प्रकाशित खबर के मुताबिक इसका लक्ष्य भारत को 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का है।
इसके दृष्टिपत्र में अनुमान जताया गया है कि भारत 2030 तक 6.69 लाख करोड़ डॉलर, 2040 तक 16.13 लाख करोड़ डॉलर और 2047 तक 29.02 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। यह आंकड़ा डॉलर के वर्तमान संदर्भों के मुताबिक है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार करीब 3.73 लाख करोड़ डॉलर रहेगा। ऐसे में उल्लिखित लक्ष्य को हासिल करने के लिए डॉलर के संदर्भ में 2047 तक सालाना 9 फीसदी वृद्धि हासिल करनी होगी।
हालांकि इस योजना का ब्योरा तभी सामने आ सकेगा जब यह दस्तावेज सार्वजनिक किया जाएगा, लेकिन यह लक्ष्य निश्चित रूप से महत्त्वाकांक्षी है।
निश्चित तौर पर थोड़ा महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने में कोई दिक्कत नहीं है। हकीकत यह है कि उनकी मदद से नीतिगत परिवर्तनों को सही दिशा में आगे ले जाने में मदद मिल सकती है।
नीति आयोग जिस नीतिगत पथ पर चल रहा है और जिसके लिए वह अन्य सरकारी विभागों के साथ काम कर रहा है और शायद जिसके लिए वह स्वतंत्र और निजी क्षेत्र के अर्थशास्त्र विशेषज्ञों से भी मशविरा करेगा, उस नीति को देखना भी दिलचस्प होगा।
चूंकि बीते दशक में डॉलर के वर्तमान संदर्भ में भारत की आर्थिक वृद्धि 7 फीसदी से थोड़ा अधिक रही है, ऐसे में अगले 25 वर्षों तक वृद्धि दर में दो फीसदी या इससे कुछ अधिक का इजाफा करना आसान नहीं होगा।
भारत को कई चुनौतियों का सामना करना होगा और दृष्टिपत्र में उनको रेखांकित किया जाना बेहतर होगा। यदि ऐसा किया गया तो सरकार को अपनी नीतियों को सही दिशा में ले जाने में मदद मिलेगी।
उदाहरण के लिए वैश्विक वृद्धि निकट भविष्य में अपेक्षा से कमतर रह सकती है। कुछ अर्थशास्त्री यह भी मानते हैं कि वैश्विक ब्याज दरें, खासतौर पर अमेरिका में ढांचागत कारकों के चलते लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रहेंगी। ऐसे हालात में वृद्धि दर को लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनाए रखना मुश्किल होगा।
सरकार ने महामारी के बाद पूंजीगत व्यय में काफी इजाफा किया है। इससे बुनियादी ढांचे की स्थिति सुधारने में मदद भी मिली है। बहरहाल, इसके चलते राजकोषीय सुदृढ़ीकरण में देरी हुई है।
निरंतर उच्च बजट घाटा और बढ़ा हुआ सार्वजनिक ऋण सरकार की क्षमता को बाधित कर सकता है और संभव है कि वह आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करने की स्थिति में न हो। इससे वित्तीय स्थिरता को जोखिम बढ़ सकता है। इसके अलावा ऊंची दीर्घकालिक वृद्धि हासिल करने के लिए भारत को विनिर्माण उत्पादन बढ़ाना होगा।
अतीत में तमाम प्रयासों के बावजूद भारत विनिर्माण के स्तर को वांछित स्तर तक नहीं पहुंचा सका है। यह बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण रोजगार तैयार करने की राह में सबसे बड़ी बाधा है। यदि ऐसा किया जा सका तो खपत मांग बढ़ाने और लंबे समय तक टिकाऊ वृद्धि हासिल करने में मदद मिलेगी।
विनिर्माण में कमी ने भारत के निर्यात को भी प्रभावित किया है जो वृद्धि का बड़ा वाहक हो सकता है। यह देखना उचित होगा कि व्यापार के संदर्भ में दृष्टिपत्र क्या कहता है। भारत ने बड़े उत्पादकों को राजकोषीय प्रोत्साहन के साथ उच्च टैरिफ की रणनीति अपनाई है जो शायद दीर्घावधि में कारगर साबित न हो।
उल्लेखनीय है कि आंकड़ों के मुताबिक देखें तो 2047 में तीन लाख करोड़ डॉलर से अधिक का व्यापार घाटा हो सकता है। उसकी भरपाई करना मुश्किल हो सकता है। उच्च वृद्धि हासिल करने के लिए भारत को शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना होगा। केवल एक कुशल श्रम शक्ति ही लंबी अवधि में वृद्धि का वाहक बन सकती है।
इसके साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा में उल्लेखनीय निवेश की आवश्यकता होगी। ऐसा करके आयात पर निर्भरता कम होगी और आर्थिक वृद्धि अधिक टिकाऊ बन सकेगी। चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की राह में कई चुनौतियां आएंगी इसलिए नीति निर्माताओं के लिए यह बेहतर होगा कि वह समय-समय पर प्रदर्शन की समीक्षा करें और जरूरी समायोजन करें।