वित्तीय बाजार इस अनुमान पर काम कर रहे हैं कि निकट भविष्य में मुद्रा की लागत ऊंची बनी रह सकती है। सोमवार को 10 वर्षीय अमेरिकी सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल मनोवैज्ञानिक महत्त्व वाले 5 फीसदी के स्तर को पार कर गया।
ऐसा 16 वर्ष बाद हुआ। इसकी वजह से दुनिया भर के बॉन्ड और इक्विटी बाजारों में गिरावट आई। भारतीय शेयर बाजारों की बात करें तो बेंचमार्क बीएसई सेंसेक्स में करीब 1.3 फीसदी की गिरावट आई।
बॉन्ड प्रतिफल में इजाफे के लिए फिलहाल इस नजरिये को वजह माना जा सकता है कि अमेरिका में नीतिगत ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रहेंगी।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल और अन्य नीति निर्माताओं ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से इस बात को रेखांकित किया है कि ब्याज दरों को ऊंचे स्तर पर रखा जाएगा ताकि मुद्रास्फीति को टिकाऊ ढंग से दो फीसदी के आसपास रखा जा सके।
हालांकि वित्तीय बाजारों का अनुमान है कि फेडरल रिजर्व अगले सप्ताह होने वाली बैठक में नीतिगत दरों को स्थिर रखेगा। यद्यपि बाजार मौजूदा चक्र में कम से कम एक और बार दरों में इजाफे की संभावनाओं को ध्यान में रखकर चल रहा है।
बहरहाल, फेडरल रिजर्व की तात्कालिक नीतिगत अनिवार्यताओं से परे देखें तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था ढांचागत बदलावों से गुजर रही है जो लंबे समय तक मुद्रा की लागत को ऊंचा बनाए रख सकते हैं।
उदाहरण के लिए अमेरिका में बजट घाटा हाल के दशकों की तुलना में बढ़ा है। इसकी वजह से वित्तीय बचत की मांग बढ़ी है। यह बात भी मुद्रा की लागत को टिकाऊ ढंग से बढ़ा सकती है। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि चीन जैसे देशों में अमेरिकी बॉन्ड आदि की मांग कई वजहों से कम हुई है।
ये देश वर्षों से अपनी अतिरिक्त बचत को अमेरिकी राजकोष में डाल रहे थे। यह ऐसे समय पर हुआ है जब फेड अपनी बैलेंस शीट का आकार कम कर रहा है। ये सारी बातें मिलकर प्रतिफल पर दबाव बनाएंगी। सरकार द्वारा बचत की उच्च मांग के साथ कुल बचत की आपूर्ति और मांग में भी काफी बदलाव आ रहा है।
हालिया दशकों में ब्याज दरों में कमी किन वजहों से आई और भविष्य में हालात कैसे होंगे इसके आकलन के लिए ब्लूमबर्ग के अर्थशास्त्रियों ने आधी सदी के आंकड़ों का अध्ययन किया और अनुमान लगाया कि मुद्रास्फीति का समायोजन करने के बाद 10 वर्ष के अमेरिकी सरकारी बॉन्ड के लिए स्वाभाविक ब्याज दर 1980 के 5 फीसदी से गिरकर पिछले दशक में दो फीसदी पर आ गई।
स्वाभाविक दर से तात्पर्य प्राय: ऐसी ब्याज दर से होता है जो बचत और निवेश के बीच संतुलन कायम करती है। बढ़े हुए बजट घाटे समेत कई कारकों पर आधारित ब्लूमबर्ग मॉडल यह दिखाता है कि स्वाभाविक दर में एक फीसदी का इजाफा होगा और वह 2010 के दशक के 1.7 फीसदी से बढ़कर 2030 के दशक में 2.7 फीसदी तक हो जाएगी। यानी 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल 4.5 से 5 फीसदी के दरमियान रहेगा और जोखिम ऊपर की ओर रहेगा।
अगर सबकुछ अनुमान के मुताबिक घटित हुआ तो आने वाले वर्ष बीते वर्षों की तुलना में अलग होंगे। अमेरिका में व्यवस्थागत दृष्टि से ऊंची ब्याज दर और शायद अन्य विकसित देशों में भी उच्च ब्याज दर वैश्विक फंड प्रवाह को प्रभावित करेगी।
पूंजी की बढ़ी हुई लागत न केवल वैश्विक वृद्धि की संभावनाओं को प्रभावित करेगी बल्कि कई विकासशील देशों के लिए वित्तीय मदद और नकदी संबंधी जोखिम भी बढ़ाएगी। भारत जैसे देश के लिए यह जरूरी है कि वह वृहद आर्थिक स्थिरता के जोखिम को हल करे और घरेलू बचत बढ़ाए।