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चुनावी साल में बजट की प्राथमिकताएं और चुनौतियां…

कोविड के बाद के वर्षों में यानी 2022-23 और 2023-24 में मजबूत राजस्व वृद्धि के बावजूद सरकार को अधिक व्यय करना पड़ा और उसका राजकोषीय घाटा इन सालों में केवल 0.8 फीसदी कम हुआ।

Last Updated- January 11, 2024 | 9:46 PM IST
Budget 2024

सीमित राजकोषीय गुंजाइश के साथ आवश्यकता यह है कि बजट में सत्ताधारी दल की हालिया चुनावी जीतों का लाभ लिया जाए। इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डाल रहे हैं ए के भट्टाचार्य

वर्ष 2024-24 के अंतरिम बजट की प्रस्तुति की तैयारियों के बीच दो अहम मसले जांच के दायरे में हैं। एक का संबंध उस राजकोषीय गुंजाइश और आकार से है जो फिलहाल केंद्र सरकार के पास है और जिसके जरिये वह अगले दो वर्षों तक व्यय की पूर्ति कर सकती है।

दूसरा मुद्दा आगामी आम चुनावों में आवश्यक चुनावी लाभ हासिल करने के लिए किसी नई व्यय योजना की घोषणा करने को लेकर सरकार की राजनीतिक अनिवार्यता से संबंधित है। ऐसे में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना पहला अंतरिम बजट पेश करने की तैयारी कर रही हैं, इन दोनों मुद्दों का आकलन करना उचित होगा। सरकार की राजकोषीय सुदृढ़ीकरण रणनीति में वृद्धि के अनुमान अहम होते हैं।

देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के पहले अग्रिम अनुमान (एफएई) गत सप्ताह जारी किए गए। इनमें कहा गया कि 2023-24 में अर्थव्यवस्था का नॉमिनल आकार 296.58 लाख करोड़ रुपये रहेगा यानी इसमें 8.9 फीसदी की वृद्धि दर्ज की जाएगी। यह तीव्र धीमापन था।

2022-23 में अर्थव्यवस्था का नॉमिनल आकार 16 फीसदी बढ़ा था परंतु 2023-24 में नॉमिनल जीडीपी में अपेक्षाकृत कम इजाफे के बावजूद केंद्र का शुद्ध कर राजस्व अप्रैल-नवंबर 2023 में 17 फीसदी से अधिक बढ़ा। यानी कर प्राप्ति में सुधार हुआ। इतना ही नहीं ऐसा लगता है कि 2023-24 में कर राजस्व में 11 फीसदी की विशुद्ध वृद्धि का लक्ष्य भी पार हो जाएगा।

व्यय की बात करें तो केंद्र का राजस्व तथा पूंजीगत व्यय दोनों हाल के महीनों में कम हुए हैं। 2023-24 की पहली छमाही में राजस्व व्यय करीब 10 फीसदी बढ़ा। परंतु नवंबर के अंत तक यह वृद्धि 3.5 फीसदी रह गई।

स्पष्ट है कि राजस्व व्यय वृद्धि को धीरे-धीरे पूरे वर्ष के 1.4 फीसदी के लक्ष्य के अनुरूप किया जा रहा है। 2023-24 की पहली छमाही में पूंजीगत व्यय में भी 43 फीसदी का इजाफा हुआ लेकिन अप्रैल-नवंबर में यह घटकर 31 फीसदी रह गया। यह पूरे वर्ष के लिए अनुमानित 36 फीसदी से भी कम है।

हालांकि वर्ष के अंतिम तीन महीनों में व्यय का अतिरिक्त दबाव होगा क्योंकि मुफ्त खाद्यान्न योजना का विस्तार किया गया है तथा कुछ अन्य कल्याण कार्यक्रम चल रहे हैं। ऐसे में यह मानने की वजह है कि राजकोषीय घाटे के लिए जीडीपी के 5.9 फीसदी का लक्ष्य चालू वर्ष में हासिल हो जाएगा।

गैर कर राजस्व बजट अनुमानों से अधिक होगा और उसके माध्यम से सरकार की विनिवेश प्राप्तियों की कमी की भरपाई की जा सकती है। 2023-24 में 8.9 फीसदी की कम नॉमिनल वृद्धि दर की तुलना अगर 10.5 फीसदी के बजट वादे से की जाए तो सरकारी वित्त पर कुछ अतिरिक्त दबाव आ सकता है लेकिन राजस्व में सुधार तथा धीमी व्यय वृ़द्धि को देखें तो घोषित राजकोषीय घाटा लक्ष्य हासिल होने लायक दिखता है।

जब 2023-24 में 8.9 फीसदी की कम नॉमिनल वृद्धि दर बजट निर्माताओं के लिए चिंता पैदा करेगी और 2024-25 के अनुमानों पर इसका असर होगा। याद रहे कि सीतारमण ने बीते कुछ वर्षों में सरकारी व्यय और राजस्व वृद्धि को लेकर सराहनीय नजरिया दिखाया है और साथ ही सभी व्ययों को बजट में शामिल करके उल्लेखनीय पारदर्शिता दिखाई है।

पहले इसे बजट गणनाओं से बाहर रखा जाता था। बीते कुछ वर्षों में बजट से इतर ऐसे व्यय की मदद नहीं ली गई लेकिन अब अपेक्षाकृत कम नॉमिनल जीडीपी वृद्धि अनुमान बाधा बन सकता है। 2019-20 के अंतरिम बजट में 2018-19 में जीडीपी के 12 फीसदी से अधिक के बेहतर वृद्धि अनुमान से मदद मिली थी। उसी आंकड़े के कारण पांच साल पहले अंतरिम बजट में यह माना गया था कि 2019-20 में नॉमिनल आर्थिक वृद्धि 11.5 फीसदी रहेगी।

यकीनन 2019-20 के पूर्ण बजट ने नॉमिनल आर्थिक वृद्धि अनुमान को बढ़ाकर 12 फीसदी किया था लेकिन दूसरे अग्रिम अनुमान में जीडीपी वृद्धि दर को कम करके 11.5 फीसदी कर दिया गया। 2018-19 और 2019-20 में वास्तविक नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर क्रमश: 10.6 फीसदी और 6.4 फीसदी थी। ऐसे अति आशावाद का परिणाम 2018-19 तथा 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे के अंतिम आंकड़ों में नजर आया।

दोनों वर्षों में प्रत्येक के लिए 3.3 फीसदी के बजट अनुमान के विरुद्ध वास्तविक घाटा क्रमश: 3.4 फीसदी और 4.6 फीसदी रहा। यह फिसलन तब भी आई जबकि बजट आंकड़ों में बजटेत्तर व्यय की गलत परंपरा का इस्तेमाल किया गया।

आज का वित्त मंत्रालय 2019 से काफी अलग है। ऐसे में 2023-24 में 8.9 फीसदी की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का संकेत दे रहा एफएई स्वाभाविक रूप से मौजूदा वित्त मंत्रालय को 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़े सांकेतिक आकार के अनुमान से रोकेगा। हालिया रिपोर्ट सुझाती हैं कि वित्त मंत्रालय 2024-25 में 10.5 फीसदी की नॉमिनल वृद्धि दर पर टिक सकता है।

बेहतर कर प्राप्तियां 2024-25 के लिए बेहतर दो अंकों की राजस्व वृद्धि का अनुमान पेश करने में केंद्र सरकार की मदद कर सकती हैं लेकिन शायद पूंजीगत व्यय बढ़ाने तथा राजकोषीय घाटा कम करने में इससे मदद न मिले। यदि केंद्र को अपने घाटे को चालू वर्ष में जीडीपी के 5.9 फीसदी और 2025-26 में 4.5 फीसदी तक लाना है तो राजकोषीय गुंजाइश सीमित है। अगले दो वर्षों में 1.4 फीसदी की कमी चुनौतीपूर्ण होगी।

ध्यान रहे कि कोविड के बाद के वर्षों में यानी 2022-23 और 2023-24 में मजबूत राजस्व वृद्धि के बावजूद सरकार को अधिक व्यय करना पड़ा और उसका राजकोषीय घाटा इन सालों में केवल 0.8 फीसदी कम हुआ।

आने वाले दिनों में चुनौती और जटिल हो सकती है क्योंकि मई 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या राजनीतिक नेतृत्व वित्त मंत्रालय पर दबाव बनाएगा कि कि वह चुनाव के पहले ढील बरते तथा अंतरिम बजट में अधिक व्यय आवंटन तथा कर राहत प्रदान करे।

बहरहाल, वित्त मंत्री ने दोहराया है कि उद्योग जगत को अंतरिम बजट में किसी बड़ी घोषणा की आशा नहीं करनी चाहिए तथा हालिया विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी दल की जीत से यही संकेत मिलता है कि अधिक कर रियायतों या कल्याण कार्यक्रमों पर ज्यादा व्यय की चुनावी अनिवार्यता 2019 के आम चुनाव की तुलना में कम जाहिर हो सकती हैं। ऐसे में 2024-25 के लिए राजकोषीय विवेक वाले अंतरिम बजट का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

यदि ऐसा होता है तो सत्ताधारी दल की बढ़ती राजनीतिक पूंजी कम से कम आने वाले दिनों में मजबूत आर्थिक सुधार का आधार बन सकती है। रियायतों तथा लोकलुभावन योजनाओं के कम बोझ के कारण 2024-25 का पूर्ण बजट जो चुनावों के बाद पेश किया जाएगा, वह मौजूदा बेहतर कर प्राप्तियों पर आधारित हो सकता है। इसके लिए कर दायरा बढ़ाया जा सकता है तथा गैर कर राजस्व आवक की गति तेज की जा सकती है। इस दौरान परिसंपत्तियों से धन जुटाने और तथा निजीकरण पर जोर देना होगा।

First Published - January 11, 2024 | 9:42 PM IST

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