मशहूर बल्लेबाज रहे राहुल द्रविड़ ने पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए विश्व कप 2023 फाइनल में भारत की हार के लिए अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में खराब और धीमी पिच को जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने कहा कि टीम प्रबंधन को जैसी उम्मीद थी उस हिसाब से पिच से वह टर्न नहीं मिला और यही कारण है कि भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को चुनौती देने में नाकामयाब रही।
जब बल्लेबाजी की बात आती है तब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास जानते हैं कि अलग-अलग पिच पर कैसे खेलना है।
क्रिकेट प्रेमी दास ने अक्टूबर की मौद्रिक नीति बैठक के दौरान कहा था, ‘यह घुमावदार पिच है और हम अपने शॉट सावधानी से खेलेंगे।’
उन्होंने जो घोषणाएं कीं, वह आक्रामकता से भरपूर, लेकिन सतर्कता वाली नीति थी। पिछले पखवाड़े जब मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक हुई तब हालात काफी अनुकूल थे, लेकिन दास ने अपने सतर्कता भरे रवैये में कोई कमी नहीं की। इसीलिए नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किए गए।
लगातार पांचवीं बैठक में रीपो दर 6.5 प्रतिशत पर बनाए रखा गया और इसमें कोई कटौती नहीं की गई। इसकी वजह से ही चालू वर्ष के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के अनुमान को बढ़ाया गया।
यह बढ़ोतरी अपने आप में कोई हैरानी की बात नहीं थी, लेकिन मार्जिन 7 प्रतिशत है जो केंद्रीय बैंक द्वारा अप्रैल से कहे जा रहे आंकड़े से आधा प्रतिशत अधिक है। इसका मतलब यह है कि पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 7.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने के बाद जीडीपी में अगली दो तिमाहियों में औसतन 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होगी, जबकि पहले आरबीआई ने इसके क्रमश: 6 प्रतिशत और 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था।
RBI ने वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही के लिए भी वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को 6.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है (दूसरी और तीसरी तिमाही में क्रमिक गिरावट क्रमशः 6.5 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत है)। यह विभिन्न एजेंसियों के सभी अनुमानों से कहीं अधिक है।
उदाहरण के तौर पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने चालू वर्ष में भारत की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है और विश्व बैंक का अनुमान भी यही है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी), एशियाई विकास बैंक और फिच रेटिंग्स का अनुमान भी समान ही है।
स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने भी अपने ग्लोबल क्रेडिट आउटलुक 2024 में मार्च 2024 में खत्म होने वाले वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। इस रेटिंग एजेंसी का कहना है कि अगले वित्त वर्ष (वर्ष 2024-25) में वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत पर बनी रहेगी जबकि अगले वित्त वर्ष में यह 6.9 प्रतिशत और वर्ष 2026-27 में 7 प्रतिशत हो जाएगी।
एक दूसरी वैश्विक रेटिंग एजेंसी, मूडीज ने कैलेंडर वर्ष 2023 में भारत की वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। इनमें से अधिकांश ने पिछले कुछ महीने में अपने पूर्वानुमान में संशोधन किया है लेकिन इनमें से किसी ने भी 7 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद नहीं की है।
जहां तक मुद्रास्फीति की बात है, आरबीआई के अनुमान में कोई बदलाव नहीं हुआ है। वित्त वर्ष 2024 के लिए यह 5.4 प्रतिशत के स्तर पर और तीसरी तिमाही में यह 5.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत के स्तर पर रहेगा। खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में सालाना आधार पर घटकर चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत पर आ गई जो सितंबर में 5.02 प्रतिशत थी।
यह तथाकथित बुनियादी या गैर-खाद्य, गैर-तेल मुद्रास्फीति के साथ-साथ ईंधन मुद्रास्फीति में व्यापक आधार पर होने वाली गिरावट से प्रेरित थी, हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट के कोई संकेत नहीं दिखे। जाहिर है, यह आंकड़ा नवंबर और दिसंबर में बहुत अधिक होगा।
अगले साल खुदरा मुद्रास्फीति अनुमानित तौर पर पहली तिमाही में 5.2 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 4 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 4.7 प्रतिशत रह सकता है। मुद्रास्फीति से जुड़े अपने लक्ष्य के कारण ही आरबीआई को नीतिगत दर में कटौती करने और यहां तक कि अपने रुख को तटस्थता में बदलने की कोई जल्दबाजी नहीं है।
नकदी प्रबंधन, नीतिगत कदमों के लिए महत्त्वपूर्ण बना हुआ है। हाल के दिनों में नकदी को लेकर सख्ती का रुख एमपीसी की अक्टूबर की बैठक में लगाए गए अनुमान की तुलना में काफी अधिक रही है। यही कारण है कि आरबीआई ने तथाकथित खुले बाजार संचालन (ओएमओ) में नीलामी के माध्यम से कोई सरकारी बॉन्ड बिक्री नहीं की है जिसका जिक्र पिछली नीतिगत बैठक में किया गया था।
दास ने ओएमओ बिक्री के खतरे की बात नहीं दोहराई लेकिन कहा कि आरबीआई नकदी प्रबंधन में सक्रियता दिखाएगा क्योंकि सरकारी खर्च के साथ नकदी का दबाव कम हो जाएगा।
क्रिकेट की तर्ज पर अगर बात करें तो आरबीआई के गवर्नर दास ने पांच साल के कार्यकाल में अलग और मुश्किल पिचों पर अपनी पारी खेली है।
सबसे पहले, उन्हें कोविड-19 महामारी और मंदी की चुनौतियों से दोचार होना पड़ा। ऐसे में उन्हें मौद्रिक नीति में काफी नरमी बरतनी पड़ी और ऋण भुगतान को टालने की पेशकश करनी पड़ी जिससे नीतिगत दर ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर (4 प्रतिशत) पर चली गई। इसके बाद अगली लड़ाई महंगाई की चुनौतियों का सामना करने और रुपये के मूल्यह्रास के खिलाफ थी।
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण तक दास का उद्देश्य वृद्धि की रफ्तार को बनाए रखने के लिए उदार रुख बनाए रखना था। लेकिन जब उन्होंने महसूस किया कि गेंद में घुमाव आ रहा है तब उन्होंने पहली बार मई 2022 में एमपीसी बैठक से पहले ही दरें बढ़ा दीं।
यह फैसला, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा अपनी नीतिगत दर में आधा प्रतिशत अंक की वृद्धि करने के 12 घंटे पहले किया गया था। फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में की गई बढ़ोतरी 22 वर्षों में सबसे अधिक थी जिसका मकसद अमेरिका में चार दशकों में सबसे ज्यादा महंगाई दर से निपटना था।
इस साल फरवरी में दरों में बढ़ोतरी का चक्र खत्म हो गया जिससे भारत की नीतिगत दर बढ़कर 6.5 प्रतिशत हो गई। उस वक्त से ही यह एक लंबा ठहराव दिख रहा है। हालांकि अर्थव्यवस्था वृद्धि की राह पर दिख रही है लेकिन मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। जैसा कि मैंने पहले ही लिखा है कि आरबीआई के अनुमान के अनुसार, यह वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही में फिर से बढ़ने से पहले दूसरी तिमाही में घटकर 4 प्रतिशत हो जाएगा।
यदि अन्य सभी मानक समान रहते हैं तब हम अगले साल सितंबर तिमाही में आरबीआई को अपना रुख बदलते हुए देख सकते हैं और इसके बाद दर में पहली कटौती हो सकती है। ऐसा लगता है कि दास को कोई जल्दी नहीं है। पांच साल के टेस्ट मैच में अच्छा खेलने के बाद वह हिट विकेट का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं।
31 अक्टूबर को बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई सम्मेलन में दास ने बैंकरों को द्रविड़ की तरह लंबी पारी खेलने की सलाह दी थी। वह खुद द्रविड़ की तरह बल्लेबाजी करते हैं और अच्छी बात यह है कि किसी भी खराब पिच से उनकी बल्लेबाजी प्रभावित नहीं होती।