शरद पवार के इस्तीफे के बाद सबकी निगाहें 5 मई को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेताओं की बैठक पर टिक गई हैं। इस बैठक में पार्टी के नेता पवार के इस्तीफे के बाद पैदा हुई स्थिति की विवेचना करेंगे। पवार ने राकांपा के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर सबको हैरत में डाल दिया है। हालांकि, उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की बात नहीं कही है। इस बीच, राकांपा में इस्तीफे का सिलसिला शुरू हो गया है। पार्टी के ठाणे से विधायक जीतेंद्र आव्हाड ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके साथ पार्टी की पूरी ठाणे इकाई ने इस्तीफा दे दिया है। अहवद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के लिए जाने जाते रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि पवार की पुत्री सुप्रिया सुले राकांपा की कमान संभालने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। यह बात कह कर उन्होंने संकेत दे दिया है कि वे सुले के खेमे में हैं और अजित पवार के पार्टी की कमान संभालने के पक्ष में नहीं हैं।
पवार के इस्तीफे के बाद अजित पवार ने स्थानीय मीडिया से कहा, ‘हमने शरद पवार को बताया है कि पार्टी के कार्यकर्ता उनके इस निर्णय से काफी परेशान हैं। पार्टी कार्यकर्ता चाहते हैं कि पवार अध्यक्ष पद पर बने रहें।‘ इस बीच, बुधवार को शरद पवार ने इस्तीफा वापस लेने के कोई संकेत नहीं दिए।
हालांकि राकांपा के सूत्रों ने मराठी में प्रकाशित शरद पवार की आत्मकथा के उन अंशों का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद सरकार गठन के लिए भाजपा और राकांपा के साथ आने की कोशिशें शुरू हुई थीं। पवार की तरफ से आधिकारिक तौर पर पहली बार यह स्वीकार किया गया था कि भाजपा और राकांपा के बीच सरकार गठन को लेकर बातचीत हुई थी। भाजपा महाराष्ट्र में 2019 में राकांपा के साथ चुनाव-उपरांत गठबंधन करने की इच्छुक थी, लेकिन पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा के साथ उनकी पार्टी का कोई समझौता नहीं हो सकता।
पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘भाजपा ने यह संभावना टटोलनी शुरू कर दी थी कि क्या राकांपा के साथ गठबंधन की कोई संभावना हो सकती है, लेकिन मैं इस प्रक्रिया में शामिल नहीं था। यह सिर्फ भाजपा की इच्छा थी और भाजपा के साथ कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई थी। लेकिन दोनों दलों के चुनिंदा नेताओं के बीच अनौपचारिक बातचीत हुई।‘उन्होंने कहा कि चूंकि, राकांपा की दिलचस्पी कम थी, इसलिए भाजपा के साथ नहीं जाने का फैसला लिया गया और भाजपा को ये साफ-साफ बताना जरूरी था। पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि नवंबर 2019 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात हुई थी।
पवार ने तब टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था कि उनके और मोदी के बीच क्या बातचीत हुई थी, क्योंकि राज्य में तब सरकार गठन पर अनिश्चितता की स्थिति थी और राकांपा, अविभाजित शिवसेना और कांग्रेस गठबंधन की बातचीत कर रहे थे। पवार ने अपनी पुस्तक में कहा, ‘मैंने मोदी से मुलाकात की और उन्हें स्पष्ट रूप बता दिया कि भाजपा और राकांपा के बीच कोई राजनीतिक समझौता नहीं हो सकता है।