अमेरिकी औषधि नियामक यूएसएफडीए ने हाल में चीन के एक एपीआई (ऐक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिऐंट्ïस) विनिर्माता को विनिर्माण संबंधी बुनियादी समस्याओं को लेकर फटकार लगाई है। इससे भारतीय औषधि कंपनियों को भी सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि एपीआई के लिए काफी हद तक उनकी निर्भरता चीन पर है। भारत 80 फीसदी से अधिक एपीआई चीन के विनिर्माताओं से आयात करता है और इनमें से अधिकांश एपीआई का इस्तेमाल एंटीबायोटिक्स और दर्दनिवारक दवा बनाने में किया जाता है।यूएसएफडीए ने एपीआई बनाने वाली चीन की कंपनी नोवैक्सिल वुग्जी फार्मास्युटिकल को उसके संयंत्र में विनिर्माण संबंधी बुनियादी समस्याओं को लेकर सख्त लहजे में चेतावनी पत्र जारी किया है। चेतावनी पत्र में कहा गया है, 'यूएस फूड ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के निरीक्षकों ने पाया कि संयंत्र ऐक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट्ïस (एपीआई) के विनिर्माण के लिए मौजूदा अच्छी विनिर्माण गतिविधियों (सीजीएमपी) से हटकर काम कर रहा है और तैयार औषधि के लिए कोड ऑफ फेडरल रेग्यूलेशन के टाइटल 21, भाग 210 और 211 के तहत सीजीएमपी नियमों का उल्लंघन कर रहा है। इससे आपके एपीआई और दवा उत्पाद को फेडरल फूड, ड्रग ऐंड कॉस्मेटिक ऐक्ट की धारा 501 (ए)(2)(बी) के तहत मिलावटी श्रेणी में रखा जा सकता है।'यूएसएफडीए ने यह चेतावनी पत्र 2013 में किए गए संयंत्र के निरीक्षण के आधार पर जारी किया है। भारत एपीआई के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर है और इसलिए चीन के ऐसे विनिर्माता अमेरिकी बाजार में उसके लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं। भारतीय कंपनियों का एपीआई के लिए चीन पर निर्भरता का मुख्य कारण अन्य विनिर्माताओं के मुकाबले उसका सस्ता होना है। एपीआई बनाने वाली घरेलू कंपनियां इनमें से अधिकांश एपीआई का उत्पादन नहीं करती हैं जिससे भारतीय औषधि कंपनियों को पूरी तरह आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।आवश्यक दवाओं में पैरासिटामोल, रैनिटिडीन, मेटफॉर्मिन, एमॉक्सिसिलीन, सिप्रोफ्लोक्सासिन, एसिटाइल सैलिसाइलिक एसिड, ओफ्लोक्सासिन, सेफिग्जाइम, आईबुप्रोफेन, ऐम्पिसिलिन और मेट्रोनिडाजोल शामिल हैं। संयोग से पिछले दशक के के दौरान एपीआई और एडवांस्ड इंटरमिडिएट्ïस के कुल आयात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। पिछले दस साल के दौरान करीब 20 फीसदी सीएजीआर के साथ यह बढ़कर 3.4 अरब डॉलर हो गया है जो 2004 में करीब 80 करोड़ डॉलर था। इसमें मूल्य के लिहाज से चीन से होने वाले आयात की हिस्सेदारी करीब 58 फीसदी है। जबकि मात्रा के लिहाज से चीन से होने वाले एपीआई के आयात की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है।
