बीएस बातचीत
केंद्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले एक महीने में दो महत्त्वपूर्ण घोषणाएं की हैं। इनमें एक वाहन कबाड़ नीति और दूसरी राजमार्ग निर्माण से संबंधित है। हमेशा आशावादी रुख रखने वाले गडकरी ने इन योजनाओं से जुड़ी नीतियों को आगे बढ़ाने की योजना पर मेघा मनचंदा और ज्योति मुकुल के साथ विस्तार से चर्चा की। प्रमुख अंश:
पिछले साल लगातार दो महीने लॉकडाउन रहने के बाद भी सड़क निर्माण में ऐसी अभूतपूर्व प्रगति कैसे हुई?
वित्त वर्ष 2020 में रोजाना औसतन 28 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई गई। 2014 में जब मैंने मंत्रालय की बागडोर संभाली थी तो आंकड़ा 12 किलोमीटर प्रति दिन था। उस समय 3.85 लाख करोड़ रुपये मूल्य की 403 परियोजनाएं अटकी हुई थीं, जिनमें 40 हमने रद्द कर दीं। बाकी बचे ठेकों में 99 फीसदी विभिन्न दौर की बातचीत के जरिये सुलझाए गए। पिछले साल कोविड-19 की वजह से हमें कई दिक्कतें झेलनी पड़ी थीं। लॉकडाउन के बीच मजदूर भी घर लौट गए। फिर भी चुनौतियों के बीच हमने 37 किलोमीटर रोजाना के हिसाब से सड़कें बनाईं। हालांकि अमेरिका और चीन इससे अधिक रफ्तार के साथ सड़कें बना चुके हैं मगर मौजूदा अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक हमने विश्व रिकॉर्ड बनाया है। फिलहाल हम 22 और एक्सप्रेसवे तैयार कर रहे हैं जिनमें दिल्ली से देहरादून, हरिद्वार और चंडीगढ़ को जोडऩे वाले एक्सप्रेसवे भी शामिल हैं। इन राजमार्गों के निर्माण से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इन शहरों के बीच सफर करने में मात्र 2 घंटे लगेंगे। ये सभी नई परियोजनाएं हैं। हमें उम्मीद है कि अगले साल हम 40 किलोमीटर प्रति दिन से अधिक रफ्तार से सड़क निर्माण कर पाएंगे।
रोजाना 40 किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार क्या आवश्यक उपाय करेगी?
हमने इस बारे में पहले ही सोच लिया है। हमने उन कारणों का गहराई से अध्ययन किया है, जिनसे पहले सड़क निर्माण पर असर हुआ है। सड़क निर्माण में जमीन अधिग्रहण बड़ी बाधा साबित हो रहा था। पहले 10 फीसदी भूमि अधिग्रहण होने के बाद सड़क परियोजनाओं के ठेके दे दिए जाते थे और बाद में 90 फीसदी जमीन का अधिग्रहण करने में राज्यों के पसीने छूट जाते थे। मगर हमने स्थिति बदल दी है। अब 90 फीसदी जमीन के अधिग्रहण के बाद ही परियोजनाएं आवंटित की जाती हैं। पहले कार्यकाल में हमने 17 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं पूरी की थीं और स समय 9 लाख करोड़ रुपये के ठेके निर्माणाधीन हैं। अगले तीन साल में भारत सड़क सुविधाओं में अमेरिका की बराबरी कर लेगा।
क्या वाहन कबाड़ नीति को अंतिम रूप दिया जा चुका है और क्या वाहन उद्योग 1 फीसदी से ज्यादा प्रोत्साहन देने के लिए तैयार है?
हमने अधिसूचना जारी कर दी है और इससे वाहन उद्योग को निश्चित तौर पर फायदा होगा। हमारे वाहन विनिर्माता अपने 50 फीसदी वाहनों का निर्यात करते हैं और नीति लागू होने से अगले 2-3 साल में वाहन उद्योग 10 लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा। वाहन उद्योग सबसे ज्यादा रोजगार देता है और केंद्र एवं राज्यों को इससे काफी राजस्व भी मिलता है। हमारा मकसद भारत को दुनिया का विनिर्माण केंद्र बनाना है।
हमने वाहन विनिर्माताओं को ज्यादा प्रोत्साहन देने की सलाह दी है। कुछ ने 5 फीसदी तक प्रोत्साहन देने का भरोसा हमें दिलाया है। हमें लगता है कि प्रतिस्पद्र्घा बढऩे के साथ तस्वीर साफ होगी। अगर कोई विनिर्माता इसका पालन करता है तो अन्य भी उसे अपनाएंगे। मैंने वित्त मंत्री से पुराने वाहन को कबाड़ में देकर नया वाहन लेने वाले ग्राहकों को वस्तु एवं सेवा कर में कुछ रियायत देने का भी अनुरोध किया है। यह प्रस्ताव जीएसटी परिषद के पास भेजा जाएगा।
क्या देश में वाहनों को कबाड़ में बदलने की पर्याप्त क्षमता है?
शुरुआत छोटी ही होती है मगर आगे जाकर बढ़ती जाती है। कबाड़ केंद्र भी उद्योग की शक्ल ले लेंगे। ऐसे उद्योग लगाने वालों को पर्यावरण मंजूरी लेनी होगी। समवर्ती सूची का मामला होने के कारण केंद्र और राज्य के नियम लागू होंगे। ऐसे उद्योगों को ध्वनि एवं वायु प्रदूषण नियमों के संबंध में भी मंजूरी लेनी होगी।
कैब एग्रीगेटरों को मोटर वाहन अधिनियम के नियमों पर कुछ आपत्तियां थीं। उन्हें दूर कर दिया गया है?
हमने दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं लेकिन उन्हें लागू करना राज्यों का काम है। एग्रीगेटर सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान को लेकर चिंतित हैं, इसलिए हमने इसमें थोड़ी ढील दी है। समग्र और थर्ड पार्टी बीमा नियम अधिसूचित कर दिए गए हैं। राज्य भी इस दिशा में निर्देश जारी कर सकते हैं, जिससे उनकी ङ्क्षचता दूर हो सकती है।
उत्तराखंड में हाल की त्रासदी के बाद पर्यावरणविदों ने पहाड़ी क्षेत्रों में ढांचागत परियोजनाओं की सुरक्षा पर चिंता जताई है। आपका इस बारे में क्या ख्याल है?
पर्यावरणविदों का रवैया सही नहीं है। हमें भी पर्यावरण की उतनी ही चिंता है। हम नए राजमार्गों के दोनों तरफ बड़ी संख्या में पौधरोपण कर रहे हैं। बेहतर सड़कें बनाकर और फास्टैग व्यवस्था लागू कर हम ईंधन की बचत करने में कामयाब रहे हैं। जहां तक चारधाम यात्रा की बात है तो कुल 55 परियोजनाएं हैं,जिनमें 25 पूरी हो चुकी हैं। अगले छह महीने में 15 और परियोजनाएं पूरी हो जाएंगी। जो 15 परियोजनाएं अटकी हैं उनमें एक जोशीमठ क्षेत्र में है। मामला फिलहाल उच्चतम न्यायालय में है और हम निर्णय का इंतजार कर रहे हैं।
सड़क एवं परिवहन क्षेत्र में परिसंपित्तयों से कमाई करने की योजना तैयार करने के मसले पर सड़क मंत्रालय और नीति आयोग के बीच कुछ मतभेद रहे हैं। उन्हें दूर कर लिया गया है?
मतभेद जैसा कुछ नहीं है। हम एक सफल रणनीति के साथ सही दिशा में बढ़ रहे हैं। नीति आयोग से कोई सुझाव आता है तो मंत्रालय उस पर भी विचार करेगा। टोल से होने वाली हमारी कमाई बढ़ गई है और पिछले वित्त वर्ष यह 24,000 करोड़ रुपये थी। इस समय कोविड-19 महामारी और किसानों के आंदोलन की वजह से कुछ टोल बंद हैं तब भी हमारी कमाई बढ़कर 34,000 करोड़ रु पये हो गई है। अगले पांच वर्षों में यह लगभग 1.34 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी।
राजमार्गों के निर्माण में किस तरह की नई पहल की संभावना देख रहे हैं?
हम हरित राजमार्ग (ग्रीन हाईवे) बनाना चाहते हैं। ट्रकों को मुंबई से दिल्ली आने में 48 घंटे लगते हैं लेकिन अब इसमें 18 घंटे लगेंगे। प्रदूषण में भी कमी आएगी। इसके साथ ही एथनॉल, मेथनॉल, बायोडीजल, बायो सीएनजी, इलेक्ट्रिक आदि पर काम किया जा रहा है, जिससे ईंधन के मामले में भारत आत्मनिर्भर होगा और आयातित तेल के विकल्प तैयार होंगे। हम सड़क निर्माण में भी पर्यावरण का ध्यान रख रहे हैं। बिटुमिन में 10 फीसदी प्लास्टिक मिलाने की मंजूरी दी है। इसके साथ ही हम 1,000 ऐसे ठेकेदारों की फौज बनाना चाहते हैं जो पौधरोपण करेंगे। द्वारका एक्सप्रेसवे पर हमने 12,000 पौधे लगाए हैं।
दिल्ली-मुंबई मार्ग पर इलेक्ट्रिक राजमार्ग बनाने का भी प्रयास किया जा रहा है। इसमें रेलवे की तरह ओवरहेड तार लगे होंगे। लीथियम आयन बैटरी के लिए हमने विशेषज्ञों की बैठक बुलाई थी ताकि इसका विनिर्माण पूरी तरह भारत में हो सके। हम हाइड्रोजन के उपयोग को भी बढ़ावा दे रहे हैं।
कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच क्या आपको लगता है कि लॉकडाउन विकल्प होना चाहिए?
परिवहन और एमएसएमई मंत्री के तौर पर मैं समझता हूं कि कोविड के कारण कई समस्याएं हैं। छोटे कारोबारी, व्यापारी और बाकी सभी को इन समस्याओं का सामना करना पड़ा है। पूरी दुनिया इससे जूझ रही है। कोविड के साथ जीना सीखने की और सभी सावधानियां बरतने की जरूरत है। आर्थिक चुनौतियां हैं लेकिन हम उनसे पार पा लेंगे।
