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भारत में मैन्युफैक्चरिंग की हकीकत: कहानी अभी अधूरी, स्पीड बढ़ाने की दरकार

भारत मोबाइल फोन के मामले में शुद्ध आयातक से शुद्ध निर्यातक देश बन चुका है। घरेलू उत्पादन 2014-15 में 5.8 करोड़ हैंडसेट से बढ़कर 2023-24 में 33 करोड़ हैंडसेट हो गया।

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इंदिवजल धस्माना   
Last Updated- December 25, 2024 | 11:43 PM IST

भारत को दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करने के लिए विनिर्माण पर अ​धिक ध्यान केंद्रित करना होगा। देश आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है लेकिन उसकी विनिर्माण क्षमता महज कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित है। श्रृंखला के चौथे भाग में देखेंगे कि चीन का विकल्प बनते हुए देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारत को क्या करना चाहिए:

देश में उत्पादन को बढ़ावा देने और ‘चीन प्लस वन’ की वैश्विक रणनीति का फायदा उठाने के लिए भारत को विनिर्माण के अनुकूल माहौल तैयार करने की जरूरत है। चीन प्लस वन रणनीति के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चीन पर निर्भरता कम करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। मगर राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (एनएमपी) और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों के साथ भारत के एक प्रमुख उत्पादन केंद्र बनने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में विनिर्माण का योगदान घट रहा है। हालांकि मोबाइल हैंडसेट जैसी चुनिंदा वस्तुओं में आयात को कम करने और निर्यात बढ़ाने में धीरे-धीरे प्रगति हो रही है। एनएमपी को 2011 में तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा पेश किया गया था, लेकिन विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहले भी कई उपाय किए गए थे।

उदाहरण के लिए, विनिर्माण के वास्ते राष्ट्रीय रणनीति (2006) के तहत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाने, सर्वोत्तम प्रथाओं एवं उत्पादन तकनीकों को अपनाने, कौशल विकास एवं ज्ञान को बेहतर करने और अनुसंधान एवं विकास (आरऐंडडी) में निवेश बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया था। उसी नीति के कारण राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता परिषद का गठन किया गया।

निर्यात-आयात की वि​भिन्न नीतियों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) के जरिये वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने की को​शिश की गई। हालांकि एसईजेड में विनिर्माण और सेवाएं दोनों शामिल हैं। वास्तव में इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों से सेवाओं के निर्यात ने विनिर्माण के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए, एसईजेड के जरिये सेवाओं का निर्यात 50 फीसदी बढ़कर 25.4 अरब डॉलर हो गया जो चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 16.5 अरब डॉलर रहा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सितंबर 2014 में शुरू किए गए मेक इन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को वैश्विक डिजाइन एवं विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना था। इसका मुख्य उद्देश्य निवेश के अनुकूल ​माहौल तैयार करना, नवाचार को प्रोत्साहित करना और विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा स्थापित करना था।

इस कार्यक्रम को 14 विनिर्माण एवं 12 सेवा क्षेत्रों को कवर करते हुए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, पीएम गतिशक्ति एवं राष्ट्रीय लॉजि​स्टिक्स नीति जैसी प्रमुख योजनाओं और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे कर सुधारों का समर्थन मिला है।

राष्ट्रीय विनिर्माण नीति के तहत 2022 तक विनिर्माण की हिस्सेदारी को 25 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया था। मेक इन इंडिया कार्यक्रम पर शुरुआती विचार-विमर्श में भी इस लक्ष्य का उल्लेख किया गया था, मगर इस नीति के तहत प्रतिशत में कोई आंकड़ा नहीं बताया गया था।

बहरहाल पिछले 14 वर्षों के दौरान विनिर्माण की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। इसी प्रकार विनिर्माण की वा​र्षिक चक्रवृद्धि वृद्धि दर (सीएजीआर) में भी इस दौरान गिरावट आई है, जबकि इस शता​ब्दी की शुरुआत के मुकाबले पिछले 4 वर्षों में जीडीपी की सीएजीआर बढ़ी है। पिछले 9 वर्षों के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की मात्रात्मक वृद्धि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) से भी कम रही है।

पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रणव सेन ने इस रुझान के बारे में कहा कि विनिर्माण के गैर-कॉरपोरेट अथवा सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र दबाव में हैं। उन्होंने कहा, ‘कोविड के दौरान लॉकडाउन के कारण वे बुरी तरह प्रभावित हुए थे और अभी भी पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं।’

सेन ने कहा कि कुल मिलाकर आय वितरण में बदलाव से विनिर्माण भी प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा, ‘निम्न मध्यवर्ग की आय में वृद्धि की रफ्तार सुस्ती रही और उस प्रभाव विनिर्माण पर पड़ा है। निम्न मध्यवर्ग सेवाओं के मुकाबले विनिर्मित वस्तुओं का अधिक उपभोग करता है, जबकि उच्च वर्ग के मामले में यह बिल्कुल विपरीत है। यह पिछले एक दशक के दौरान आय वितरण में हुए बदलावों को भी दर्शाता है।’

सेन ने कहा कि 2007-08 तक विनिर्माण क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी। मगर 2008-09 के वैश्विक आ​र्थिक संकट ने उसे बुरी तरह प्रभावित किया और उसके बाद उसकी रफ्तार कभी दमदार नहीं दिखी।

फोर्ब्स मार्शल के को-चेयरमैन और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के पूर्व अध्यक्ष नौशाद फोर्ब्स ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि 2000 से 2024 तक 25 साल की समीक्षा अवधि के दौरान जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी में मामूली गिरावट अ​धिक चिंता की बात है। मगर वह इस बात से अ​धिक चिंतित हैं कि विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ नहीं पाई है।

फोर्ब्स ने जोर देकर कहा कि सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह है कि उद्यमों को क्षमता निर्माण एवं विस्तार में निवेश करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ बड़े उद्यम ऐसा कर रहे हैं लेकिन तमाम उद्यमों को निवेश पर ध्यान देना चाहिए। हाल के वर्षों में उद्यमों द्वारा किया गया दमदार निवेश अब कम हो गया है। उन्होंने कहा, ‘अहम सवाल यह है कि क्या यह एक अस्थायी घटना है अथवा कोई गंभीर मुद्दा है।’

कर परामर्श एवं लेखा फर्म नेक्सडिग्म के सहायक निदेशक (उपक्रम एवं प्रबंधन) विकास ठाकुर ने कहा कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम मुख्य रूप से कम कौशल एवं कम मूल्य वाले विनिर्माण पर केंद्रित है, जबकि भारत को इंडोनेशिया, ताइवान, थाईलैंड, वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा, ‘चीन प्लस वन नीति के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चीन से बाहर जाने के कारण अमेरिकी बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए मैक्सिको में काफी निवेश हो रहा है।’

सेन का कहना है कि वस्तु निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पीएलआई एक उम्दा योजना है। मगर हाल में वस्तुओं का निर्यात भी घटा है। कंपनियों ने पीएलआई योजना का लाभ उठाते हुए मोबाइल हैंडसेट जैसी खास उत्पादों के घरेलू विनिर्माण में सुधार किया है। इन उत्पादों में इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे, एपीआई, चिकित्सा उपकरण, वाहन एवं कलपुर्जे, विशेष इस्पात, एयर कंडीशनर, एलईडी, खाद्य उत्पाद और कपड़ा शामिल हैं।

एक सरकारी बयान के अनुसार, भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन विनिर्माता (चीन के बाद) बन चुका है। स्मार्टफोन के आयात पर उसकी निर्भरता भी काफी घट चुकी है और 2023-24 में 99 फीसदी स्मार्टफोन का उत्पादन देश में ही होगा।

इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार, ऐपल के आईफोन का उत्पादन चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में 10 अरब डॉलर मूल्य तक पहुंच गया। इसे मुख्य तौर पर पीएलआई योजना रफ्तार मिली है।

भारत मोबाइल फोन के मामले में शुद्ध आयातक से शुद्ध निर्यातक देश बन चुका है। घरेलू उत्पादन 2014-15 में 5.8 करोड़ हैंडसेट से बढ़कर 2023-24 में 33 करोड़ हैंडसेट हो गया। साथ ही मोबाइल हैंडसेट के आयात में काफी गिरावट आई है। एक अन्य आधिकारिक बयान के अनुसार, इस के दौरान निर्यात 5 करोड़ हैंडसेट तक पहुंच गया।

प्रधानमंत्री ने हाल में कहा था कि पीएलआई योजना ने 1.25 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है।

First Published : December 25, 2024 | 11:30 PM IST