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गणेशोत्सव की नहीं दिखेगी रौनक

Last Updated- December 15, 2022 | 3:10 AM IST

करीब तीन दशकों से हर साल विले पार्ले के मूर्तिकार एकनाथ गुरुव मिट्टी और पत्थरों से गणपति बनाते हैं। मुंबई में गणेश चतुर्थी की तैयारियों के बारे में गुरुव कहते हैं, ‘हर साल की तरह ही इस साल भी उत्साह है। लेकिन इस बार लोगों के पास पैसा नहीं है। लोग इस बार काफ ी मोलभाव कर रहे हैं।’ उनकी 250 मूर्तियां जिनमें से ज्यादातर दो फुट लंबी हैं उनकी कीमत 5,500 रुपये प्रति मूर्ति है लेकिन वे 4,500 रुपये में बिक रही है। कच्चे माल की लागत और मूर्ति बनाने के लिए ली गई जगह के किराये को जोडऩे के बाद मुनाफा बेहद निराशाजनक है। उनके साथ पिछले साल तक आठ कारीगरों की टीम काम करती थी लेकिन अब उनकी संख्या घटकर महज तीन हो गई है।
जब से 127 साल पहले इस शहर में गणेशोत्सव का कार्यक्रम शुरू किया गया उस वक्त से ही मूर्तिकारों के समूहों की आमदनी इस त्योहार पर निर्भर करती है। फू लों के काम से जुड़े लोगों, मिठाई वाले, मंडप सजावट वाले, ढोल-ताशे वाले, रंगारंग कार्यक्रम में प्रदर्शन करने वाले लोग और सुरक्षा गार्ड जैसे लोगों को हर साल पांच से 11 दिनों के लिए मुंबई के मैदानों, झुग्गी-झोपडिय़ों, आवासीय परिसरों और छोटी बस्तियों में लगाए जाने वाले करीब 17,000 पंडालों में काम मिल जाता था। इनमें से करीब 2,470 पंडालों में विशाल मूर्तियां रखीं जाती हैं। हर साल इस त्योहार के दौरान पूरे शहर में रंगीन माहौल रहता था और कारोबार भी अच्छा होता था लेकिन 22 अगस्त से शुरू हो रहे इस त्योहार की रंगत इस बार फ ीकी रहने वाली है। इस बार शहर में बड़े पंडाल और बैनर नहीं दिखेंगे और न ही सड़कों पर धूपबत्ती की खुशबू आएगी।
कोविड-19 की वजह से राज्य सरकार और नगर निगम के अधिकारियों ने दिशानिर्देश दिए हैं जिसके मुताबिक श्रद्धालुओं को मास्क पहनकर दूर से प्रार्थना करनी होगी। वे फू ल या प्रसाद नहीं चढ़ा सकते। मूर्तियों की लंबाई चार फु ट से अधिक नहीं होनी चाहिए। बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों और परिवारों के नेतृत्व में होने वाले आगमन और विसर्जन के लिए जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस बार विसर्जन समुद्र तट के बजाय निजी स्थलों पर या बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के टैंकों में किया जाना है। इसी वजह से कई प्रमुख ट्रस्ट ने इस वर्ष गणेशोत्सव समारोह रद्द करने और अपने कार्यालयों में छोटी मूर्तियों की पूजा करने की योजना बनाई है। इसके बजाय कई ने तो रक्तदान और प्लाज्मा के लिए शिविर लगाने का फैसला किया है। करीब 18 से 20 फु ट लंबी लालबागचा राजा की मूर्ति सबसे मशहूर है और यहां लोगों का बड़ा हुजूम जुटता है लेकिन 86 साल में पहली बार यहां मूर्ति नहीं रखी जाएगी।
किंग्स सर्किल में 70 किलोग्राम सोना और 300 किलोग्राम चांदी से सजे हुए शहर के सबसे अमीर गणेश के लिए जीएसबी सेवा मंडल समारोह का सीधा प्रसारण करेगा लेकिन इस जगह पर सीमित लोग ही जा सकेंगे। ट्रस्ट के संयोजक भुजंग पाई कहते हैं, ‘हम लोगों की समस्याओं को समझते हैं, इसलिए हम सोने और धन के अत्यधिक प्रदर्शन के बजाय केवल पूजा और जप करेंगे।’
बृहन्मुंबई सार्वजनिक गणेशोत्सव समन्वय समिति के अध्यक्ष नरेश दहिभावकर का कहना है कि शहर में गणेशोत्सव का कुल कारोबार कम होकर 30 करोड़ रुपये तक होने की उम्मीद है। जबकि पिछले साल यह करीब 70 करोड़ रुपये तक था। दहिभावकर याद दिलाते हैं, ‘इसका मतलब यह है कि सरकार की कर आमदनी में भी कमी आएगी।’ स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं के अलावा मूर्ति का आकार छोटा होना भी लोगों और कंपनियों की खर्च क्षमता में नाटकीय बदलाव की ओर इशारा करता है। एसोचैम ने एक बार कहा था कि गणेशोत्सव भी मंदी से अछूता नहीं रह सकता है। माटुंगा में शक्ति विनयगर नरपानी मंडरम के एस मणिकंदन कहते हैं, ‘हाथ जोड़कर लोग दान देने से बच रहे हैं।’ इसीलिए यहां भी निरंतरता बनाए रखने के लिए एक छोटा सा समारोह आयोजित किया जाएगा।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जुलाई के बीच भारत के संगठित क्षेत्र में कुल 1.89 करोड़ वेतनभोगी लोगों की नौकरी चली गई। कई जगहों पर वेतन में भी कटौती की गई है। सामान्य वक्त में श्रद्धालु नकद, सोना, हीरा, विदेशी मुद्रा, नारियल और शक्कर दान देते हैं। बड़े पंडाल ऐप और यूट्यूब चैनलों से लैस होंगे जो इस साल धार्मिक अनुष्ठानों का वेबकास्ट करेंगे। वे प्रसाद कूरियर करने की भी योजना बना रहे हैं। गणेशोत्सव से जुड़े बीमा और प्रायोजन का दायरा भी कम हो गया है। किंग्स सर्कल जीएसबी जिसका पिछले साल 265 करोड़ रुपये का बीमा कवर था वहां इस बार कुछ कर्मचारियों का ही निजी स्वास्थ्य बीमा कराया जाएगा।
बॉलीवुड की मशहूर हस्तियों के बीच लोकप्रिय अंधेरीचा राजा में इस बार विशिष्ट अतिथियों के आने का प्रचार नहीं होगा। ट्रस्ट के प्रवक्ता उदय सालियन कहते हैं आमतौर पर प्रायोजक खुद ही हमसे संपर्क करते थे लेकिन इस बात शांति बनी हुई है। भायखला के मूर्तिकार संतोष मुरासु कहते हैं कि संदेह के माहौल की वजह से इस त्योहार से जुड़ी रचनात्मकता भी प्रभावित हुई है। वह कहते हैं, ‘हमारा एक महीने का वक्त सिर्फ  गुजरात से सामग्री आने के इंतजार में खत्म हो गया। लोग हमारे पास अपनी पसंद की मूर्ति बनवाने के लिए विशेष डिजाइनों के चित्र लेकर आते हैं लेकिन इस बार मंदी को देखते हुए हम डिजाइन कस्टमाइज नहीं कर रहे हैं।’

First Published - August 20, 2020 | 11:18 PM IST

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