शैक्षणिक संस्थान उच्चतम न्यायालय के हाल के उस फैसले से आशंकित हैं, जो आयकर छूट को उस स्थिति में खत्म सकता है अगर ये शैक्षणिक संस्थाएं मुनाफा कमा रही हैं और इसी मकसद से संचालित भी की जा रही हैं। ऐसे कई संस्थानों का मानना है कि इस फैसले से इस क्षेत्र को नुकसान होगा और देश में शैक्षणिक संस्थानों के भविष्य पर भी असर पड़ेगा।
भारत में अधिकांश शैक्षणिक संस्थान धर्मार्थ या परोपकारी संगठन (चैरिटेबल ट्रस्ट) के रूप में गठित किए जाते हैं, भले ही कॉरपोरेट प्रक्रिया का विकल्प मौजूद क्यों न हो। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट स्कूल्स (एआईएमएस) के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत शैक्षणिक संस्थान चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत आते हैं और अन्य 40 प्रतिशत सोसाइटी अधिनियम के तहत मौजूद हैं।
उच्चतम न्यायालय ने 19 अक्टूबर को कहा था कि अगर शैक्षणिक संस्थान मुनाफा कमा रहे हैं और इसी तरह के मकसद से ये संस्थान चलाए जा रहे हैं तब आयकर अधिनियम की धारा 10 (23 सी) के तहत मिलने वाले लाभ ऐसे संस्थानों को नहीं दिए जाएंगे।
इस धारा में प्रावधान है कि किसी भी विश्वविद्यालय या शैक्षणिक संस्थान की अर्जित आमदनी जो केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है न कि मुनाफा कमाने के लिए उसे कर से छूट मिल सकती है। उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों के पीठ ने कहा, ‘यह माना जाता है कि धर्मार्थ संस्थान, सोसाइटी या ट्रस्ट को शिक्षा या शैक्षणिक गतिविधियों में ‘पूरी तरह’ जुड़े रहना चाहिए और किसी मुनाफे लाभ की किसी भी गतिविधि से नहीं जुड़ना चाहिए और इसका मतलब यह है कि संस्थान में ऐसी कोई चीज नहीं होनी चाहिए जो शिक्षा से जुड़ी हुई नहीं है।
दूसरे शब्दों में समाज की सभी वस्तुओं, भरोसे आदि को शिक्षा देने या शैक्षणिक गतिविधियों के जुड़ा होना चाहिए। कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि इस फैसले का मतलब है कि संस्थानों को अपनी लागत पर या उससे थोड़ा अधिक सेवाएं देनी होंगी। ध्रुव एडवाइजर के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) दिनेश कनबर ने कहा, ‘शैक्षणिक संस्थानों को यह पता लगाना होगा कि वे अपनी दीर्घावधि लागत के लिए निधि कैसे तैयार करेंगे मसलन शोध से जुड़ी सुविधाओं वाले केंद्र या नई इमारत बनाना आदि।’
एआईएमएस के अध्यक्ष रामास्वामी नंदगोपाल ने कहा, ‘इस तरह के फैसले से इस क्षेत्र और शिक्षण संस्थानों के भविष्य पर असर पड़ने वाला है। इस श्रेणी के तहत अधिकांश संस्थान बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। निश्चित तौर पर इससे उनकी वित्तीय स्थिति प्रभावित होगी।’
कई लोग उच्चतम न्यायालय के फैसले को परोपकारिता से जुड़े संगठनों में बड़े संदर्भ में देख रहे हैं। अहमदाबाद के प्रमुख निजी विश्वविद्यालयों में से एक कर्णावती विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रितेश हाडा ने कहा, ‘कम से कम हमारे लिए यह आदेश निजी ट्रस्टों के लिए मौजूदा अधिनियमों के मेल के रूप में है जो गुजरात में एक निजी विश्वविद्यालय के रूप में हम पर भी लागू होता है। हालांकि मुझे मौजूदा मानदंडों से कोई विषयांतर नजर नहीं आता है।’