पिछले साल पड़ी कोरोना महामारी की मार से उद्योग अभी उबरे भी नहीं हैं कि संक्रमण के मामलों में एक बार फिर बढ़ोतरी होने लगी है। इसलिए उद्यमियों को कारोबार पर दोबारा चपत लगने का डर सता रहा है। राजधानी दिल्ली और एनसीआर के कुछ उद्यमियों ने कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले देखकर कारोबार घटने के डर से कारखानों में उत्पादन सुस्त कर दिया है। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें भविष्य में मजदूरों के पलायन का डर सता रहा है और उस समय उत्पादन घटने के डर से वे इस समय जरूरत से ज्यादा उत्पादन करा रहे हैं।
हालांकि पिछले कुछ महीनों में कारोबार पुराने ढर्रे पर आ गया था। पुराना अटका भुगतान आने लगा था और उधारी पर माल देने का चलन भी बहाल हो गया था। लेकिन कोरोना के मामले बढऩे के साथ ही उद्यमी उधारी पर माल देने से परहेज करने लगे हैं। कच्चा माल महंगा होने से उद्योग में मार्जिन पर भी तगड़ी चोट पड़ी है। उद्योग ने मास्क, सैनिटाइजर, शारीरिक दूरी, कर्मचारियों को टीके लगवाने जैसे उपाय शुरू कर दिए हैं ताकि ग्राहक बेहिचक बाजारों में आएं मगर आसार बहुत अच्छे नहीं लग रहे।
सबसे पहली चोट तो कपड़ों के कारोबार पर ही पड़ रही है, जहां कारोबारियों को शादियों का सीजन बिगडऩे का डर सता रहा है। कारोबारियों का कहना है कि गर्मी के मौसम में शादियों के दौरान दिल्ली में 12-15 हजार करोड़ रुपये की बिक्री होने की संभावना है। अगर कोरोना जोर पकड़ गया तो बिक्री 10,000 करोड़ रुपये से भी कम रह सकती है। कपड़ों के लिए मशहूर गांधीनगर में रेडीमेड परिधानों के थोक कारोबारी संघ के अध्यक्ष और रेडीमेड परिधान कारोबारी केके बल्ली ने कहा कि पिछले साल शादियों के सीजन में कोरोनावायरस पूरा कारोबार खा गया था। इस साल अप्रैल से जून के बीच शादियों में अच्छे कारेाबार की उम्मीद है। मगर कोरोना के मामले जिस तरह बढ़ रहे हैं, उससे शादियों में मेहमानों की संख्या सीमित कर दी गई तो कारोबार फिर बिगड़ जाएगा। इसी डर से उत्पादन 20 फीसदी तक घटा दिया गया है। हालांकि अभी ऑर्डर रद्द होने की नौबत नहीं आई है मगर कारोबारी किसी भी स्थिति के लिए तैयार बैठे हैं।
मशीनरी के पुर्जे और दूसरे उत्पाद बनाने वाले भी स्टॉक इक_ा करने के लिए तैयार नहीं हैं। बादली इंडस्ट्रियल एस्टेट के महासचिव और इंजीनियरिंग उत्पाद बनाने वाले रवि सूद कहते हैं कि कोरोना के बढ़ते मामले देखकर माल का स्टॉक इक_ा करना सही नहीं है। हालांकि ऑर्डर कम नहीं हो रहे हैं मगर कोरोना पर लगाम नहीं लगी तो ऑर्डर घट सकते हैं। लागत बढऩे के कारण भी उत्पादन पर अंकुश लगाया गया है। पंखे की मोटर के लैमिनेशन में काम आने वाली पत्ती बनाने वाले प्रकाशचंद जैन को इस बात का दुख है कि कच्चे माल की कीमत 50 फीसदी बढऩे के कारण मार्जिन नहीं के बराबर रह गया है। पहले 5 से 10 फीसदी मार्जिन निकल जाता था मगर अब 2 फीसदी भी मिल जाए तो बड़ी बात है। जैन कहते हैं कि कोरोना के मामले बढऩे के कारण आगे बिक्री फीकी पडऩा तय है। ऐसे में ऊंची लागत पर अधिक उत्पादन करना घाटे का सौदा होगा। इसलिए पिछले महीने तक 5 टन उत्पादन करने वाले जैन अब उत्पादन घटाकर 3 टन करने जा रहे हैं।
हालांकि महामारी ने अजीब ऊहापोह पैदा कर दी है। कुछ उद्यमी उत्पादन घटा रहे हैं तो कई उद्यमी उत्पादन बढ़ाने में जुटे हैं। दिल्ली फैक्टरी ओनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष राजन शर्मा कहते हैं कि लॉकडाउन होने या मजदूरों की किल्लत होने की आशंका में कई उद्यमी अभी उत्पादन बढ़ा रहे हैं। हालांकि लॉकडाउन फिर लगने की संभावना नहीं है मगर मजदूर भाग गए तो इस समय तैयार माल ही आगे भी काम आएगा। वैसे टीका आने के बाद मजदूरों के पलायन की आशंका बहुत कम है। मध्य प्रदेश में मालनपुर लघु उद्योग संघ के अध्यक्ष और वाहन कलपुर्जा निर्माता यादवेंद्र सिंह परिहार बताते हैं कि पिछले साल लॉकडाउन खुलने के बाद कारेाबार कोविड महामारी से पहले का स्तर भी पार कर गया है और कोरोना के मामले बढऩे का अभी उद्योग पर खास असर नहीं पड़ा है।
मगर मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक वाहन डीलर के बिक्री प्रबंधक ने बताया कि संक्रमण बढऩे से वहां के वाहन उद्योग को झटका लगा। 15 अप्रैल तक के लिए लगाए गए ग्वालियर मेले को 28 मार्च को ही बंद करना पड़ा, जबकि रजिस्ट्रेशन शुल्क में 50 फीसदी छूट के कारण मेले में वाहन खूब बिक रहे थे। मेला जल्दी खत्म हो गया फिर भी 16,000 से अधिक वाहन बिक गए, जिनमें करीब आधे चारपहिया वाहन थे। डीलर बता रहे हैं कि इतनी बिक्री तो त्योहारों में भी नहीं हुई थी। अगर कोरोना के मामले नहीं बढ़ते और मेला 15 अप्रैल तक चलता तो बिक्री का आंकड़ा 20,000 के पार चला जाता। महामारी का असर तो होली पर भी दिखा। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के मुताबिक पिछले साल तक होली और रंग पंचमी पर मिठाई, मेवे, कपड़े, रंग, गुलाल, पिचकारी, नमकीन आदि का करीब 50,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता था। मगर इस बार संक्रमण बढऩे के कारण केंद्र और राज्य ने कोविड दिशानिर्देश सख्ती से लागू किए, जिससे होली के कारोबार में करीब 35,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
मामले बढऩे से उद्यमियों को भुगतान फंसने का डर भी सताने लगा है। पिछले साल लॉकडाउन के कारण दिल्ली के उद्यमियों का 10-12 हजार करोड़ रुपये का भुगतान अटक गया था। अब भी उसमें से 20 फीसदी रकम आनी बाकी है। हालांकि 80 फीसदी अटका भुगतान आने पर उद्यमी एक बार फिर उधार पर माल देने लगे थे। मगर संक्रमण में तेजी ने उनके हाथ बांध दिए हैं और उधारी पर माल देने में आनाकानी हो रही है। दूसरी दिक्कत पूंजी की है। लॉकडाउन के कारण पूंजी की किल्लत से जूझ रहे कारोबारियों को निजी फाइनैंसर भी कर्ज नहिीं दे रहे। बवाना औद्योगिक क्षेत्र के एक उद्यमी ने बताया कि वहां उद्योग फ्री होल्ड नहीं होने के के कारण बैंक कर्ज नहीं देते। निजी फाइनैंसर ही 12 से 18 फीसदी की ब्याज दर पर पैसा देते हैं। पिछले हफ्ते एक फाइनैंसर से 30 लाख रुपये मांगे थे मगर वह 15 लाख रुपये से ज्यादा देने को तैयार नहीं है। कोरोना के फिर सिर उठाने का खटका देखकर फाइनैंसर भी मु_ी बांधकर बैठ गए हैं ताकि पैसा फंसने का डर नहीं हो।