BS Infra Summit 2025: भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर ग्रोथ के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) को डिफ़ॉल्ट तरीका होना चाहिए। केवल सरकारी संसाधन देश में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की मांगों के स्तर को पूरा नहीं कर सकते। एक्सपर्ट्स ने नई दिल्ली में आयोजित बिजनेस स्टैंडर्ड इंफ्रास्ट्रक्चर समिट में ये बात कही। इस समिट की थीम ‘विकसित भारत के लिए इंफ्रा: प्लानिंग, फंडिंग और निर्माण’ है।
ईवाय इंडिया के इन्वेस्टमेंट बैंकिंग पार्टनर कुलजित सिंह ने पैनल चर्चा में कहा कि निजी निवेश को उन प्रोजेक्ट्स को फंड करना चाहिए जिन पर सरकार खर्च करती है। उन्होंने बताया कि भारत संसाधन-सीमित देश है। इसलिए सरकारी फंडिंग की जगह प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को प्राथमिकता देनी चाहिए।
कुलजित सिंह ने कहा कि भारत में अब कर्ज़ मिलना मुश्किल नहीं है लेकिन फाइनेंसिंग की शर्तें चुनौतीपूर्ण हैं। बैंक हाईवे, पोर्ट और एयरपोर्ट प्रोजेक्ट्स को आसानी से फंड करते हैं। लेकिन कर्ज़ की शर्तों पर अक्सर समस्या होती है। उन्होंने कहा कि विदेशी निवेशक ग्रीनफील्ड रिन्यूएबल प्रोजेक्ट्स में रुचि ले रहे हैं और निर्माण जोखिम उठाने को तैयार हैं। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार के सफल मॉडल को राज्यों में दोहराने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि वेस्ट मैनेजमेंट और रेलवे जैसे सेक्टर में PPP को पुराने प्रोजेक्ट्स की जगह नए प्रोजेक्ट्स पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि पुराने प्रोजेक्ट्स के साथ काम करना कठिन होता है। लेकिन नए प्रोजेक्ट्स पर काम करना आसान है।
इंफ्राविजन फाउंडेशन के सीईओ जगन शाह ने कहा कि भारत के शहरों में अव्यवस्थित ग्रोथ के कारण तनाव बढ़ गया है। 1991 के बाद से जो तेजी से विकास हुआ है। इसके लिए शहर पूरी तरह तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा कि शहर एक ‘सिस्टम ऑफ सिस्टम्स’ हैं। शहरी योजना भविष्य पर फोकस के साथ टेक्नोलॉजी समर्थित होनी चाहिए।
शाह ने कहा कि हमें घरेलू इनोवेशन पर आधारित तकनीकों का बड़ा बदलाव करना होगा। इसके लिए उद्योग, अकादमी और सरकार के बीच सहयोग और प्रोक्योरमेंट महत्वपूर्ण है। उन्होंने स्वच्छता परियोजनाओं को उदाहरण के तौर पर दिया, जहां रिसर्च से अधिकारी बेहतर निर्णय ले सकते हैं।
उन्होंने कहा कि शहरों में PPP छोटे प्रोजेक्ट्स पर आधारित होते हैं। ये राज्य सरकार और शहरी स्थानीय निकायों की फाइनेंशियल निर्भरता पर निर्भर हैं। इसलिए बड़े स्तर पर PPP आकर्षित करना कठिन होता है। हालांकि, उन्होंने अर्बन चैलेंज फंड की तारीफ की, जो शहरों को अपनी परियोजनाएं लाने के लिए प्रोत्साहित करता है और PPP से आधे तक फंडिंग की उम्मीद है।
RITES के चेयरमैन और एमडी राहुल मिथल ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर ग्रोथ में प्लानिंग सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने क्वालिटी और कॉस्ट बेस्ड सेलेक्शन (QCBS) सिस्टम को अपनाने पर जोर दिया। डिटेल्स प्रोजेक्ट रिपोर्ट (Detailed Project Report) पर ध्यान देना जरूरी है और इसे तैयार करने वाले चयन में कॉस्ट बेस्ड सेलेक्शन सिस्टम का इस्तेमाल होना चाहिए।
मिथल ने कहा कि केवल तकनीकी योग्यता पर भरोसा करना आसान लेकिन कम प्रभावी होता है। उन्होंने फील्ड एंटिटीज की मजबूती की भी जरूरत बताई ताकि डिजाइन सही तरीके से लागू हो सकें। साथ ही, उन्होंने कहा कि तकनीक का उपयोग कर इन्फ्रास्ट्रक्चर सिस्टम की कमजोरियों का आकलन किया जाना चाहिए।