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पर्याप्त पूंजी की उपलब्धता बेहद जरूरी

Last Updated- December 12, 2022 | 5:32 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन ने शुक्रवार को कहा, ‘कोरोना महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बैंकिंग सेक्टर के लिए जोखिम गैर-आर्थिक कारकों से सामने आ सकते हैं। बैंकों को अपने ऋण एवं परिचालन संबंधित जोखिमों पर गंभीरता से नजर रखनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पास पर्याप्त पूंजी बफर मौजूद हो।’
‘महामारी के बाद भारतीय बैंकिंग का नया परिदृश्य’ पर एसएएस के सहयोग से आयोजित बिजनेस स्टैंडर्ड की बेबिनार सीरीज में विश्वनाथन ने कहा कि महामारी के बाद, बैंकों के बहीखाते पर ऋण संबंधित जोखिम बढ़ा है और इसके परिणामस्वरूप फंसे कर्ज के लिए प्रावधान की जरूरत बढ़ी है और इससे उनके मार्जिन पर दबाव बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा, ‘नियामकीय पूंजी अप्रत्याशित नुकसान से मुकाबले के लिए बफर के तौर पर सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। लेकिन महामारी से यह साबित हुआ है कि अज्ञात जोखिम ज्यादा देखे जा सकते हैं।’
पूर्व डिप्टी गवर्नर ने 2 नवंबर, 2018 को एक्सएलआरआई-जमशेदपुर में ‘क्रेडिट रिस्क ऐंड बैंक कैपिटल रेग्युलेशन’ विषय पर दिए गए अपने भाषण में दी गई जानकारी को पुन: दोहराया। उन्होंने कहा, ‘संभावित नुकसान के समायोजन के लिए जरूरी पूंजी के तौर पर पर्याप्त बफर बनाए जाने की जरूरत होगी।’
उदघाटन सत्र में बैंकों के मुख्य जोखिम अधिकारियों (सीआरओ) का परिचर्चा सत्र भी आयोजित किया गया। इसमें मुख्य पैनल सदस्य थे: फेडरल बैंक के कार्यकारी उपाध्यक्ष एवं सीआरओ विल्सन साइरियाक, इंडसइंड बैंक में सीआरओ रामास्वामी मयप्पन, जेना स्मॉल फाइनैंस बैंक के सीआरओ रवि डुवुरू, आरबीएल बैंक के सीआरओ दीपक कुमार, और एसएएस इंडिया में रिस्क मैनेजमेंट प्रैक्सि के प्रमुख जितेश खेतान।
इस चर्चा में इसे लेकर सहमति बनी कि जहां डिजिटल व्यवस्था से बैंकिंग तंत्र, बिजनेस मॉडलों में बदलाव आएगा।
साइरियाक ने कहा, ‘हमारे 92 प्रतिशत रिटेल लेनदेन अब डिजिटल हो गए हैं, लेकिन इससे हमारा कार्य चुनौतीपूर्ण हो गया।’ आरबीएल के कुमार ने कहा, ‘मूल बिजनेस मॉडल बदला है। जहां आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग और बिग डेटा से मदद मिलेगी, वहीं यह मुख्य तौर पर ग्राहकों और व्यवसायों के पिछले अनुभव पर आधारित है।’
मयप्पन ने कहा, ‘बैंकों मेंआंतरिक प्रक्रियाएं जिस रफ्तार से बदल रही हैं, वह अब काफी तेज हो गई है, चाहे यह ग्राहक जोडऩे, ऋण मंजूरियों से संबंधित हो या दस्तावेजी प्रक्रिया से संबंधित।’ छोटे वित्तीय बैंकों के लिए चुनौती यह है कि सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के संदर्भ में, औपचारिक स्रोतों से कोष जुटाने की उनकी अक्षमता एक बड़ी समस्या बनी हुई है। महामारी की वजह से आपूर्ति शृंखलाओं पर प्रभाव पड़ा है।’
इस बेबिनार का मुख्य संदेश था: ‘बैंकों को बदलाव पर जोर देना होगा।’

First Published - April 24, 2021 | 12:14 AM IST

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