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बुनियादी सुविधाओं के विकास से महरूम बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे से लगे इलाके

Last Updated- December 11, 2022 | 9:22 PM IST

बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे से जुडऩे वाले बांदा-महोबा राजमार्ग के किनारे पानी की 50 लीटर का कैन ले जा रही 20 साल की सरिता देवी काफी थकी हुई लग रही हैं। वह कहती हैं, ‘मेरी दादी गंदगी से भरे रास्ते से पानी ले जाती थीं, मेरी मां दो लेन वाली सड़क के रास्ते पानी ले जाती थीं और अब मैं चार लेन के राजमार्ग से पानी ले जा रही हूं। पिछले 70 वर्षों में कई चीजें बदल गई हैं लेकिन हमारे लिए अब भी बहुत कुछ पहले जैसा ही है।’ उन्हें अपने गांव से 3 किलोमीटर दूर एक कुएं से पानी लाना पड़ता है। बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का काम मार्च-अप्रैल 2022 तक पूरा किया जाना है और यह उत्तर प्रदेश के इटावा, औरैया, जालौन, हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट जिलों को कवर करता है। बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे को लेकर कहा गया कि इससे इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में मदद मिलेगी और पीने योग्य पर्याप्त पानी भी उपलब्ध होगा।
जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 2.64 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से केवल 34 लाख के पास ही नल का पानी है और इस लिहाज से यह सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है। मंत्रालय ने 2024 तक हर भारतीयों के घर में नल का पानी लाने की योजना बनाई है। बुंदेलखंड के लोग सिर्फ  पानी के लिए ही नहीं तरस रहे हैं। वे बुनियादी ढांचे के विकास और नौकरियों की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
झांसी जिले में किसान से उद्योग में काम करने वाले मजदूर बने संजय तिवारी कहते हैं, ‘यह रानी लक्ष्मीबाई की जमीन है जिन्होंने हमारे देश को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए लड़ाई लड़ी थी। दुर्भाग्यवश, बुंदेलखंड के लोग अभी भी अन्य राज्यों में औद्योगिक श्रमिकों के रूप में गुलामी कर रहे हैं क्योंकि यहां कोई काम नहीं है।’
राज्य में रक्षा औद्योगिक गलियारे के लिए 2018 में उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया जिसके बाद तिवारी ने एक मजदूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। यह गलियारा झांसी से चित्रकूट तक फैला हुआ है और ऐसा माना जाता है कि बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे की वजह से इसको सहूलियत मिली हुई है इसका मकसद 20,000 करोड़ रुपये का निवेश लाना और क्षेत्र में 250,000 रोजगार के मौके तैयार करना है। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि गलियारे का काम पूरा किया जाना बाकी है।
तिवारी कहते हैं, ‘उन्होंने नौकरियों का वादा करके हजारों एकड़ जमीन लूट ली। लेकिन अब कई साल हो गए हैं और यहां कोई भी उद्योग नहीं लगा है।’ अधिकांश स्थानीय लोग तिवारी की बात पर हामी भरते हुए कहते हैं कि सरकार हर जगह सिर्फ  आधारशिला रख रही है और इसने शायद ही कोई उद्घाटन किया हो। बुंदेलखंड के एक अन्य निवासी कहते हैं, ‘झांसी और चित्रकूट अब भी अपने स्मार्ट शहरों, सौर संयंत्रों और मंडियों की तलाश में हैं।’
राज्य में निवेश और नौकरियों पर एक्सप्रेसवे के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सवाल को टाल दिया और कहा, ‘उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ भी बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का लाभ उठाएंगे। इससे इन सभी राज्यों की राष्ट्रीय राजधानी के साथ बेहतर कनेक्टिविटी बनेगी।’
बुंदेलखंड के एक निजी स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करने वाले करण सिंह का मानना है कि बुनियादी ढांचे के अलावा, सरकार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अपराध खत्म करने जैसे क्षेत्रों के लिए भी पर्याप्त रूप से काम नहीं कर रही है।
सिंह पूछते हैं, ‘नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक के अनुसार, उत्तर प्रदेश देश में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार राज्य में अपराध दर अब तक सबसे अधिक है। इसके अलावा, 23 करोड़ की आबादी के लिए हमारे पास केवल 77 सरकारी विश्वविद्यालय हैं। सरकार इन मानकों में सुधार के लिए कुछ भी क्यों नहीं कर रही है? अगर कोई आंकड़ों को ध्यान से देखता है तो बुंदेलखंड इन सभी मापदंडों में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला क्षेत्र है।’ हालांकि, हर किसी को नहीं लगता कि बुंदेलखंड में सब कुछ बुरा है। हालांकि रक्षा औद्योगिक गलियारे की घोषणा के बाद से इस क्षेत्र में कोई बड़ा विनिर्माण उद्योग नहीं आया है लेकिन कम से कम एक्सप्रेसवे का काम पूरा होने के करीब है। करण सिंह के पिता 70 वर्षीय दान सिंह कहते हैं, ‘भयंकर सूखा पडऩे और चंबल की घाटियों के चारों ओर डाकुओं के घूमने की वजह से बुंदेलखंड को खराब जगह माना जाता है। अब, इन एक्सप्रेसवे और राजमार्गों के आने की वजह से  हम अपने जीवन में पहली बार राहत महसूस कर रहे हैं। हमारी अगली पीढ़ी इन बुनियादी ढांचे के विकास का लाभ उठाएगी।’
इसी तरह, कई लोग नरेंद्र मोदी सरकार के 2024 तक हर घर तक पानी पहुंचाने के वादे से खुश हैं। लेकिन उन्हें इस बात पर संशय जरूर है कि निर्धारित समय में लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा या नहीं। सरिता देवी कहती हैं, ‘मुझे खुशी है कि सरकार ने दूर जाकर पानी लाने की मुश्किलों से मुक्त करने के लिए एक समय सीमा तय की है, लेकिन ऐसा जब हो जाएगा तभी माना जा सकता है।’

First Published - February 8, 2022 | 11:14 PM IST

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