उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को भारतीय निर्वाचन आयोग से कहा कि विधान सभा चुनाव से पहले बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए आधार कार्ड के साथ-साथ मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को भी स्वीकार्य दस्तावेज माना जाए।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने कहा, ‘नागरिकता साबित करने के लिए स्वीकार्य दस्तावेजों के रूप में निर्दिष्ट 11 दस्तावेजों की सूची संपूर्ण नहीं बल्कि उदाहरण के लिए थी। इसे देखते हुए यह न्याय के हित में होगा कि आयोग एसआईआर के लिए आधार कार्ड, चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता फोटो पहचान पत्र और राशन कार्ड पर भी विचार करेगा।’
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसके निर्देश का मतलब यह नहीं है कि चुनाव आयोग को केवल इन दस्तावेजों के आधार पर किसी का नाम मतदाता सूची में शामिल कर लेना चाहिए। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, ‘हमने देखा है कि वैसे भी आपने कहा है कि आपकी सूची संपूर्ण नहीं है। यदि आपके पास आधार को खारिज करने का कोई अच्छा कारण है तो आप ऐसा कर सकते हैं, लेकिन कारण बताना होगा।’
सर्वोच्च अदालत निर्वाचन आयोग के 24 जून के उस निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का आदेश दिया गया था। निर्देश के अनुसार, जो लोग 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज जमा करने होंगे। दिसंबर 2004 के बाद पैदा हुए लोगों को माता-पिता दोनों के नागरिकता दस्तावेज भी प्रस्तुत करने होंगे। यदि कोई माता-पिता विदेशी नागरिक हैं तो इसके लिए अतिरिक्त आवश्यकताएं होंगी।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाओं में महत्त्वपूर्ण सवाल उठाया गया है, जो देश में लोकतंत्र के कामकाज की जड़ तक जाता है, वह है वोट देने का अधिकार। अपने आदेश में पीठ ने कहा, ‘दोनों पक्षों को सुनने के बाद प्रथमदृष्टया हमारी यह राय है कि इस मामले में तीन सवाल शामिल हैं: (ए) मतदाता सूची पुनरीक्षण की चुनाव आयोग की शक्तियां (बी) इस काम को करने की प्रक्रिया और उसका तरीका (सी) समय, इसमें मसौदा मतदाता सूची तैयार करने, आपत्तियां मांगने और अंतिम सूची बनाने के लिए दिया जाने वाला समय भी शामिल है। अब महत्त्वपूर्ण यह है कि बिहार में चुनाव आगामी नवंबर में होने हैं, इसे देखते हुए पूरी प्रक्रिया के लिए समय बहुत कम है।’
अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘हमारा मानना है कि इस मामले की सुनवाई किए जाने की जरूरत है। इसलिए इसे 28 जुलाई को उचित बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए तय किया जाए। इस बीच निर्वाचन आयोग द्वारा जवाबी हलफनामा आज से एक सप्ताह के भीतर, यानी 21 जुलाई या उससे पहले दायर किया जाएगा। इस मामले में यदि कोई जवाब आता है तो उसे 28 जुलाई से पहले दायर किया जाए।’
अदालत ने निर्वाचन आयोग की पूरी कार्रवाई पर भी सवाल उठाया कि उसने बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर कार्रवाई को इतनी देर से क्यों शुरू किया। हालांकि अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पुनरीक्षण के इस काम में कोई खामी नहीं है, यह गलत नहीं है लेकिन इसे विधान सभा चुनाव से कई महीने पहले किया जाना चाहिए था।
याचियों में से एक, एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के लिए अदालत में पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायणन ने तर्क दिया कि निर्वाचन आयोग का पुनरीक्षण अभियान पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। कानून में इसका कोई आधार नहीं है। शंकरनारायणन ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि अब जब चुनाव में कुछ महीने ही बाकी हैं, आयोग कह रहा है कि वह 30 दिनों में पूरे राज्य की मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण कर लेगा। एडीआर, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), योगेंद्र यादव, तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सांसद मनोज झा, कांग्रेस के नेता केसी वेणुगोपाल और मुजाहिद आलम ने मामले में याचिकाएं दायर की हैं।