राजनीति

गोट, ओजी, योलो… भारतीय राजनीति की नई शब्दावली से जोड़े जा रहे युवा

दलों ने युवाओं को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया पर मेसेजिंग रणनीतियों को अपनाया है और अपनी शब्दावली भी सुधारी है।

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राघव अग्रवाल   
Last Updated- April 24, 2024 | 11:52 PM IST

दुनियाभर की राजनीति में राजनेताओं के लिए अपने मतदाताओं से जुड़ने में सोशल मीडिया एक बहुत शक्तिशाली साधन के रूप में उभरा है। यह खासकर भारत में देखने को मिलता है जहां राजनीतिक दलों ने युवाओं को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर मेसेजिंग रणनीतियों को अपनाया है और अपनी शब्दावली भी सुधारी है।

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने यूट्यूब चैनल पर ‘वोट फॉर गोट’ गीत जारी किया है। गाने में ‘जय हिंद टु द ओजी’ और ‘मोदीजी तो हैं अगले जेन के ग्रीन फ्लैग’ जैसे बोल हैं जो पहली बार मतदान करने वाले युवाओं को भाजपा के पक्ष में वोट करने के लिए आकर्षित करते हैं।

गोट (ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम), ओजी (ओरिजनल गैंगस्टर), ग्रीन फ्लैग, वाइब चेक और योलो (यू लिव ओनली वन्स) जैसे समसामयिक शब्दों का भारतीय युवा पीढ़ी खासा इस्तेमाल करती है और खासकर इंटरनेट पर इसका काफी चलन है।

इन राजनीतिक दलों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा साल 1997 और 2012 के बीच जन्म लेने वाले युवाओं के, जिन्हें मिलेनियल्स और जेन जी कहा जाता है, अनुरूप तैयार की गई है। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण उस वक्त देखने को मिला जब नई दिल्ली में आयोजित नैशनल क्रिएटर्स अवार्ड के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘थोड़ी सी वाइब भी तो चेक हो जाए’। प्रधानमंत्री की यह बात काफी वायरल भी हुई थी।

सिर्फ भाजपा ही नहीं बल्कि अन्य राजनीतिक दलों ने भी अपनी बातचीत को समकालीन रुझानों के अनुरूप ढाला है। अक्टूबर 2022 में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की एक तस्वीर साझा की थी और उसपर ‘गोट (जीओएटी)’ लिखा था। उसी महीने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक और पोस्ट में ‘योलो’ शब्द दिखा था।

हरीश बिजूर कंसल्ट्स के संस्थापक और कारोबार एवं ब्रांड स्ट्रैटजिस्ट हरीश बिजूर का मानना है कि ऐसी भाषा राजनीतिक दलों को युवा बनाने में मदद करती है। वह समझाते हैं कि अधिकतर राजनीतिक दलों को पुरानों जमाने की पार्टी मानी जाती है, जैसे उनके नेता खादी के कपड़े पहनते हैं, टोपी लगाते हैं, तोंद वाले होते हैं। उन्होंने कहा, ‘युवा दर्शक एक अलग कल्पना के साथ जुड़ना चाहेंगे और डिजिटल मीडिया वह अवसर प्रदान करता है।’

रीडिफ्यूजन के संदीप गोयल इसे इन राजनीतिक दलों के लिए अपेक्षित स्मार्टनेस मानते हैं। वह कहते हैं कि राजनीतिक दल बहुत समझदार हो गए हैं। उन्हें जमीनी जानकारी जुटाने की जरूरत हैं और वे ऐसा करते भी हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि कोई भी भाषा संचार का एक जरिया है।

अल्केमिस्ट ब्रांड कंसल्टिंग के संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर समित सिन्हा ने कहा कि ऐसी रणनीति इसलिए भी अपनाई गई है क्योंकि भारत के मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा 30 साल या उससे कम उम्र का है। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, भारत में 29.8 फीसदी पात्र मतदाता 18 से 29 साल आयु वर्ग के हैं।

सिन्हा ने कहा कि इस समूह से बड़ी संख्या में वोट मिलते हैं। वृद्ध मतदाताओं की एक निश्चित राजनीतिक विचारधारा है और उनके उससे जुड़े रहने की अधिक संभावना भी है। उन्होंने कहा, ‘पहली बार अथवा युवा मतदाताओं पर बदलाव के लिए प्रभाव पड़ने की संभावना अधिक रहती है।’

उन्होंने कहा कि युवाओं के लिए जानकारी का मुख्य जरिया उनका मोबाइल ही होता है। उन्होंने कहा, ‘यह प्रिंट, टीवी और रेडियो की तुलना में एक अलग वातावरण बनाता है और उसकी एक अलग भाषा भी है। इसलिए यह समझ में आता है कि उन तक पहुंचने के लिए ऐसी भाषा का उपयोग किया जाता है जिससे वे परिचित होते हैं।’

विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में जब इस पीढ़ी की उम्र बढ़ेगी तो भारतीय राजनीति में ऐसी भाषा ही व्यापक हो जाएगी। सिन्हा ने कहा, ‘यह वही लोग हैं जो आज 20-30 वर्ष के हैं और आने वाले दशकों में 40-50 वर्ष के हो जाएंगे।’ इससे पता चलता है कि भारतीय राजनीतिक की भाषा मतदाताओं के साथ-साथ विकसित होने वाली है।

First Published : April 24, 2024 | 10:56 PM IST