प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे, लेकिन अधिकतर विपक्षी दल इस मौके पर अनुपस्थित रहेंगे। विपक्ष ने सरकार पर नैतिकता के पारंपरिक स्वीकृत मानकों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है क्योंकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया है।
कांग्रेस, वाम दलों और तृणमूल कांग्रेस सहित 19 विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन का सामूहिक रूप से बहिष्कार करने की बुधवार को घोषणा की और इसे ‘अमर्यादित कदम’ करार दिया जिससे राष्ट्रपति के उच्च पद का अपमान होता है। हालांकि, शिरोमणि अकाली दल, बीजू जनता दल (बीजद), तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), वाईएसआर कांग्रेस (वाईएसआरसीपी), और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समारोह में भाग लेंगे, जो भाग लेने वाले एकमात्र गैर-राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) दल बन गए हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने अभी तक इस मुद्दे पर फैसला नहीं किया है।
दूसरी ओर सरकार ने विपक्ष के बहिष्कार के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने कहा कि परंपरा के अनुरूप सभी व्यावहारिक मानकों का पालन किया गया है। उन्होंने सवाल किया, ‘अगस्त 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद एनेक्सी का उद्घाटन किया और बाद में 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद पुस्तकालय का उद्घाटन किया। अगर आपकी (कांग्रेस की) सरकार के प्रमुख उनका उद्घाटन कर सकते हैं तो हमारी सरकार के प्रमुख ऐसा क्यों नहीं कर सकते?’
19 दलों के नेताओं द्वारा हस्ताक्षरित एक संयुक्त बयान में कहा गया, ‘संसद भवन का उद्घाटन एक महत्त्वपूर्ण अवसर है और हमारे विश्वास के बावजूद कि सरकार लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रही है और निरंकुश तरीके से नई संसद के निर्माण के प्रति हमारी असहमति के बावजूद हम अपने मतभेदों को भुलाने और इस मौके के लिए उदार थे।’
विपक्षी दलों ने कहा, ‘हालांकि, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए नए संसद भवन का उद्घाटन खुद करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय न केवल एक गंभीर अपमान है बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है।’ कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, जनता दल (यूनाइटेड), आप, माकपा, भाकपा, सपा, राकांपा, शिवसेना (उद्धव), राजद, आईयूएमएल, झामुमो, नैशनल कॉन्फ्रेंस , केसी (एम), आरएसपी, वीसीके, एमडीएमके और रालोद जैसे दलों ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी शिलान्यास समारोह में पूर्व राष्ट्रपतियों की अनुपस्थिति की निंदा की। खरगे ने मोदी सरकार पर नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपतियों को आमंत्रित नहीं करके ‘व्यवहार या नैतिकता के पारंपरिक रूप से स्वीकृत मानकों का बार-बार अपमान’ करने का आरोप लगाया। उनका यह भी आरोप था कि राष्ट्रपति का पद ‘भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार के तहत’ महज प्रतीकात्मकता में सिमट कर रह गया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने केवल चुनावी कारणों से दलित और आदिवासी समुदाय से भारत के राष्ट्रपति का चुनाव किया है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। विपक्षी दलों ने कहा कि राष्ट्रपति न केवल भारत में राज्य के प्रमुख हैं, बल्कि संसद का एक अभिन्न अंग भी हैं क्योंकि वह संसद सत्र का आह्वान, सत्रावसान करने के साथ ही संसद को संबोधित भी करती हैं। उन्होंने कहा, ‘संक्षेप में कहें तो संसद राष्ट्रपति के बिना संचालित नहीं हो सकती। फिर भी, प्रधानमंत्री ने उनके बिना नए संसद भवन का उद्घाटन करने का फैसला किया है। यह अमर्यादित कृत्य राष्ट्रपति के उच्च पद का अपमान करता है और संविधान की मूल भावना का भी उल्लंघन करता है। यह देश की उस समावेशी भावना को भी कमजोर करता है, जिसने देश को अपनी पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति चुनने के लिए प्रेरित किया।’
उन्होंने कहा कि नया संसद भवन सदी में एक बार आने वाली महामारी के दौरान भारी भरकम खर्च से बनाया गया था और हैरानी की बात यह है कि भारत के लोगों या सांसदों के साथ कोई परामर्श नहीं किया गया जिनके लिए यह बनाया जा रहा था। विपक्षी दलों का कहना है कि यह उद्घाटन सावरकर की जयंती के मौके पर किया जा रहा है, जिनकी अंग्रेजों के सामने की गई ‘दया याचिकाएं’ स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का उपहास करती हैं जिनकी बदौलत एक गणतंत्र के रूप में भारत का नया जन्म हुआ।
उन्होंने कहा, ‘जब लोकतंत्र की आत्मा को संसद से छीन लिया गया है तब नए भवन का कोई मूल्य नहीं दिखता है। हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं।’ विपक्षी दलों ने अपने संयुक्त बयान में कहा, ‘हम इस ‘सत्तावादी’ प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगे और अपने संदेश को सीधे भारत के लोगों तक ले जाएंगे।’