जमीन घोटालों की बात हो और उसमें 2005 में नोएडा में हुए जमीन घोटाले का जिक्र न हो तो बात कुछ अटपटी सी लगती है। जमीन-जायदाद के लिए सत्ताधारियों का मोह दिखाने वाला यह अब तक का सबसे बड़ा रिहायशी जमीन घोटाला था।
इस घोटाले की जडें क़ितनी गहरी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन साल से सीबीआई जांच होने के बावजूद आज भी इस घोटाले का पर्दाफाश नहीं हो सका है।
क्या है घोटाला?
इस घोटाले की तह तक जाने की कोशिश करें तो कहानी कुछ इस तरह खुल कर सामने आती है। नोएडा विकास प्राधिकरण ने 2004(1) के नाम से 1250 रिहायशी प्लॉटों का आवंटन शुरु करने के लिए आवेदन मांगे थे।
इन 1250 प्लॉटो में से 625 मकान अनुसूचित जाति और जनजाति जैसी आरक्षित श्रेणियों और बाकी के 625 मकान सामान्य श्रेणी के अंतर्गत थे। इन प्लॉटों का आवंटन 2 जुलाई 2005 को कंप्यूटराइज लॉटरी सिस्टम के तहत किया गया।
लेकिन इस लॉटरी की खास बात यह थी कि सामान्य श्रेणी के प्लॉटों का आवंटन सत्ता में दखल रखने वाले रसूखधारी लोगों को ही किया गया था।
इनमें कई सांसद, विधायक, आईएएस, आईपीएस, नोएडा प्राधिकरण से जुडे अधिकारियों और कुछ न्यायधीशों के रिश्तेदारों के नाम सामने आए थे।
प्लॉटों के आवंटन में धांधली की आशंका के चलते अमिक खेमका नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल-2005 की याचिका नंबर 48287व 50418 ) दायर कर दी थी।
इस जनहित याचिका पर कार्यवाही करते हुए 4 अक्टूबर 2005 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्लॉटों के आवंटन को खारिज कर सीबीआई जांच के आदेश दिये थे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विरोध में नोएडा प्राधिकरण ने सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे खटखटाए लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश को जारी रखने का आदेश दिया था।
कैसे हुआ घोटाला?
इस घोटाले को उजागर करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अमिक खेमका कहते है कि ‘लॉटरी प्रक्रिया का शुरु से ही दोषपूर्ण होना घोटाले का सबसे मुख्य कारण होता है। इस घोटाले में पहले कंप्यूटराइज लॉटरी प्रक्रिया को आयोजित करने के लिए सॉफ्टवेयर बनाने का जिम्मा टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) को सौंपा गया था।
लेकिन बाद में उत्तर प्रदेश सरकार की यूपीडीईएससीओ (उत्तर प्रदेश विकास सिस्टम निगम लिमिटेड) नाम की कंपनी को सौंप दिया गया था। प्रशासन ने इसका कारण टीसीएस द्वारा उस शर्त को न मानना बताया था जिसके तहत टीसीएस कर्मचारियों को इस लॉटरी प्रक्रिया में भाग न लेने की बात कही गई थी।
इस बाबत टीसीएस प्रबंधन का मानना था कि हमारे यहां काम करने वाले हजारों कर्मचारियों द्वारा इस लॉटरी सिस्टम में भाग न लेने की जिम्मेदारी कैसे ली जा सकती है।’
इस बाबत यूपीडीईएससीओ के प्रवक्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘इन प्लॉटों के आवंटन के लिए जिस सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया गया था। उसमें गड़बड़ी थी। जिसके कारण प्रायोजित तरीके से प्लॉटो का आवंटन हो गया था।’
क्या हुआ प्लॉटो का?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशानुसार इन प्लॉटों का फिर से आवंटन हो गया है।
इस बाबत नोएडा प्राधिकरण में आवासीय भूखंड एवं ग्रुप हाउसिंग विभाग के उपमहाप्रबंधक एल के झा का कहना है कि ‘उच्च न्यायालय के आदेशानुसार नवंबर 2008 में हमने इन प्लॉटों की आवंटन प्रक्रिया को फिर से शुरु किया था।
इस बार हमने 1163 प्लॉटों को आवंटित कर दिया है। बाकी के प्लॉटों के ऊपर उच्च न्यायालय में मुकदमा चल रहा है। इनका निर्णय उच्च न्यायालय का आदेश आने के बाद ही हो सकेगा।’
नोएडा प्राधिकरण के एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नए आवंटित हुए मकानों के लिए आवंटियाें के नाम उन लोगों से अलग है जो पहली बार की लिस्ट में शामिल थे। ये दिखाता है कि पिछली बार मकानों के आवंटन में धांधली हुई थी।