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बांध पर एनजीओ के बीच खींचतान बढ़ी

Last Updated- December 07, 2022 | 11:02 AM IST

उत्तराखंड में पर्यावरण कार्यकर्ता जी डी अग्रवाल के बाद अब स्वयं सेवी संगठनों (एनजीओ) ने जल विद्युत परियोजना के पक्ष और विपक्ष में कानूनी लड़ाई के लिए कमर कस ली है।


इंडियन काउंसिल ऑफ एनवायरो-लीगल एक्शन ने नैनीताल स्थित उत्तराखंड उच्च न्यायालय उत्तरकाशी और गंगोत्री के बीच बन रहे बांध का निर्माण रोकने के लिए एक याचिका दायर की है। अग्रवाल भी इस बांध नहीं बनाने की मांग कर रहे हैं।

काउंसिल ने अदालत से भागीरथी के नैसर्गिक प्रवाह को बहाल करने और क्षेत्र को राष्ट्रीय विरासत का दर्जा देने की इच्छा भी जताई है। याचिका में कहा गया है कि इन बांधों के निर्माण से क्षेत्र की बहुमूल्य जैव विविधिता खत्म हो जाएगी। इसके विपरीत देहरादून स्थित एनजीओ आरएलईके ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अदालत से पाला मनेरी और भैरो घाटी परियोजना का काम फिर से शुरू करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया है। पाला मनेरी परियोजना की क्षमता 480 मेगावाट है जबकि भैरो घाटी की उत्पादन क्षमता 400 मेगावाट है।

आरएलईके ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने विभिन्न धार्मिक समूहों के दबाव में आकर इन परियोजनाओं को रोकने का फैसला किया है। ऐसा करके राज्य सरकार ने अपनी ही जल विद्युत उत्पादन नीति का उल्लंघन किया है। आरएलईके ने यह भी कहा है कि राज्य में बिजली की कमी का उद्योगों के विकास पर विपरीत असर पड़ेगा। इससे लोगों को रोजगार के अवसरों से वंचित होना पड़ेगा।

पिछले महीने सरकार ने भागीरथी पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं पर तगड़े विरोध प्रदर्शन के बाद इन दोनों बांधों के निर्माण काम को रोकने का फैसला किया था। अग्रवाल के अभियान को संघ परिवार के संगठनों का पूरा समर्थन मिला था। पाला मनेरी और भैरो घाटी परियोजना राज्य सरकार के स्वामित्व वाली उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड को सौंपी गई थीं। दोनों परियोजनाओं के लिए 5200 करोड़ रुपये का निवेश किया जाना था। राज्य की प्रमुख जल विद्युत परियोजनाओं में पाला मनेरी, भैरो घाटी, लोहारी नागपाला और जद गंगा शामिल हैं।

First Published - July 14, 2008 | 10:34 PM IST

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