बेहतर मानसून की संभावनाओं के बीच पटना स्थित चावल विकास निदेशालय के निदेशक एस सी दिवाकर से बिजनेस स्टैंडर्ड के पवन कुमार सिन्हा ने बातचीत की।
इस बार मानसून से किस तरह की उम्मीदें हैं?
इस साल सूबे के विभिन्न इलाकों में मानसून ने समय से पहले ही दस्तक दे दी है। अगर मानसून इसी तरह अपना रंग दिखाता रहा तो इस साल चावल की अच्छी पैदावार होने की पूरी उम्मीद है। समय से पहले आई बारिश की वजह से राज्य के कई इलाकों में नर्सरी का काम पहले ही शुरू चुका है। मध्य जुलाई से धान के पौधों की रोपाई भी शुरू हो जाएगी।
धान की खेती के लिए सरकार क्या पहल कर रही है?
राज्य के प्रत्येक गांवों में रह रहे कम से कम दो किसानों को राज्य सरकार द्वारा छह-छह किलो बीज मुफ्त मुहैया कराया गया है। राज्य के किसान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के जरिए काफी लाभांवित हो रहे हैं। इस मिशन के माध्यम से जरूरतमंद किसानों को कृषि के आधुनिक उपकरण, ट्रैक्टर, पानी की मोटर आदि की व्यवस्था की जा रही है।
धान की किस्मों और क्षेत्रों के बारे में बताइए?
धान की किस्मों में मंसूरी, बासमती, कोमल, राजेंद्र-1, सोनम, सोनाचूर, सुजाता प्रमुख हैं। इनके बीजों की कीमत औसतन 200-350 रुपये प्रति 6 किलो है। बिहार के पटना, नवादा, आरा, रोहतास, गया, बिहटा, मुंगेर, भागलपुर और औरंगाबाद आदि जिलों में चावल की अच्छी पैदावार होती है।
पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों क्या असर पड़ेगा?
राज्य में बिजली एक मूल समस्या है। अब क्योंकि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी गई है इसलिए इसका कृषि पर तो थोड़ा बहुत असर तो जरूर पड़ेगा। लेकिन यहां के किसानों को पेट्रोल-डीजल के मुकाबले बाढ़ और सूखे की मार ज्यादा झेलनी पड़ती है। लिहाजा सरकार को इससे निपटने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे।
इस साल कैसी पैदावार की उम्मीद है?
आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल राज्य में प्रति हेक्टेयर धान की खेती पर 15,145 रुपये खर्च किए गए थे जबकि सरकार को 18,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आमदनी हुई थी। लिहाजा राज्य सरकार को प्रति हेक्टर 3,000 रुपये का शुध्द लाभ हुआ था। अगर पिछले साल की तरह यहां बाढ़ जैसी कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है तो इस साल राज्य में चावल की रिकार्ड पैदावार होगी।