मध्य प्रदेश के सिरौंज में पंजादरी का (कालीन बनाने का उद्योग) छोटे स्तर का बड़ा व्यवसाय अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।
सिरौंज का कालीन उद्योग बढ़ती मंहगाई और राज्य सरकार द्वारा किसी भी तरह की सहायता न मिल पाने के कारण दम तोड़ता नजर आ रहा है। सिरौंज में पंजादरी की शुरुआत 3 सौ वर्ष पहले मुगल काल में हुई थी। आज इस व्यवसाय के मात्र 40 कारीगार सिरौंज में बचे है।
खास बात यह है कि इन कारीगारों के लिए कोई दूसरा जीविका का साधन भी नहीं है।एक समय ऐसा था जब सिरौंज के हाजीपुर मोहल्ले में लगभग 300 परिवार पंजादरी के कारोबार से जुड़े हुए थे। पंजादरी बनाने वाले एक कारीगर अब्दुल गफ्फार का कहना है कि ‘लगातार बढ़ती मंहगाई, बिजली की कटौती, बढ़ती लागत से हमारे कारोबार में कमी आई थी। यहीं नहीं
सरकारी स्वामित्व की हस्तशिल्प विकास निगम और मध्य प्रदेश खादी भंडार ने हमें 10 सालों से सांसत में डाल रखा है और साथ ही बाजार में सिंथेटिक कालीन से बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने हमारी समस्याओं को और बढ़ा दिया है। अब हम अपना तैयार माल केवल ग्रामीण इलाकों में ही बेच पा रहें है।’
आज हालात ऐसे हो गए है कि कई पंजादरी कारीगरों को जीविका कमाने के लिए श्रमिक बनना पड़ रहा है। पिछले कुछ समय से रुई के दामों में भी अप्रत्याशित वृद्वि हुई है। आज के समय साढ़े चार किलोग्राम रुई के दाम 65 रुपये से बढक़र 175 रुपये हो गए है।
यहीं नहीं एक दरी का निर्माण करने में करीब दो कारीगरों को दो दिनों तक काम करना पड़ता है तब कहीं जाकर 300 से 350 रुपये की एक साधारण दरी का निर्माण होता है। लेकिन लागत ज्यादा होने के बावजूद क्षेत्रीय इलाकों में यह दरी केवल 200 से 250 रुपये में ही बेची जा पाती है।
पंजादरी का काम छोड़कर दिहाड़ी में मजदूरी करने वाले एक कारीगर रफीक खान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि एक समय ऐसा था जब हमनें खादी भंडार की भारी मांग को काफी सस्ती दरों में पूरा किया था। हमनें खादी भंडार को 13 रुपये वर्गफीट की दर से दरी के बड़े-बड़े आर्डरों को पूरा किया है। लेकिन आज हमारे पास कोई सरकारी खरीदार भी नहीं है।
उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा था जब हाजीपुर मोहल्ले में 400 सौ 500 दरियों का निर्माण किया जाता था और इन्हें पाकिस्तान को निर्यात कर दिया जाता था। लेकिन आज परिस्थितियां एक दम बदल गई है। आज खरीदार नहीं मिलने के कारण हाजीपुर मोहल्ले में मुश्किल से 15 से 20 दरियों का निर्माण किया जा सकता है।
हाजीपुर मोहल्ले मे ही अपना कारोबार खत्म कर चुके काले खान ने बताया कि दिग्विजय सिंह के अलावा मध्य प्रदेश के किसी भी मुख्यमंत्री ने इस उद्योग के हालातों को सुधारने के लिए किसी भी तरह का प्रयास नहीं किया है।