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मंदी में मृगनयनी की मरीचिका

Last Updated- December 10, 2022 | 8:30 PM IST

मध्य प्रदेश में चमड़े की कलाकृतियां बनाने वाले हस्तशिल्पियों पर भी अब मंदी का असर पड़ने लगा है।
हालांकि यह कारोबार छोटे स्तर का है, लेकिन मंदी के कारण तेजी से सिमट रहा है। इंदौर के पास के इलाके परदेसीपुरा में 25 साल पहले राजस्थान से आए इन हस्तशिल्पियों ने इस जगह को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई है। यहां आकर बसने के बाद उनकी इस कला को लघु उद्योग का दर्जा मिला।
निर्यात कारोबार से होने वाली उनकी सालाना कमाई लगभग 15 करोड़ रुपये के आसपास पहुंच गई थी। लेकिन तभी मंदी और निर्यात कानून और कड़ा होने से इस कारोबार की हालत खराब होने लगी।
आर्थिक मंदी से जूझ रहा अमेरिका इंदौर के इस लघु उद्योग के उत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार है।
इंदौर के कई हस्तशिल्पी खिलौने से लेकर बड़े-बड़े आकार के चमड़े के जानवर भी बनाते हैं। इसके लिए हैदराबाद से चमड़ा मंगाया जाता है। इस उद्योग के कारण कई लोगों को रोजगार भी मिला है। यहां बकरी और भेड़ के चमड़े को जड़ी-बूटियों से साफ करने के बाद ही उत्पाद बनाए जाते हैं। यहां चमड़े के उत्पाद बनाने की पूरी प्रक्रिया में किसी भी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
विदेश में यहां बने भालू, ऊंट, चीता, हिरण, हाथी, गैंडा, घोड़ा, शेर, बंदर और जेबरा की काफी मांग रहती है। मंदी के साथ ही भारी बिक्री कर और अमेरिकी सरकार द्वारा इन उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगने के बाद कलाकारों और निर्यातकों के लिए हालात और भी खराब हो गए हैं।
चमड़े से बने जानवरों का निर्यात करने वाली कंपनी एनिमल फीगर के आनंद चौकसी ने बताया, ‘हाल में ही अमेरिकी सरकार ने चावल भूसी भरे हुए चमड़े के जानवरों के आयात पर रोक लगा दी है। हमें चावल भूसी का विकल्प ढूंढना होगा। लेकिन फिलहाल हमारे पास जो माल है उसे हमें समुद्र में डुबोना पड़ेगा।’
इन उत्पादों के निर्यात से जुड़े मुशीर खान ने बताया, ‘आज से 10 साल पहले यह अच्छा कारोबार हुआ करता करता था, लेकिन अब कुछ मुश्किलें होने लगी हैं। मंदी ने भी इस कारोबार पर काफी हद तक असर डाला है। अमेरिका में इंदौर में बने चमड़े के जानवरों और खिलौनों की काफी मांग है। भारत सरकार को इस उद्योग से जुड़े निर्यातकों और कलाकारों के लिए और बाजार ढूंढने की जरूरत है।’
हालांकि राज्य ग्रामीण उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय इस बात से सहमत नहीं हैं कि इस उद्योग के निर्यात कारोबार पर मंदी का असर पड़ा है। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि मंदी के कारण इस उद्योग के निर्यात कारोबार पर कोई असर पड़ा है। हम इस कारोबार से जुड़े हस्तशिल्पियों के लिए नए बाजार ढूंढ रहे हैं, ताकि इस कला को ज्यादा से ज्यादा प्रचार मिले।’
वैसे तो अभी तक राज्य सरकार ने भी इस उद्योग को कोई स्तर नहीं मुहैया कराया है। लेकिन सरकार इन उत्पादों को अपने शोरूम मृगनयनी के जरिए एक बड़ा प्लेटफार्म मुहैया कराने की योजना बना रही है। साथ ही इससे जुड़े हस्तशिल्पियों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेलों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही है।
राज्य ग्रामीण उद्योग विभाग के सचिव एम ए खान ने बताया, ‘केंद्र सरकार ने हस्तशिल्प विकास आयुक्त के जरिए हमें सहायता देने की पेशकश की है। हम 2 करोड़ रुपये की लागत से इंदौर के पोलो ग्राउंड में कच्चे माल का बैंक बनाने की योजना बना रहे हैं। इससे स्थानीय हस्तशिल्पियों को आसानी से कच माल उपलब्ध हो सकेगा।’
उन्होंने बताया, ‘हाल ही में इंदौर में हुए विक्रेता-खरीदार सम्मेलन में लगभग 60 लाख रुपये के ऑर्डर मिले हैं। इसके साथ ही ब्राजील और फ्रांस के कारोबारियों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है।
हुनर पर पड़ रही है मंदी की गाज
चमड़े की कलाकृतियों पर पड़ रही मंदी की मार
चमड़ा हस्तशिल्प को मिला हुई था लघु उद्योग का दर्जा
खासतौर पर चमड़े के खिलौनों की होती है मांग
बिक्री कर और अमेरिका से आयात पर प्रतिबंध ने की हालत खराब

First Published - March 18, 2009 | 9:04 PM IST

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