मध्य प्रदेश के महेश्वरी साड़ी का कारोबार कोरोना की मार से उबर कर धीरे धीरे पटरी पर आ रहा है। लेकिन कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने इस उद्योग खासकर बुनकरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। होलकर वंश की देवी अहिल्याबाई ने कुछ मेहमानों को तोहफा देने के लिए सूरत, मालवा, हैदराबाद जैसे शहरों से बुनकरों को महेश्वर में बसाया था।
यहां बनी साड़ियां जीवंत, चटकीले रंग, धारीदार या चेकनुमा बॉर्डर, खास ढंग की किनारी, सुंदर डिजाइन की वजह से पूरी दुनिया में पहचानी जाती हैं। महेश्वर में करीब 4,500-5,000 हैंडलूम हैं। जिसमें से 3,500-4,000 हैंडलूम ही चल रहे हैं। इनमें 10 से12 हजार बुनकर और सहायक काम कर रहे हैं। महेश्वरी साड़ी का सालाना कारोबार 100 से 120 करोड़ रुपये है। महेश्वरी साड़ियां प्लेन होती हैं।
लेकिन इनके बॉर्डर पर फूल, पत्ती, हंस, मोर के सुंदर डिजाइन के साथ ही महेश्वर के किले, महल, मंदिर आदि पर बने डिजाइन भी रहते हैं। महाराष्ट्र के कोल्हापुर और नागपुर में इन साड़ियों का बड़ा थोक बाजार है। वहां विवाह की रस्म के दौरान दुल्हन को यह साड़ी पहनाई जाती है। दुर्गा पूजा, मकर संक्रांति, अनंत चौदस आदि त्योहारों पर भी महेश्वरी साडि़यां खूब पहनी जाती हैं। महेश्वर स्थित गुजराती हैंडलूम के मालिक राहुल कृष्णकांत गुजराती ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि कोरोना के कारण पहले तो महेश्वरी साड़ियों का कारोबार ठप हो गया था।
अब शादियां व त्योहार मनाना शुरू होने के साथ ही इन साड़ियों की मांग बढ़ने से यह कारोबार कोरोना की मार से उबर रहा है। महेश्वरी साड़ी कारोबार से जुड़ी रहवा सोसाइटी के पंकज कहते हैं कि बिक्री कोरोना के पूर्व स्तर के 80 फीसदी तक पहुंच चुकी है। महेश्वरी साड़ी बुनने वाले हैंडवीव इंडिया के अजीज अंसारी ने बताया कि कोरोना खत्म होने से साडि़यों की मांग पहले से काफी बढ़ी है। कोरोना के पहले साल की तुलना में बिक्री दोगुनी तक हो रही है। साडी निर्माता देवेंद्र धकले ने कहा कि उधारी पर ऑर्डर ज्यादा मिल रहे हैं।
कच्चे माल की बढ़ती कीमतों से मुश्किल में बुनकर
महेश्वरी साड़ी का कारोबार कोरोना की मार उबर कर पटरी पर आ रहा है। लेकिन महंगे कच्चे माल ने उद्योग की मुसीबत बढ़ा दी है। अजीज अंसारी कहते हैं कि कच्चे माल के दाम दोगुने हो चुके हैं। करीब 3,000-5,000 रुपये में मिलने वाला रेशम अब 6,000-9,000 रुपये किलो मिल रहा है।
सूत का बंडल 1,050 के बजाय 1,800 रुपये का हो गया है। जरी का जो बंडल पहले 400 से 650 रुपये में मिलता था, वो अब 750 से 1,200 रुपये में मिलता है। पहले जो साड़ी 4,000 रुपये में बन जाती थी, वो अब कच्चा माल महंगा होने से 5,500 रुपये में बनती है। साड़ी बुनकर देवेंद्र धकले कहते हैं कि पहले साड़ी की कीमत में 60 से 70 फीसदी हिस्सा बुनाई मजदूरी का था। कच्चा माल महंगा होने से अब यह घटकर 50 फीसदी पर आ गया है।
मांग तो बढ़ी है। लेकिन लोग उधारी पर माल ज्यादा मांग रहे हैं। जिसका भुगतान 4-5 महीने बाद मिलेगा। ऐसे में कच्चा माल महंगा होने से साड़ी बनाने के लिए इसे खरीदने के लिए पैसे की आवश्यकता पूरी करने में दिक्कत आ रही है। बाजार से पैसा उठाने पर ब्याज भरना होगा। जिससे मुनाफा कम होगा। पहले 500 साड़ी 7-8 लाख रुपये में बन जाती थी, अब 12 से 13 लाख रुपये चाहिए। व्यापार मेले, प्रदर्शनी और बाहर साड़ी बेचने जाना भी महंगा हो गया है।
बस किराये से लेकर होटल में ठहरना और खाना महंगा हो गया है। पहले जो साड़ी 1,500-1,600 रुपये में बनती थी वो अब 2,000-2,200 रुपये में बन रही है। पहले इस साड़ी पर 400-500 रुपये मुनाफा मिल जाता था। अब 300 रुपये ही मिल पा रहे हैं। महेश्वरी साड़ी 1,500 रुपये से शुरू होकर 20,000 रुपये तक की बिकती है। लेकिन ज्यादातर 3,000 से 6,000 रुपये कीमत की साड़ियां बिकती हैं।