मंदी की मार से उत्तर प्रदेश के उद्योगों को बचाने के लिए राज्य सरकार एक कार्य योजना तैयार की है।
कार्य योजना में सबसे ज्यादा जोर उन उद्योगों को राहत देने पर है जिन्हें प्रदेश सरकार ने अपने यहां जमीन उपलब्ध करायी है। सरकार की पूरी कोशिश इन उद्योगों का उत्तर प्रदेश से पलायन रोकने पर है और इसके लिए सहूलियतों का पिटारा खोला है।
मंदी के फैलते असर के मद्देनजर उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने ग्रेटर नोएडा के कार्यपालक अधिकारी पंकज अग्रवाल की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी जिसमे नोयडा के कार्यपालक अधिकारी मोहिंदर सिंह के अलावा गोरखपुर, लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्षों को भी शामिल किया गया है।
समिति ने व्यापक अध्ययन के बाद अपनी रिर्पोट शासन को सौंप दी है जिस पर जल्दी ही फैसला लिया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि रिर्पोट के आधार पर एक दस्तावेज तैयार कर उसे कैबिनेट के सामने रखा जाएगा। समिति के अध्यक्ष पंकज अग्वाल ने अपनी रिर्पोट औद्योगिक विकास आयुक्त वी के शर्मा को सौंप दी है।
रिर्पोट में राज्य में उद्योगों को बचाने के लिए कई सिफारिशें की गयी हैं। इनमे प्रमुख है औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यमियों को आवंटित भूखंडों का पैसा जमा किए जाने की अवधि को लंबा किया जाना।
समिति का मानना है कि पूंजी की कमी को देखते हुए राज्य सरकार भूखंडों की किस्तें लंबी अवधि के लिए कर दे जिससे कि समय से से किस्तें न दे पा रहे लोग डिफाल्टर होने से बच सकें। साथ ही समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि दंड ब्याज को 5 फीसदी से घटाकर 2.5 फीसदी किया जाए।
इसके साथ ही यह भी सिफारिश की गयी है कि 20000 वर्ग मीटर से ज्यादा के भूखंड के मालिक अपने पास की अतिरिक्त जमीन को प्लाट काटकर उसे बेंच सकें। औद्योगिक क्षेत्रों में जो आवासीय भवन बनाए जाएं उनमें कम से कम अड़चनें पैदा की जाए।
नक्शा पास कार कर काम शुरु करने वालों को उनके पास पूंजी की उपलब्धता के आधार पर कई चरणों में निर्माण पूरा करने की इजाजत दी जाए।