पुणे जिले में चाकण के वाहन केंद्र में ऐसे विज्ञापनों की भरभार है जिसमें औद्योगिक शेड को किराये पर देने की पेशकश की गई है। इस क्षेत्र में विनिर्माण गतिविधियां धीमी हो गई हैं और इसके खरीदारों की तादाद कम है। वेतन में देरी और नौकरी गंवाने की बातें अब यहां बिल्कुल आम हैं क्योंकि छोटे और मझोले उद्यम (एसएमई) कोविड-19 की दूसरी लहर के असर से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
पाहवा मेटलाटेक के प्रबंध निदेशक ललित कुमार पाहवा कहते हैं, ‘महामारी एक बाढ़ की तरह है। जो लोग कमजोर और अक्षम हैं वे इसमें बह गए जबकि मजबूत बच गए हैं।’ वाहन उद्योग के दिग्गज पाहवा ने 2014 में चाकण में अपना उद्यम शुरू किया था। उनकी कंपनी तेल एवं गैस और पेंट कारखानों में इस्तेमाल होने वाले नॉन-स्पार्किंग हैंड टूल बनाती हैं। उनकी कंपनी की तेज वृद्धि होती रही है लेकिन महामारी की दो लहरों के कारण इसकी रफ्तार कम हो गई। वह कहते हैं, ‘हाल ही में अप्रैल-जून तिमाही के दौरान हमने अपने कारोबार में 30-40 प्रतिशत क्रमिक प्रभाव देखा।’ जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी का असर हमारे मार्जिन पर भी पड़ा है। लेकिन वह दूसरी तिमाही में बेहतर करने की उम्मीद करते हैं क्योंकि फिर से ऑर्डर मिल रहे हैं। पाहवा का कहना है कि उनकी कंपनी ने बैंकों से आपातकालीन ऋ ण लिया और न तो कर्मचारियों के वेतन में कटौती और न ही उन्हें कंपनी से निकाला। हालांकि दूसरे लोग ऐसी तकदीर वाले नहीं निकले। देश भर में कोविड महामारी फैलने की वजह से एक के बाद एक राज्यों ने विभिन्न स्तर के प्रतिबंधों की घोषणा की और इसका असर चाकण पर भी देखने को मिला। देश के कुल वाहन उत्पादन में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है और चाकण ही वाहनों का मुख्य केंद्र है जहां महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, बजाज ऑटो, मर्सिडीज-बेंज और फोक्सवैगन आदि के संयंत्र यहां हैं। इस क्षेत्र में मौजूद एसएमई इकाइयां राज्य के बाहर ऑटो निर्माताओं के लिए भी प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं।
मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) ने कोविड सुरक्षा और वाणिज्यिक कारणों की वजह से अपना उत्पादन कम किया है। वाहन डीलरों ने भी विभिन्न राज्यों के लॉकडाउन नियमों का पालन करते हुए अपनी दुकानें बंद कर दीं जिससे मांग कम हो गई है। ओईएम के उत्पादन में कटौती की वजह से मई में वाहनों के छोटे और मझोले उद्योग में विनिर्माण गतिविधियां 30-40 फीसदी तक कम हो गईं और अब यह फरवरी-मार्च 2021 के स्तर के 70 फीसदी तक बढ़ गया है।
पहली लहर के बाद जो प्रवासी कामगार इन कारखानों में लौटे थे, उन्होंने फिर से पुणे छोड़ दिया और वे देश के उत्तरी और पूर्वी भागों में अपने गृहनगर जाने लगे। ठेका और दिहाड़ी मजदूरों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि वाहन क्षेत्र के लघु एवं मझोले उद्योगों के पास काफी कम काम या बिल्कुल ही काम नहीं बचा।
पिंपरी-चिंचवड से सटे औद्योगिक क्षेत्र में भी ऐसी ही स्थिति है जहां करीब 11,000 सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) हैं। इनमें से करीब आधे वाहन क्षेत्र से जुड़े हैं और 35 फीसदी इंजीनियरिंग के काम से संबद्ध हैं। वाहन और निर्माण उपकरण कंपनियों को कलपुर्जों की आपूर्ति करने वाली कंपनी प्लेटमास्टर के अधिकारी श्रीनिवास राठी कहते हैं, ‘अप्रैल से हमारा काम 40 फीसदी के स्तर पर चल रहा है। जनवरी और फरवरी में कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन मार्च से गिरावट आनी शुरू हो गई जो अब तक जारी है।’ राठी की कंपनी ने 100 फीसदी उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए फरवरी और मार्च में कच्चे माल की खरीद की लेकिन अब अप्रैल से विनिर्माण गतिविधि धीमी होने की वजह से इन्वेंट्री काफी ज्यादा है। वह कहते हैं, ‘हम लाभ तभी कमा पाते हैं जब हमारी मशीनें चौबीस घंटे काम करती हैं। इस वक्त सब कुछ बुरी हालत में है।’
पिंपरी-चिंचवड स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष संदीप बेलसारे कहते हैं, ‘महाराष्ट्र सरकार ने इस साल के लॉकडाउन के दौरान उद्योगों को काम करने की अनुमति दी और कच्चे माल का इंतजाम करना मुश्किल था क्योंकि कई व्यापारियों ने काम बंद कर दिया था।’
उनका दावा है, ‘उद्योगों में इस्तेमाल हो रहे ऑक्सीजन को अस्पतालों में लाने से भी छोटे विनिर्माताओं की मुश्किल बढ़ गई। भारतीय रिजर्व बैंक ने मई में एमएसएमई की मदद के लिए एक फ्रेमवर्क की घोषणा की थी लेकिन इनमें से अधिकांश को फायदा नहीं मिल पाया है।’ बेलसारे का अनुमान है कि पिंपरी-चिंचवड क्षेत्र में 11,000 एमएसएमई में से लगभग 10 प्रतिशत पिछले 12 महीनों में बंद हो गए हैं क्योंकि कारोबार करना घाटे का सौदा बन गया है। उद्योग अब राज्य सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि तीसरी लहर से बचाव के लिए खुद को तैयार करे और जूझ रही इकाइयों को राहत दे। फेडरेशन ऑफ चाकण इंडस्ट्रीज के सचिव दिलीप बटवाल का कहना है कि वे संपत्ति कर और बिजली के शुल्क में राहत की मांग कर रहे हैं।
महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) पी अंबलगन कहते हैं, ‘हमने यह सुनिश्चित करने के उपाय किए हैं कि महामारी के दौरान उद्योगों की आपूर्ति शृंखला बाधित न हो और इससे रिकवरी में मदद मिलेगी।’ वह कहते हैं, ‘चाकण और पिंपरी चिंचवड में वाहन एसएमई का उत्पादन स्तर जून में 73 फीसदी था ।’
एक विश्लेषक बताते है कि जिस एसएमई के पास विविध ऑर्डर हैं और जो किसी भी एक उत्पाद पर निर्भर नहीं हैं, उसने अन्य के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। स्टील की कीमतों में वृद्धि और भुगतान की बढ़ाई गई समय-सीमा से भी चिंता बढ़ी है। पहली श्रेणी के आपूर्तिकर्ताओं पर सबसे कम प्रभाव पड़ा है जबकि दूसरी और तीसरी श्रेणी के आपूर्तिकर्ता बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि कम राजस्व की वजह से वाहन कलपुर्जे की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के परिचालन मुनाफा में 70 फीसदी क्रमिक गिरावट देखी जाएगी। हालांकि इक्रा ने 22 जून की रिपोर्ट में कहा, ‘अधिकांश वाहन कलपुर्जा आपूर्तिकर्ताओं को पर्याप्त नकदी देकर कोविड की दूसरी लहर के दौरान लॉकडाउन प्रतिबंधों से उबरने में मदद की जा सकती है और निर्यात से भी मदद मिलेगी।’
देश भर में प्रतिबंधों में ढील दिए जाने से मांग में सुधार देखी जा रही है। जून में थोक माल भेजने को लेकर भी कई गुना वृद्धि देखी गई है हालांकि इसका आधार अब भी कम है। इसकी रफ्तार जारी रहने की उम्मीद है। पुणे में वाहन कलपुर्जों की निर्माता कंपनी ऑटोलाइन इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक शिवाजी अखाडे कहते हैं कि सितंबर में गणेश चतुर्थी के साथ त्योहारी सीजन की शुरुआत होगी और इसके साथ ही बिक्री बढऩे के आसार हैं। फिलहाल उम्मीदें बरकरार हैं।