देश के विकसित राज्यों में शुमार महाराष्ट्र में बिजली का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।
हर साल 10 फीसदी की रफ्तार से बढ़ती बिजली की मांग आने वाले समय में राज्य के विकास में सबसे बड़ी बाधा बन सकती है। राज्य को चमकने के लिए 14,192 मेगावाट बिजली की जरूरत होती है।
लेकिन इसमें 3,895 मेगावाट की कमी राज्य के कई हिस्सों को अंधेरे में रखने के साथ ही साथ राज्य के विकास का पहिया भी धीमा कर दे रही है। आश्चर्यजनक बात यह है कि पिछले पांच सालों में राज्य में बिजली की मांग तो बढ़ी है लेकिन आपूर्ति में कोई खास फर्क नहीं आया है।
बिजली की संकट से परेशान राज्य को रत्नागिरी पावर प्रोजेक्ट से काफी उम्मीदें हैं। इस प्रोजेक्ट से राज्य के 500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली मिलने की आस जगी है। गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट का मई 2006 में पुनर्स्थापन किया गया, हालांकि इस परियोजना ने 2150 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता को अभी तक पूरा नहीं कर पाई है।
इसकी मुख्य वजह टरबाइन में प्राकृतिक गैस और तकनीकि खामियों की वजह से यह परियोजना अपने लक्ष्य से हमेशा कोसों दूर ही रही है। पिछले दो वर्षो के दौरान इस परियोजना से 100 मेगावाट से 900 मेगावॉट तक बिजली का उत्पादन किया गया है,जिसे राज्य 3.10 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से खरीदता है।
राज्य के पारस और पारली थार्मल पावर प्रोजेक्ट से उत्पादित होने वाली 500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली के कारण राज्य केउत्तरी हिस्से में होने वाली बिजली की किल्लत और बिजली की कटौती में कमी आई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में बिजली की मांग 14,192 मेगावाट तक पहुंच गई है।
लेकिन सरकार सिर्फ 10297 मेगावाट बिजली की आपूर्ति कर पाती है, यानी राज्य को 3,895 मेगावाट बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है। जबकि मई 2007 में 4642 मेगावाट बिजली की कमी का सामना राज्य को करना पड़ा था।
वही वर्तमान में बेहतर बिजली आपूर्ति प्रबंधन के चलते इस आंकड़े में 747 मेगावाट की कमी देखने को मिल रही है। राज्य के ग्रामीण और छोटे शहरों मेंआंख मिचौली का खेल खेल रही बिजली देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति नहीं हो पा रही है।
मुंबई में 2750 मेगावाट बिजली की मांग है लेकिन बिजली की कमी के चलते सिर्फ 2100 मेगावाट बिजली की आपूर्ति हो पा रही है यानी मुंबईकरों को भी 650 मेगावाट बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है।
मुंबई केमुलुंड एरिया में तो 6 से 8 घंटे तक की बिजली कटौती आम बात हो गी है। इसके चलते मुंबईकरों को प्रति यूनिट बिजली के लिए 10 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसके बावजूद शहर में त्योहारों एवं अन्य बड़े आयोजनों का लुत्फ मुंबईकर उठाने में पीछे नहीं रहते हैं।
जानकारों का कहना है कि अक्टूबर महीने में उमस भरी गरमी और त्योहारों का मौसम होने की वजह से दूसरे महीनों की अपेक्षा इस महीने में बिजली की मांग बढ़ जाती है।