मध्य प्रदेश में सरकार की कोशिशों के बावजूद छोटे और मझोले उद्योग (एसएमई) लालफीताशाही से मुक्ति नहीं पा सके। वर्ष 2008 के दौरान इस उद्योग से जुड़े कारोबारियों को कुछ इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा।
राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हालांकि व्यक्तिगत रूप से समस्याओं के समाधान में रुचि दिखाई, लेकिन नौकरशाही प्रक्रिया ने इस तेजी में भरपूर अडंगा डाला।
वर्ष 2008 के दौरान प्रवेश शुल्क कम किए जाने, चुंगी खत्म करने, करों का दोहराव रोकने, अलग से औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने, भंडार क्रय के नियमों में संशोधन, स्थानीय निकायों और जिला स्तर पर अनुमति लेने की समयावधि में विलंब, श्रम कानूनों में संशोधन, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सूची से 45 उद्योगों को बाहर करने जैसे मसलों पर कोई प्रगति नहीं हो सकी।
सीआईआई ने मांग की थी कि मध्य प्रदेश ग्रामीण अवसंरचना सड़क विकास अभियान के लिए 2005 से कोयले पर लगने वाला 5 प्रतिशत कर हटाया जाए, लेकिन यह मांग भी पूरी नहीं हुई।
मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ का कहना है कि उद्योग विभाग को एक ज्ञापन दिया गया था, जिस पर अभी तक कोई विचार नहीं हुआ है। एसएमई के एक अन्य संगठन एमपी स्माल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन का कहना है कि उनकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं नजर आती।
छोटे और मझोले उद्योगों को टीकमगढ़, इटारसी, ग्वालियर में अधिक जमीन दिए जाने की मांग की थी। एसएमई क्षेत्र ने भूमि आवंटन नियम- 1974 में संशोधन की मांग भी भुला दिया गया।
सामूहिक सुरक्षा, प्रशिक्षित कामगार उपलब्ध कराने, प्रभावी सिंगल विंडो सिस्टम और कागजी कार्यवाही को कम करने की मांग भी पूरी नहीं हो सकी।