देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है लेकिन कच्चे तेल के बढ़ते दाम, मौसम की प्रतिकूल स्थिति और वैश्विक बैंकिंग संकट के कारण चालू वित्त वर्ष के लिए लगाए गए वृद्धि अनुमान में गिरावट का खतरा है। वित्त मंत्रालय ने आज जारी अपनी ताजा मासिक आर्थिक समीक्षा में ये बातें कहीं।
मार्च महीने के मासिक आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट (Monthly Economic Review) में कहा गया है, ‘हम दोहराते हैं कि वित्त वर्ष 2024 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के लिए 6.5 फीसदी के हमारे पहले के अनुमान में बढ़त पर गिरावट का जोखिम हावी है।
ओपेक (OPEC) द्वारा अचानक उत्पादन में कटौती करने से अप्रैल में तेल के दाम बढ़ गए हैं। इसके साथ ही विकसित देशों में वित्तीय क्षेत्र में संकट से वित्तीय बाजार पर प्रतिकूल जोखिम बढ़ सकता है और इसका असर पूंजी प्रवाह पर पड़ा है। अल नीनो के अनुमान से देश में मॉनसूनी बारिश पर भी असर पड़ने का खतरा है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्यों का राजकोषीय मानदंड (fiscal parameters) मजबूत बना हुआ है और वित्त वर्ष 2023 के अप्रैल-फरवरी में राजस्व व्यय (revenue expenditure) और पूंजीगत व्यय ( capital expenditure) का अनुपात इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की कम है। इसमें कहा गया है कि केंद्र द्वारा पूंजीगत व्यय को बढ़ावा दिए जाने के बाद राज्यों ने भी चालू वित्त वर्ष के लिए महत्त्वाकांक्षी पूंजीगत व्यय के लक्ष्य की घोषणा की है और राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) का लक्ष्य सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के 3 से 3.5 फीसदी पर बने रहने की उम्मीद है।
समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है, ‘व्यय की गुणवत्ता में सुधार केंद्र द्वारा पूंजीगत व्यय और राजस्व व्यय को युक्तिसंगत बनाने से हुआ है। आर्थिक गतिविधियों में तेजी और राजस्व संग्रह बढ़ने से राज्य के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में और कमी आएगी।’
वित्त वर्ष 2024 के लिए केंद्र ने 10 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की घोषणा की है, जिनमें 1.3 लाख करोड़ रुपये का राज्यों को उनकी पूंजीगत जरूरतों के लिए बिना ब्याज के लंबी अवधि के लिए दिया जाएगा।
रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है और ताजा संकट से बैंकों पर असर पड़ा है, खास तौर पर विकसित देशों में, जिससे अनिश्चितता और बढ़ गई है।
अप्रैल 2023 के विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष (IMF) ने वैश्विक वृद्धि दर 2022 के 3.4 फीसदी से घटकर 2023 में 2.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। 2024 में मामूली सुधरकर 3 फीसदी रहने का उम्मीद जताई गई थी, जो 2022 से कम ही है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘ऊंची मुद्रास्फीति और वित्तीय सख्ती से वृद्धि की प्रक्रिया धीमी पड़ी है जिसका असर रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से लेकर कम से कम तीन साल तक आर्थिक गतिविधियों पर पड़ने की आशंका है। आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में अड़चन से वैश्विक व्यापार में कमी आने से भी वैश्विक वृद्धि में नरमी का दबाव बढ़ा है।’
समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2023 में मुद्रास्फीति का दबाव कम होने से आंतरिक वृहद आर्थिक स्थिति और मजबूत हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिंसों के दाम कम होने, सरकार के सक्रिय उपायों और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति को सख्त बनाए जाने से घरेलू बाजार में मुद्रास्फीति को कम करने में मदद मिली है।
कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मुख्य मुद्रास्फीति अभी भी ऊंची बनी हुई है जिससे केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत दरों में तेजी से बढ़ोतरी करने की संभावना है। अमेरिका और यूरोप में हाल में कुछ बैंकों के धराशायी होने से उनके केंद्रीय बैंकों की सख्त मौद्रिक नीति को लेकर सवाल भी खड़े हुए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय बैंकिंग तंत्र सिलिकन वैली बैंक (Silicon Valley Bank) और सिग्नेचर बैंक (Signature Bank) जैसी स्थिति से निपटने में सक्षम है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की अगुआई में बैंकों पर उचित निगरानी रखी जाती है और वित्तीय स्थायित्व पर हर छमाही बैंकों का मूल्यांकन किया जाता है।