facebookmetapixel
दूसरे चरण के लोन पर कम प्रावधान चाहें बैंक, RBI ने न्यूनतम सीमा 5 फीसदी निर्धारित कीभारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर जल्द सहमति की उम्मीद, ट्रंप बोले—‘हम बहुत करीब हैं’बीईई के कदम पर असहमति जताने वालों की आलोचना, मारुति सुजूकी चेयरमैन का SIAM के अधिकांश सदस्यों पर निशानाइक्जिगो बना रहा एआई-फर्स्ट प्लेटफॉर्म, महानगरों के बाहर के यात्रियों की यात्रा जरूरतों को करेगा पूरासेल्सफोर्स का लक्ष्य जून 2026 तक भारत में 1 लाख युवाओं को एआई कौशल से लैस करनाअवसाद रोधी दवा के साथ चीन पहुंची जाइडस लाइफसाइंसेजQ2 Results: ओएनजीसी के मुनाफे पर पड़ी 18% की चोट, जानें कैसा रहा अन्य कंपनियों का रिजल्टअक्टूबर में स्मार्टफोन निर्यात रिकॉर्ड 2.4 अरब डॉलर, FY26 में 50% की ग्रोथसुप्रीम कोर्ट के आदेश से वोडाफोन आइडिया को एजीआर मसले पर ‘दीर्घावधि समाधान’ की उम्मीदछोटी SIP की पेशकश में तकनीकी बाधा, फंड हाउस की रुचि सीमित: AMFI

कृषि को डब्ल्यूटीओ से अलग करने की किसानों की मांग

Last Updated- December 07, 2022 | 5:42 AM IST

देश भर के 30 से अधिक किसान संगठनों ने कृषि क्षेत्र को विश्व व्यापार संगठन से अलग करने की मांग की है।


उनका कहना है कि ऐसा करने पर कृषि व गैर कृषि कार्यों से जुड़े 80 करोड़ लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। फोरम फॉर बायोटेक्नोलॉजी एंड फूड सिक्युरिटी एंड अंकटाड द्वारा आयोजित सम्मेलन में किसान नेताओं ने कहा कि हाल ही में कृषि व गैर कृषि बाजार में पहुंच को लेकर जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है उसे स्वीकार कर लेने पर देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

इस ड्राफ्ट में भारतीय बाजार को सस्ती आयातित वस्तुओं के लिए खोलने की सिफारिश की गयी है। जुलाई के पहले सप्ताह में इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन की बैठक होने की संभावना है। महाराष्ट्र शेतकरी संघटना के नेता विजय जवानडिया कहते हैं, ‘किसान नेताओं ने इस ड्राफ्ट के प्रस्तावों को एक सिरे से खारिज कर दिया है। और सरकार ने गुजारिश की है कि भारत को इस वार्ता से अलग रखा जाए।’

उन्होंने बताया कि बीते दिनों विदर्भ में कपास के किसानों ने जो खुदकुशी की, वह इसी रियायत का नतीजा था। पंजाब के भारतीय किसान यूनियन (एक्ता) के नेता सुखदेव सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि पंजाब किसी भी कीमत पर अपनी खेती को विश्व व्यापार संगठन के उदारीकरण का शिकार नहीं होने देगा। उन्होंने कहा कि अगर भारत इस संधि को स्वीकार लेता है तो देश को खाने के लिए भीख मांगने की नौबत आ जाएगी। इस ड्राफ्ट से मत्स्य पालन पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे है।

नेशनल फिशवर्कर्स फोरम के नेता एनडी कोली के मुताबिक डाफ्ट के प्रस्तावों को स्वीकार करना सुनामी से ज्यादा खतरनाक होगा। देश के मछली पालन क्षेत्र के विकास के लिए सरकारी निवेश की जरूरत है। वे कहते हैं कि जापान व कोरिया से मछली के आयात के कारण सैकड़ों मछली पालकों की रोजी-रोटी संकट में आ गयी है।

इन किसान नेताओं को इस बात की आशंका है कि कृषि के क्षेत्र में अगर दोहा वार्ता को सफल तरीके से अंजाम दे दिया जाता है तो विकासशील राष्ट्रों में खाद्य के लिए दंगे होंगे। उन्होंने कहा कि विकसित देशों ने इस स्थिति में भी अपने यहां कृषि रियायत में किसी प्रकार की कटौती नहीं की है।

First Published - June 15, 2008 | 10:54 PM IST

संबंधित पोस्ट