मध्य प्रदेश में छोटे और मझोले उद्यमों द्वारा लिए जाने वाले ऋण में कमी आई है। और इसकी मुख्य वजह यह है कि कृषि आधारित उद्योग अब बैंकों से कम कर्ज उठा रहे हैं। जून 2008 के आंकड़ों के अनुसार छोटे और मझोले उद्योगों द्वारा लिया जाने वाला ऋण 5772.97 करोड़ रुपये से घटकर 5445.06 करोड़ रुपये रह गया है यानी इसमें 5.86 फीसदी की गिरावट आई है।
एक बैंक कर्मी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘ऋण माफी और डेब्ट में छूट देने की योजनाओं के बाद से ही विभिन्न क्षेत्रों द्वारा कम ऋण लिया जा रहा है।’ हालांकि इसके बावजूद उद्योग जगत के सूत्रों के अनुसार बैंकों से ऋण लेना छोटे दर्जे के उद्योगों के लिए अब भी एक सपने की तरह है। राज्य सरकार की ओर से इसे बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ के एक सदस्य ने बताया कि राज्य में किसी व्यक्ति के लिए स्वरोजगार के तहत उद्योग शुरू करना इतना आसान नहीं है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश बिजली बोर्ड (एमपीएसईबी) किसी छोटे आकार की इकाई को बिजली का कनेक्शन देने के लिए 2 लाख रुपये वसूलती है और अगर ऐसी किसी छोटे श्रेणी की उद्योग इकाई को ग्रामीण इलाके में भी लगाना है तो 10 लाख रुपये की पूंजी की आवश्यकता होती है।
सिर्फ पैसे की किल्लत ही एक वजह नहीं है जो राज्य में एसएमई क्षेत्र के विकास को बाधित करते हैं बल्कि औद्योगिक इलाकों और विकास केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी एसएमई क्षेत्र के विकास में रोड़ा अटकाते हैं। इस सदस्य ने बताया कि मध्य प्रदेश में एमएसएमई क्षेत्र के लिए भूमि अधिग्रहण भी एक बड़ी चुनौती है। अगर उद्योग इकाई लगाने के लिए जमीन का अधिग्रहण कर भी लिया जाता है तो भी लैंड एरिया स्टांप ड्यूटी का बोझ काफी अधिक है।
यह शुल्क भारत के किसी दूसरे राजय की तुलना में काफी अधिक है। साथ ही इन उद्योगों के लिए हाई टेंशन पावर कनेक्शन लेने के लिए 30 स्तरों की एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ये सारे माहौल ऐसे हैं जो छोटे और लघु उद्योगों के लिए अनुकूल नहीं हैं और यही वजह है कि इस क्षेत्र में लगातार गिरावट देखी जा रही है।
जून 2008 के आंकड़ों के ही अनुसार जहां एसएमई क्षेत्र द्वारा एसबीआई समूह बैंकों से लिया गया ऋण 2294.43 करोड़ रुपये था वहीं दूसरे वाणिज्यिक बैंकों से यह ऋण 2635.15 करोड़ रुपये के करीब था।
वहीं दूसरी ओर निजी बैंकों से 338.71 करोड़ रुपये का ऋण लिया गया था। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से 176.27 करोड़ रुपये का ऋण बांटा गया। हालांकि सहकारी बैंकों से एसएमई क्षेत्रों ने कोई कर्ज
नहीं उठाया।