कपड़ा उद्योग ने उत्तर प्रदेश सरकार से एक अलग टेक्सटाइल नीति बनाने की मांग की है।
उद्योग का कहना है कि मंदी के दौर में कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अलग नीति का होना जरूरी है। राज्य सरकार मौजूदा समय में अगले पांच सालों के लिए औद्योगिक नीति बनाने में जुटी हुई है वहीं टेक्सटाइल नीति का मसला पिछले कई सालों से लटका पडा है।
अब तक टेक्सटाइल को औद्योगिक नीति में ही जगह दी जाती रही है पर उद्योग जगत का मानना है कि इस क्षेत्र से लाखों को लोगों को रोजगार मिलता है इस वजह से टेक्सटाइल नीति को अलग से तैयार करने की जरूरत है।
उप्र निर्यात संवर्द्धन ब्यूरो (ईपीबी) के संयुक्त आयुक्त प्रभात कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अनुमान के मुताबिक उप्र से सालाना 4,000 करोड़ रुपये का कपडा निर्यात किया जाता है जिसमें 1,000 करोड़ रुपये का अप्रत्यक्ष निर्यात भी शामिल है।’
पश्चिमी देशों में टेक्सटाइल क्षेत्र की हालत खस्ता होने के कारण अब उनकी निर्भरता एशियाई देशों पर बढ़ी है और इसे देखते हुए यहां विकास की असीम संभावनाएं नजर आती हैं। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के स्थानीय निदेशक अमिताभ ने कहा कि अगर बेहतर माहौल उपलब्ध कराया जाए तो टेक्सटाइल उद्योग में विकास की काफी संभावनाएं नजर आती हैं।
दिसंबर 2005 में राज्य सरकार ने उत्तर भारतीय टेक्सटाइल शोध संगठन को टेक्सटाइल नीति तैयार करने के आदेश दिए थे। संगठन ने उप्र टेक्सटाइल नीति 2006-11 का दस्तावेज जमा भी करा दिया था। पर तब से लेकर अब तक इस पर कोई काम नहीं हो पाया है।
