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क्या विपरीत हालात से बाहर निकल पाएगा चीन?

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने चीन से सामाजिक सुरक्षा दायरा मजबूत करने और घरों में उपभोग बढ़ाने के लिए ढांचागत सुधार लागू करने की अपील की है।

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जनक राज   
Last Updated- October 30, 2024 | 11:15 PM IST

चीन पहले आर्थिक चुनौतियों से निपटने में सफल रहा है मगर इस बार स्थिति काफी अलग है। बता रहे हैं जनक राज

चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए कुछ समय पहले भारी भरकम मौद्रिक एवं राजकोषीय प्रोत्साहनों की घोषणा की। वर्ष 2024 में 5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि का उसका लक्ष्य खतरे में दिख रहा था क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई थी और 2014 की दूसरी तिमाही में उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत रह गई थी, जो पहली तिमाही में 5.3 प्रतिशत थी। तीसरी तिमाही के आंकड़े राहत पैकेज की घोषणा के बाद आए और उसमें वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत ही रही।

कोविड महामारी के बाद चीन की अर्थव्यवस्था को कठिनाइयों से गुजरना पड़ा है मगर इसमें सुस्ती उससे पहले ही दिखने लगी थी। चीन में आर्थिक वृद्धि दर 2019 में कम होकर मात्र 6 प्रतिशत रह गई, जो 2010 में 10.6 प्रतिशत रही थी।

कोविड में सख्त लॉकडाउन (जीरो कोविड पॉलिसी) से संकट और गहरा गया। हालांकि मौद्रिक एवं राजकोषीय उपायों से चीन की वृद्धि दर को निकट भविष्य में ताकत मिल सकती है मगर उसके सामने तीन विकराल और बुनियादी समस्याएं हैं।

पहली, चीन में हमेशा निवेश के बल पर वृद्धि के मॉडल को तरजीह दी गई है। इसके उलट भारत और तेजी से उभरती कई अन्य बाजार अर्थव्यवस्थाओं में कुल मांग खपत पर आधारित रही है।

चीन में निवेश (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सकल नियत पूंजी सृजन) 2002 के बाद खासा बढ़ा है और 2002 से 2008 के बीच इसकी औसत दर 38.3 प्रतिशत रही है। इससे पहले के 22 वर्षों (1980 से 2001) के दरम्यान वहां निवेश 30.4 प्रतिशत औसत दर से बढ़ा था। 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद निवेश में और तेजी आ गई तथा 2009 से 2022 तक यह औसतन 43 प्रतिशत दर से बढ़ा।

किंतु 2013 में 44.5 प्रतिशत की रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंची निवेश दर 2022 में कम होकर 41.9 प्रतिशत रह गई। तब भी यह तेजी से उभरते कई बाजारों के मुकाबले अधिक थी। चीन में आयात के मुकाबले निर्यात हमेशा बहुत ज्यादा रहा है।

चीन में निवेश और निर्यात आधारित मॉडल ऊंची बचत दर पर टिका रहा क्योंकि पिछले 50 वर्षों में चीन में बचत दर 42 प्रतिशत रही है। उभरती हुई प्रमुख बाजार अर्थव्यवस्थाओं में चीन के बाद सबसे अधिक बचत दर मलेशिया की है, जो 31 प्रतिशत यानी चीन से बहुत कम है। बचत दर का वैश्विक औसत 22 प्रतिशत रहा है।

बचत दर अधिक रहने के कारण चीन में उपभोग काफी कम (2002 में जीडीपी का 53 प्रतिशत) रहा है। इसकी तुलना में 2023 में भारत में उपभोग दर 68 प्रतिशत रही और ब्राजील, मैक्सिको तथा दक्षिण अफ्रीका में 80 प्रतिशत से अधिक रही।

चीन में प्रॉपर्टी यानी जायदाद में निवेश ही आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ाता आया है। वर्ष 2011 में जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 16 प्रतिशत थी, जो 2023 में 29 प्रतिशत तक पहुंच गई और उसी साल के अंत में कुछ घटकर 24 प्रतिशत पर रुकी। पारिवारिक संपत्ति का करीब 70 प्रतिशत प्रॉपर्टी में लगा है मगर ऊंचे कर्ज और भुगतान में बढ़ती चूक यानी डीफॉल्ट के कारण इसमें मंदी आती जा रही है।

बहुत अधिक बचत और कम उपभोग टिक नहीं सके क्योंकि प्रॉपर्टी बाजार के ढहने जैसी घटनाओं ने संपत्ति में सेंध लगा दी और उपभोक्ताओं का भरोसा डिगा दिया। यद्यपि वहां की सरकार ने 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अर्थव्यवस्था को नए सिरे से संतुलित करने की बात कही थी मगर स्थिति में मामूली बदलाव ही आया है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने चीन से सामाजिक सुरक्षा दायरा मजबूत करने और घरों में उपभोग बढ़ाने के लिए ढांचागत सुधार लागू करने की अपील की है।

दूसरी समस्या यह है कि चीन में आबादी का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। युवाओं की संख्या तेजी से घट रही है और बुजुर्ग आबादी बढ़ रही है। चीन में काम करने लायक आबादी अब घटने लगी है। वर्ष 2022 में चीन की आबादी 1.4 अरब थी और संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक वह घटकर 1.3 अरब रह जाएगी तथा 2070 तक और भी कम होकर 1.1 अरब रह जाएगी।

वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात (65 वर्ष या अधिक उम्र की आबादी 15 से 64 वर्ष की कामकाजी आबादी की जितनी प्रतिशत होती है) 2050 तक तेजी से बढ़कर 51.5 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है, जो 2023 में केवल 20.7 प्रतिशत था। वर्ष 2070 तक यह और बढ़कर 68.9 प्रतिशत हो सकता है। भारत के लिए अनुपात बहुत कम रहने का अनुमान है। 2023 में अनुपात 10.4 प्रतिशत था और 2050 तक 22.4 प्रतिशत एवं 2070 तक 38 प्रतिशत हो सकता है।

वर्ष 2020 में चीन की 14 प्रतिशत आबादी 64 वर्ष के पार थी, जबकि भारत में इस उम्र के लोग केवल प्रतिशत थे। वर्ष 2070 तक चीन में लगभग 59 प्रतिशत लोगों की उम्र 64 वर्ष के पार होगी मगर भारत में आंकड़ा केवल 30 प्रतिशत रहेगा। जनांकिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि दूसरे देशों की तुलना में चीन में लोगों की उम्र ढलने की शुरुआत विकास के शुरुआती चरण में ही हो गई है और उसकी रफ्तार भी तेज है।

कामकाजी आबादी में कमी और बुजुर्ग आबादी में तेज बढ़ोतरी का असर आर्थिक वृद्धि पर पड़ेगा। इसकी सामाजिक सुरक्षा योजना और स्वास्थ्य प्रणाली पर भी बोझ बढ़ेगा।

चीन की अर्थव्यवस्था के सामने तीसरी सबसे चुनौती यह है कि वहां ऋण की स्थिति बदतर होती जा रही है। वर्ष 2019 में चीन में कुल कर्ज 252 लाख करोड़ रेनमिनबी (जीडीपी का 254 प्रतिशत) था मगर 2024 में बढ़कर 413 लाख करोड़ रेनमिनबी (जीडीपी का 312 प्रतिशत) हो गया है।

इसमें सर्वाधिक 40 प्रतिशत कर कंपनियों पर है और उसके बाद 21 प्रतिशत परिवारों पर था। सरकार पर 19 प्रतिशत कर्ज है। वर्ष 2015 से ही चीन में ऋण-जीडीपी अनुपात हर वर्ष औसतन 11 प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। बढ़ते कर्ज का अंबार चीन की वृद्धि की संभावनाओं पर असर डाल रहा है और कुछ विशेषज्ञों को इसमें वित्तीय संकट की आशंका नजर आ रही है।

देश के भीतर मांग कम रहने से चीन में अपस्फीति की नौबत आ गई है। प्रॉपर्टी बाजार में संकट और उपभोक्ताओं का विश्वास डगमगाने से मांग बहुत घटी है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति मार्च 2023 से 0.7 प्रतिशत या इससे नीचे ही रही है और उत्पादक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति सितंबर 2024 में 2.8 प्रतिशत कम हो गई। इस मुद्रास्फीति में 24 महीने से गिरावट आ रही है और सितंबर में तो छह महीने की सबसे तेज गिरावट रही। आने वाले समय में अपस्फीति और गहरा सकती है।

चीन में प्रॉपर्टी क्षेत्र धाराशायी होने और अपस्फीति की नौबत उत्पन्न होने से कुछ लोग इसकी तुलना जापान से करने लगे हैं। 1990 के दशक में जापान में रियल एस्टेट क्षेत्र में गिरावट के बाद अपस्फीति उफान पर थी। जापान की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई थी और आर्थिक सुस्ती का एक लंबा सिलसिला शुरू हो गया। मगर दोनों देशों में बड़ा अंतर है।

जापान में शेयर भाव ढहने से बैंकिंग तंत्र को बड़ा नुकसान हुआ और कई बड़े वित्तीय संस्थान दिवालिया हो गए। चीन में प्रॉपर्टी बाजार में गिरावट का बैंकिंग क्षेत्र पर असर अभी तक काबू में रखा गया है मगर यह कहना मुश्किल है कि आने वाले समय में परिस्थितियां कैसी रहेंगी।

चीन को पहले भी कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और हर बार यह उनसे बाहर निकल आया है। मगर इस बार वृहद आर्थिक स्थिति काफी जटिल है और देखना होगा कि चीन इस चक्रव्यूह से कैसे निकल पाता है।

मौजूदा आर्थिक हालात भी पहले की तरह सहज और सीधे नहीं हैं। पश्चिमी देशों के साथ चीन के बिगड़े संबंध भी चीन की अर्थव्यवस्था के लिए संकट से बाहर निकालने की राह और कठिन बना देंगे।

(लेखक सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस, नई दिल्ली में सीनियर फेलो हैं और रिजर्व बैंक के कार्यकारी निदेशक रह चुके हैं)

 

First Published : October 30, 2024 | 10:33 PM IST