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होटल और क्यों बनाएं, जब उत्तराखंड बन सकता है भारत का स्किल्स इंजन

अनियोजित पर्यटन पर निर्भर रहने, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, की बजाय उत्तराखंड को आगे बढ़ाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण बेहतर रास्ता क्यों है?

Last Updated- December 23, 2025 | 10:54 PM IST
Uttarakhand

उत्तराखंड में ‘शीतकालीन चार धाम’ का दूसरा सीजन शुरू हो गया है। यह राज्य सरकार का धार्मिक पर्यटन को पूर्ण रूप से बढ़ावा देने और इस कारोबार से होने वाली आय को अधिकतम करने का एक तरीका है। पिछले साल लगभग 30,000 तीर्थयात्रियों ने हिमालय की निचली श्रेणियों की घाटी में मौजूद देवी-देवताओं के शीतकालीन निवासों के दर्शन किए। पिछले साल की तरह, इस साल भी शीतकालीन चार धाम यात्रा के कारण कचरे का ढेर बढ़ेगा, जिसमें से ज्यादातर प्लास्टिक होगा और यह पहाड़ों की ढलानों पर पट जाएगा।

साथ ही आवासीय सुविधाओं और तीर्थयात्रियों को पवित्र स्थलों तक पहुंचाने के कारोबार में बढ़ोतरी के साथ ही सामान्य पर्यावरणीय क्षरण भी बढ़ेगा। इनमें से कोई भी बात भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्य सरकार को परेशान नहीं करती है। लेकिन धर्म के एक व्यवसाय के रूप में और एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में जो अंतर है, वह अंतर पहले कभी इतना बड़ा नहीं रहा है।

‘शीतकालीन चार धाम’ के स्थल खरसाली (यमुनोत्री), मुखबा (गंगोत्री), उखीमठ (केदारनाथ) और पांडुकेश्वर (बदरीनाथ) हैं। ग्रीष्मकालीन चार धाम स्थलों की तरह ही यहां भी करीब 50-60 लाख तीर्थयात्री आते हैं ऐसे में शीतकालीन चार धाम स्थलों को अपनी नाजुक पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण बढ़ते पर्यावरणीय खतरों का सामना करना पड़ता है।

पर्यटन और ‘विकास’ (पढ़ें बेतरतीब बने होटल, विश्राम गृह और रेस्तरां) ने इस आसन्न संकट में अपना योगदान दिया है जो समय-समय पर अचानक बाढ़ और भूस्खलन के रूप में प्रकट होता है। पांडुकेश्वर जोशीमठ से लगभग 24 किलोमीटर दूर है और यह शहर अत्यधिक विकास के कारण लगातार धंस रहा है, लेकिन पिछले साल इसे आधिकारिक तौर पर अपना प्राचीन नाम ज्योतिर्मठ दिया गया है।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बहुचर्चित बदलाव वाली सड़क निर्माण योजना का उलटा पहलू देख रहे हैं। आज, राजमार्ग और नई सड़कें पहले से कहीं अधिक आसानी से हजारों तीर्थयात्रियों और छुट्टियां मनाने वालों को घाटी और इसके सुंदर ऊपरी क्षेत्रों तक पहुंचा सकती हैं। मसूरी के ऊपर मौजूद बेहद खूबसूरत स्थान लंढौर के निवासी सप्ताहांत में खुद को अपने घरों में बंद पाते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र या मैदानी इलाकों के आसपास के शहरों से आने वाले पर्यटकों की भीड़ बढ़ जाती है जो अपनी एसयूवी या बाइक पर कलाबाजी दिखाते हुए आते हैं और तेज म्यूजिक बजाते हैं, जिसके शोरगुल से स्थानीय लोग परेशान होते हैं।

इसका नतीजा यह हुआ कि हर जगह बेतरतीब ढंग से बहुत ज्यादा निर्माण हो गया जो देखने में बिलकुल अच्छा नहीं लगता। पहले से ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पांच सितारा होटल खोलने के लिए सभी नामचीन कंपनियों के बीच होड़ लगी हुई है। ये होटल बढ़ती संख्या वाले उन अमीर और व्यस्त श्रद्धालुओं को सेवाएं दे रहे हैं, जो अपनी पसंद के भगवान तक पहुंचने के लिए संदिग्ध सुरक्षा रिकॉर्ड वाली हेलिकॉप्टर सेवाओं का इस्तेमाल करके सड़कों पर लगने वाली भीड़ से बचना चाहते हैं। ये होटल तेजी से और ऊंची होती बहुमंजिला इमारतों में नया बदलाव है, जो सुरम्य पर्वतीय क्षितिज को भी बदल रही हैं। इसी तरह इस क्षेत्र की बढ़ती समृद्धि की एक निराशाजनक विरासत, बड़े और विशाल मॉल में देखी जा सकती है जो आकार और एकरूपता में गुरुग्राम या मुंबई के मॉल को टक्कर देते हैं।

यदि प्रशासन ने अधिक पर्यटकों के आने के लिहाज से उचित नियामकीय उत्साह के साथ तैयारी की होती तो पर्यटन का इतना हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता। कचरा निपटान के मानक और वास्तुशिल्प नियम जो पारिस्थितिक रूप से अनुकूल हैं और स्थानीय परंपराओं के साथ सौंदर्य की दृष्टि से तालमेल बिठाते हैं, इनके जरिये राज्य को अन्य पहाड़ी राज्यों के लिए सतत विकास की एक आदर्श मिसाल बनाई जा सकती थी। इसके बजाय देश भर के हर हिल स्टेशन में एक ही निराशाजनक रुझान देखा जा सकता है, जहां दुबई-शैली की कांच और ग्रेनाइट संरचनाएं पर्यावरण में घुसपैठ करती हैं। इस विनाशकारी रास्ते का एक कारण मौजूदा सत्तारूढ़ दल की विचारधारात्मक सीमाएं और वर्ष2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद लगातार सरकारों की कल्पनाशीलता की कमी है।

अपने हिंदू तीर्थ स्थलों और प्राकृतिक सुंदरता से परे कम संसाधनों के साथ, धार्मिक पर्यटन ने राजस्व लाने का एक आसान साधन दिया है। लेकिन एक और रुझान है जिसे राज्य के अधिकारी अनदेखा करते हुए दिखते हैं जब तक कि इसमें कोई बड़ा रियल एस्टेट का खेल शामिल न हो। यह शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। दून स्कूल जैसे उच्च श्रेणी के विरासती संस्थानों को छोड़ दें, तो राज्य तेजी से मध्यम वर्ग के भारतीयों के लिए शिक्षा का अहम केंद्र बनता जा रहा है, जिसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण भी शामिल है।

वर्ष 2023 की फिल्म ‘लापता लेडीज’ में एक महत्त्वाकांक्षी दुल्हन देहरादून के एक संस्थान में कंप्यूटर कोर्स के लिए आवेदन करती है। वास्तव में संदिग्ध गुणवत्ता वाले कई स्कूल और विश्वविद्यालय (‘डीम्ड’ या अन्य) भी पिछले दो दशकों में अचानक खुल गए हैं। यह उस दिशा में एक अमूल्य संकेत देता है जिधर राज्य बढ़ सकता है।

वैश्विक क्षमता केंद्रों और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और आईटी-सक्षम सेवाओं में अपेक्षित तेजी का अर्थ यह है कि आईटी प्रतिभा की मांग निकट भविष्य में कई गुना बढ़ जाएगी। राज्य और लगातार बिगड़ते राजधानी शहर में उच्च-गुणवत्ता वाले आईटी, आईटीईएस और एआई से जुड़े क्षेत्रों में अच्छे प्रशिक्षण केंद्र बनाए जाएं। इससे राज्य का विकास भी होगा और अनियोजित पर्यटन से दुर्लभ प्राकृतिक संपदा के लगातार पर्यावरणीय विनाश को भी रोका जा
सकेगा। यह वास्तव में स्थायी बेहतरी का मुफीद तरीका होगा।

First Published - December 23, 2025 | 10:43 PM IST

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