facebookmetapixel
भारत में Apple की बड़ी छलांग! 75 हजार करोड़ की कमाई, iPhone 17 बिक्री में चीन को भी पीछे छोड़ाInfosys buyback: नंदन नीलेकणी-सुधा मूर्ति ने ठुकराया इन्फोसिस का ₹18,000 करोड़ बायबैक ऑफरGold-Silver Price Today: भाई दूज पर सोने-चांदी की कीमतों में उछाल, खरीदने से पहले जान लें आज के दामट्रंप बोले – मोदी मान गए! रूस से तेल खरीद पर लगेगा ब्रेकछोटे कारोबारों को मिलेगी बड़ी राहत! जल्द आने वाला है सरकार का नया MSME सुधार प्लानशराबबंदी: समाज सुधार अभियान या राजस्व का नुकसानOpenAI ने Atlas Browser लॉन्च किया, Google Chrome को दी सीधी चुनौतीDelhi pollution: लगातार दूसरे दिन जहरीली हवा में घुटी दिल्ली, AQI 353 ‘बहुत खराब’ श्रेणी मेंDiwali accidents: पटाखों से देशभर में जानलेवा हादसे बढ़ेAI में इस साल निवेश होगा 20 अरब डॉलर के पार!

सामयिक सवाल: खुदरा क्षेत्र में FDI से जुड़ीं हकीकत, जब ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के 10 साल पूरे होने का जश्न मना रहा भारत

यह बात किसी से नहीं छिपी है कि राजग सरकार बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई के खिलाफ है। इसका कारण भी सबको पता है।

Last Updated- October 04, 2024 | 9:37 PM IST
After all, how did 10 times FDI come into the country? आखिर कैसे आए देश में 10 गुना FDI

‘सवाल ही नहीं उठता।’ कुछ दिन पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ साक्षात्कार में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने यह जवाब दिया था, जब उनसे पूछा गया कि क्या बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की शर्तें नरम बनाई जा रही हैं। गोयल ने यह बात तब कही है, जब भारत महत्त्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के 10 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है।

यह अलग बात है कि बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई की इजाजत है, जो पिछले 10 वर्ष से कागजों तक ही सीमित है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने वर्ष 2012 में बहु-ब्रांड खुदरा नीति को हरी झंडी दिखाई थी और इसमें 51 प्रतिशत तक एफडीआई की इजाजत दे दी थी। इसके अंतरराष्ट्रीय खुदरा कंपनियां भारत में उतरने की तैयारी ही कर रही थीं कि 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार सत्ता में आ गई। नई सरकार ने अगले कुछ वर्षों में खुदरा कारोबार की दशा-दिशा ही बदल दी। तब से बहु-ब्रांड खुदरा नीति दरकिनार कर दी गई है।

यह बात किसी से नहीं छिपी है कि राजग सरकार बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई के खिलाफ है। इसका कारण भी सबको पता है। मगर भाजपा के लिए महत्त्वपूर्ण वोट बैंक समझे जाने वाले किराना दुकानदार और स्थानीय कारोबारी बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई के बगैर क्या वाकई खुश हैं? या गली-मोहल्ले की दुकानों को बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई पर सरकार के रुख से वाकई फायदा मिला है?

लगता तो यही है कि देसी कारोबारी काफी नाराज हैं। इस सप्ताह के शुरू में कारोबारी एक श्वेत पत्र पर चर्चा करने जुटे, जिसमें बताया गया था कि फ्लिपकार्ट और एमेजॉन जैसी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों का उनके कारोबार पर क्या असर पड़ा है। यह श्वेत पत्र कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने तैयार किया था और यह भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (सीआईआई) की उस रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें बताया गया था कि एमेजॉन और फ्लिपकार्ट द्वारा ई-कॉमर्स में एफडीआई के नियमों का कैसे उल्लंघन किया है।

सीसीआई ने इस मामले की तहकीकात 2019 में शुरू की थी, जब कैट से संबद्ध दिल्ली व्यापार महासंघ ने उसके समक्ष याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि ई-कॉमर्स कंपनियों ने कुछ विक्रेताओं को दूसरे विक्रेताओं पर तरजीह दी है। इसी मामले में जुर्माना तय करने के लिए सीसीआई ने ई-कॉमर्स कंपनियों से वित्तीय जानकारी मांगी है।

भारतीय खुदरा कारोबारियों ने ई-कॉमर्स श्रेणी में विदेशी कंपनियों से पहली बार लोहा नहीं लिया है। इन वैश्विक कंपनियों के खिलाफ यह शिकायत लगातार बनी हुई है कि अपने पास मौजूद अथाह रकम का फायदा उठाकर वे ग्राहकों को भारी छूट देती हैं। ध्यान रहे कि ऑनलाइन मार्केटप्लेस में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति है।

एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां मार्केटप्लेस हैं क्योंकि ये केवल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की तरह काम करती हैं, जहां वे विक्रेता अपना सामान बेचते हैं, जिनका कंपनियों से कोई वास्ता नहीं है। ऑनलाइन कंपनियों का दावा है कि वे एफडीआई नियमों का पालन कर रही हैं मगर यह बात दूसरे पक्ष के गले नहीं उतर रही।

कैट के संस्थापक और अब दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से भाजपा सांसद प्रवीन खंडेलवाल का कहना है कि स्थानीय कारोबारियों में एमेजॉन और फ्लिपकार्ट के खिलाफ बहुत गुस्सा है। पहले तथ्य देख लेते हैं। करीब 10 वर्ष पहले भारतीय खुदरा बाजार का आकार 500 अरब डॉलर आंका गया था, जो उद्योग के अनुमानों के मुताबिक 2024 में 1.3 लाख करोड़ डॉलर हो गया है।

खंडेलवाल खुदरा क्षेत्र में इस तेजी का श्रेय आर्थिक सुधारों, उपभोक्ता द्वारा अधिक व्यय, तकनीक क्षेत्र में प्रगति और ई-कॉमर्स के विस्तार को देते हैं। मगर जब बात एमेजॉन और फ्लिपकार्ट की आती है तो खंडेलवाल साफ कहते हैं कि इन कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन किया है, जिसका नुकसान भारतीय कारोबारियों को हुआ है।

खंडेलवाल भारत के करीब 9 करोड़ कारोबारियों (10 साल पहले करोड़) की तरफ से कहते हैं, ‘विदेशी निवेश पाने वाली कंपनियों ने ‘अनुचित कारोबारी तरीके’ अपनाए हैं और ‘नियमों एवं नीतियों का भारी उल्लंघन’ किया है, जिसके कारण बाजार बिगड़ रहा है। असमान अवसरों के कारण ग्राहक परंपरागत कारोबारियों से दूर छिटक रहे हैं और उन्हें ‘नुकसान’ हो रहा है।’

हालांकि खंडेलवाल मानते हैं कि ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबार में तेजी से ज्यादातर कारोबारियों को नुकसान हुआ है मगर इसके कारण छोटे कारोबारियों ने नए रास्ते तलाशने भी शुरू कर दिए हैं। पिछले एक दशक में परंपरागत खुदरा कारोबारियों ने या तो डिजिटल रास्ता पकड़ लिया है या उन्हें खुदरा की बदलती तस्वीर के बीच होड़ में बने रहने के लिए संघर्ष करना पड़ा है।

‘क्विक कॉमर्स’ (ग्राहकों तक झटपट सामान पहुंचाने का नया कारोबार) का जिक्र करते हुए खंडेलवाल कहते हैं कि यह शहरों में परंपरागत खुदरा विक्रेताओं को बड़ा नुकसान पहुंचाएगा।

बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई का प्रभाव अलग कैसे रहेगा? खंडेलवाल कहते हैं कि इससे खुदरा दुकानों पर सीधा असर होगा क्योंकि ग्राहक किराना दुकानों की पहुंच से दूर हो जाएंगे। राहत की बात केवल इतनी है कि भारत के खुदरा बाजार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी अभी केवल 8-10 प्रतिशत है, इसलिए समूचे खुदरा बाजार पर असर अपेक्षाकृत कम ही रहेगा।

यह सब देखकर हमें मानना पड़ेगा कि ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स अब काफी तेज गति से आगे बढ़ेंगे और स्टोर खोलने वाली विदेशी खुदरा कंपनियों का भी खुदरा क्षेत्र पर वैसा ही असर होगा, जैसा ऑनलाइन कंपनियों ने डाला है। आज के दौर की तुलना 10 या 20 वर्ष पहले की स्थिति से नहीं की जा सकती।

First Published - October 4, 2024 | 9:37 PM IST

संबंधित पोस्ट