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वैश्विक व्यापार संचालन में नयापन लाने का वक्त

अब वक्त आ गया है कि अमेरिकी टैरिफ के जाल में फंसने के बजाय समान सोच वाले देश मिलकर सामूहिक कदम उठाएं। इस संबंध में बता रही हैं

Last Updated- June 02, 2025 | 10:42 PM IST
Trump tariffs

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा जवाबी शुल्क के क्रियान्वयन पर 90 दिन के स्थगन की घोषणा में से तकरीबन 60 दिन बीत चुके हैं। इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से लगभग रोज ही मित्र और अमित्र राष्ट्रों तथा अमेरिकी कंपनियों को नित नई टैरिफ संबंधी धमकी दी जा रही है। इस अनिश्चित व्यापार नीति संदर्भ के कारण जहां प्रवृत्तियों को समझना मुश्किल हो गया है वहीं वैश्विक व्यापार के नए उभार के कुछ आरंभिक संकेतों को समझना आवश्यक है।

पहली बात, अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा के समझौते के तहत तैयार वस्तुओं और वाहन व वाहन कलपुर्जों में मूल्यवर्धन को जवाबी शुल्क से रियायत अमेरिका द्वारा इस टैरिफ के तर्कहीन निर्धारण की प्रारंभिक स्वीकृति थी। इसमें कुछ भी चकित करने वाला नहीं था क्योंकि इसमें एक क्षेत्रीय व्यापार समझौते के सहयोगी और साझेदार देश शामिल थे।

हालांकि चीन के साथ घटा घटनाक्रम कुछ अलग कहानी बयान करता है। जिनेवा में एक सप्ताहांत से थोड़ा कम चली बातचीत के बाद अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ को 90 दिनों के लिए 125 फीसदी से कम करके 10 फीसदी कर दिया गया। यह इस बात की स्वीकारोक्ति थी कि वैश्विक मूल्य श्रृंखला यानी जीवीसी में चीन के महत्त्व को देखते हुए चीन के आयात पर उच्च टैरिफ लागू करना प्रमुख तौर पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुंचाने वाला साबित होगा। चीन जीवीसी के केंद्र में बना हुआ है और टैरिफ, तकनीक तथा निर्यात संबंधी प्रतिबंधों के बावजूद वह कलपुर्जों और घटकों का सबसे बड़ा निर्यातक और आयातक बना रहा। ये प्रतिबंध ट्रंप के पहले कार्यकाल में लगाए गए और जो बाइडन के कार्यकाल में इनमें और इजाफा हुआ।

दूसरी बात, राष्ट्रपति ट्रंप की घोषणा और 90 दिन की अवधि में अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों के लिए तेजी से बातचीत की उम्मीदें सही साबित नहीं हो रही। 90 दिन में आधी से अधिक अवधि बीत चुकी है और अब तक अमेरिका केवल दो व्यापार समझौतों को अंजाम दे सका है। एक यूनाइटेड किंगडम के साथ और दूसरा चीन के साथ। अन्य प्रमुख साझेदार मसलन यूरोपीय संघ, जापान और दक्षिण कोरिया जो ‘लिबरेशन डे’ की घोषणा के बाद अमेरिका के साथ व्यापारिक वार्ता के लिए उत्सुक नजर आ रहे थे, उन्होंने अब प्रतीक्षा करने की नीति अपनाई है। शायद वे अमेरिका द्वारा टैरिफ में और कटौती की स्थिति में अपनी वार्ता संबंधी रणनीतियों को नए सिरे से तैयार करना चाहते हैं।

यह बात स्पष्ट है कि जापान और यूरोपीय संघ ने पिछले महीने के दौरान अपेक्षाकृत कड़ा रुख अपनाया है। जापान को यूनाइटेड किंगडम की तुलना में कहीं अधिक ऊंचे स्तर के टैरिफ के चलते वार्ता करनी पड़ रही है। हालांकि, वह धातुओं (एल्युमिनियम और स्टील) और वाहनों तथा वाहन कलपुर्जों पर टैरिफ समाप्त करने की मांग पर अडिग है। निप्पॉन स्टील कॉरपोरेशन और यूएस स्टील कॉरपोरेशन के बीच साझेदारी की जापान की पुरानी मांग पर राष्ट्रपति ट्रंप के प्रचार अभियान के दौरान रुख में हाल ही में आए बदलाव से अब अमेरिका-जापान व्यापार समझौते से संबंधित वार्ता आसान हो सकती है। यूरोपीय संघ अपने दम पर अमेरिकी टैरिफ का विरोध कर रहा है और इसके साथ ही उसने अन्य प्रमुख कारोबारी साझेदार देशों के साथ व्यापार समझौतों की गति भी तेज कर दी है।

तीसरा, अमेरिका के साथ जिन व्यापार समझौतों को लेकर बातचीत की जा रही है, वे सीमित कवरेज वाले ‘छोटे कारोबारी समझौते’ हैं। ये समझौते क्षेत्र विशेष से संबंधित हैं और उन वर्तमान या संभावित क्षेत्रों पर केंद्रित हैं जो जवाबी शुल्क के शिकार हो सकते हैं। इनमें सामरिक क्षेत्र, कृषि जिंस और डिजिटल कारोबार आदि शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका-यूके आर्थिक समृद्धि समझौता मुख्य रूप से अमेरिका से होने वाले मांस के निर्यात और यूनाइटेड किंगडम से होने वाले वाहन निर्यात पर टैरिफ कम करता है। सीमित क्षेत्रवार कवरेज वाले व्यापार समझौते इन अनिश्चित समय में लाभदायक साबित हो सकते हैं। बहरहाल, यह मानने की जरूरत है कि अमेरिका के साथ ये छोटे व्यापार सौदे कांग्रेस की मंजूरी से नहीं बल्कि कार्यकारी आदेश के जरिये किए जा रहे हैं। ऐसे में जहां इन्हें तेजी से अंजाम दिया जा रहा है वहीं इनसे पीछे भी हटा जा सकता है।

इसके अलावा,  सभी कारोबारों को पर्याप्त रूप से शामिल न करते हुए और पूर्ण मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के लिए घोषित इरादे को शामिल न करके, ये विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मानकों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं। ऐसे में संक्षिप्त व्यापार समझौते एक ऐसी प्रवृत्ति की शुरुआत कर रही हैं जो डब्ल्यूटीओ के अनुपालन वाले एफटीए से अलग हैं।

चौथी बात,  एक और प्रवृत्ति जो मजबूत हो सकती है, वह है टैरिफ के वैश्विक औसत स्तर में वृद्धि की संभावना। अमेरिका और चीन तथा अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम दोनों के बीच व्यापार समझौतों में 10 फीसदी का आधार टैरिफ बना रहना इस ओर संकेत करता है कि यह आगे बरकरार रहेगा और पूरी संभावना है कि इसे अन्य व्यापारिक समझौतों तक विस्तारित किया जाएगा। यह खुद-ब-खुद औसत अमेरिकी प्रभावी टैरिफ दर को जनवरी 2025 के स्तर से चार गुना कर देती है। अगर अन्य टैरिफ मसलन धातु पर लगने वाले शुल्क या फेंटानाइल पर लगने वाले शुल्क को शामिल कर लिया जाए तो मौजूदा अमेरिकी औसत प्रभावी दर 20 फीसदी हो जाती है। इसके अलावा, अन्य देशों द्वारा जवाबी टैरिफ लगाए जाने की संभावना की अनदेखी नहीं की जा सकती। खासतौर पर इसलिए क्योंकि व्यापार सौदे उम्मीद के मुताबिक नहीं भी हो सकते हैं, उनमें देरी हो सकती है या फिर शायद उनसे मुकरा जा सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति अक्सर ऐसा किया करते हैं।

उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ और चीन ने वार्ता में देरी और अमेरिका द्वारा उच्च टैरिफ लागू करने की धमकियों के बीच यह स्पष्ट कर दिया कि वे भी जवाबी कार्रवाई करेंगे। इसके अलावा मजबूत आपूर्ति श्रृंखला बनाने की जरूरत को देखते हुए यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि संरक्षणवादी कदम बढ़ेंगे और निर्यात पर निर्भर देश अपने विनिर्माण को मजबूती प्रदान करने के लिए सब्सिडी का सहारा लेंगे। उदाहरण के लिए दक्षिण कोरिया ने अपने घरेलू ऑटो और चिप निर्माताओं के समर्थन की बात कही है।

अगर विनियमन नहीं किया गया तो ये हालात वैश्विक कारोबारी माहौल को उथलपुथल भरा बना देंगे। ऐसे में फिलहाल यह अहम है कि वैश्विक व्यापार संचालन को लेकर नए सिरे से विचार किया जाए। आगे दो विकल्पों पर विचार किया जा सकता है। जो इस प्रकार हैं:

पहली बात, हरित ऊर्जा,  एआई, ई-कॉमर्स और डिजिटल व्यापार जैसे नए दौर के मुद्दों पर बातचीत करने और उचित प्रावधान तैयार करने के लिए संभावित भविष्य के प्रारूपों के रूप में परिवर्तनशील ज्यामिति और बहुपक्षीयता के विकल्पों को आगे बढ़ाना आवश्यक है। इसमें बुनियादी बात यह है कि डब्ल्यूटीओ के साथ उनके कानूनी औचित्य को सुनिश्चित करने के लिए अधिक विचारों की जरूरत होगी।

दूसरा विकल्प है, अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों से ध्यान हटाकर वैश्विक स्तर पर नियम आधारित कारोबार का विस्तार करना। इस संदर्भ में यूरोपीय संघ और प्रशांत पार साझेदारी के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौते (सीपीटीपीपी) को 2023 की धीमी प्रतिक्रिया के बाद नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। सीपीटीपीपी और यूरोपीय संघ की उच्च कारोबारी प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्धता और व्यापक सदस्यता भविष्य के व्यापारिक समझौतों के लिए शुभ संकेत हो सकता है।

लब्बोलुआब यह कि अब वक्त आ गया है कि ट्रंप टैरिफ में उलझने के बजाय समान सोच वाले देश मिलकर ऐसे सामूहिक प्रयास करें ताकि विश्व व्यापार के संचालन में जरूरी सुधार किए जा सकें।

(लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)

First Published - June 2, 2025 | 10:16 PM IST

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