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प्रतिबंध के बाद भी ‘टिकटॉक जोखिम’ बरकरार

Published by   देवांशु दत्ता
- 30/03/2023 12:02 AM IST

नई तकनीक कभी-कभी ऐसे परिणाम लाती है जिनकी कल्पना किसी ने नहीं की होती है। टिकटॉक एक ऐसा ही उदाहरण है। किसने सोचा था कि 15 सेकंड के वीडियो के साथ एक ऐप्लीकेशन सुरक्षा के लिए जोखिम बन जाएगा और विभिन्न देशों की सरकारों को माथापच्ची करने पर विवश कर देगा?

आइए, पहले तकनीक की उस यात्रा पर विचार करते हैं जिसका परिणाम टिकटॉक के रूप में सामने आया। कहानी तब शुरू हुई जब 2000 के मध्य में स्टीव जॉब्स ने बाजार में स्मार्टफोन उतारे और मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक की शुरुआत की।

इसके बाद ट्विटर और इंस्टाग्राम भी आ गए। यूट्यूब और द्रष्टव्य (विजुअल) सोशल मीडिया एक बड़ी क्रांति के द्योतक बन गए। इसके साथ ही किसी व्यक्ति या वस्तु का स्थान बताने वाली सेवाएं (लोकेशन सर्विस) भी उपलब्ध हो गई। सेल्फी संस्कृति का चलन शुरू होने से मोबाइल फोन उच्च क्षमता वाले कैमरों से लैस होने लगे।

इन बदलाव के साथ भारत की युवा आबादी में सृजन क्षमता और खुद को सजने-संवारने और अच्छा दिखाने की ललक पहले से मौजूद थी। कुल मिलाकर परिस्थितियां ऐसी बन गईं जिनसे टिकटॉक के लिए जमीन तैयार हो गई। हालांकि, इसी दौरान इसी तरह की खूबियों वाले कई दूसरे ऐप भी आए मगर टिकटॉक अपने बेहतर इंटरफेस और नए लोगों को तेजी से जोड़ने की क्षमता के कारण उन्हें (दूसरे ऐप को) पटखनी देने में कामयाब रही। टिकटॉक के साथ लोगों के जुड़ने का सिलसिला जोर पकड़ने लगा और कारवां आगे बढ़ता ही गया। टिकटॉक पर सामग्री डालने वाले लोगों (कंटेंट क्रिएटर) के लिए कमाई करने के कई जरिये हैं।

मगर टिकटॉक के साथ जुड़ी सूचनाएं सार्वजनिक या चोरी होने का जोखिम है। टिकटॉक कोई जासूसी करने वाला ऐप नहीं है बल्कि इसके काम करने का तरीका ही कुछ ऐसा है। टिकटॉक अपने उपयोगकर्ताओं से कई तरह की अनुमति मांगती है। जहां कहीं भी टिकटॉक ऐप डाउनलोड किया जाता है वहां यह कई तरह की गतिविधियों पर नजर रखती है। यह अपने उपयोगकर्ताओं से जुड़ी सभी जानकारियां अपने सर्वर में सहेज कर रखती है।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि टिकटॉक का इस्तेमाल करने वाले लोगों का जीवन एक खुली किताब है जिसे कोई भी पढ़ सकता है। कोई भी आसानी से पता लगा सकता है कि उपयोगकर्ता कहां है और वह क्या कर रहा है। इतना ही नहीं, उपयोगकर्ताओं के मित्रों एवं उनकी रुचि और संभवत: व्यक्तिगत बैंकिंग से जुड़ी जानकारियां भी आसानी से चुराई जा सकती हैं। अगर टिकटॉक का इस्तेमाल सेना और कानून लागू करने वाली एजेंसियां करेंगी तो इससे सुरक्षा संबंधी जोखिम खड़ा हो सकता है।

अगर राजनीतिज्ञ और नीति निर्धारक भी इसका टिकटॉक का इस्तेमाल करते हैं (इस्तेमाल हो भी रहा है) तो सुरक्षा संबंधी खतरा पैदा होने का डर रहता है। मगर टिकटॉक के पीछे का ढांचा कुछ इसी तरह काम करता है। ज्यादातर लोग तकनीकी उपकरणों के इस्तेमाल में दक्ष नहीं होते हैं और अपनी निजी जानकारियां सार्वजनिक होने को लेकर लापरवाह रहते हैं। ऐसे मोबाइल उपभोक्ता भी कम ही होते हैं जो शुरू से अंत तक यूजर लाइसेंस एग्रीमेंट पढ़ते हैं या ऐप द्वारा मांगी गई परमिशन को ध्यान से देखते हैं।

टिकटॉक ऐप चलाना काफी सरल होता है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ऐप डाउनलोड करने के 10 मिनट के भीतर तकनीक की समझ नहीं रखने वाला कोई 70 साल का व्यक्ति भी टिकटॉक पर जाकर वीडियो बनाकर सामग्री पोस्ट कर सकता है और ऐप पर पहले से मौजूद सामग्री देख सकता है। यही वजह है कि टिकटॉक तेजी से लोगों, खासकर युवाओं के बीच लोकप्रिय हुआ है।

टिकटॉक का नियंत्रण चीन की कंपनी बाइटडांस के पास के पास है। जब चीन के सर्वर पर सूचनाएं सहेज कर रखी जाती हैं तो चीन की सरकार इन्हें एकत्र करने के लिए कोई भी तर्क देने से पीछे नहीं रहती है। सिंगापुर में बाइटडांस के सर्वर पर मौजूद सूचनाएं अगर चीन के खुफिया विभाग के लिए काम के लायक रहती हैं तो चीन की सरकार नैशनल इंटेलीजेंस लॉ का हवाला देकर इनका इस्तेमाल कर सकती है। यह भारत के मसौदा निजता विधेयक से काफी मिलता-जुलता है। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि अगर टिकटॉक सूचना संग्रह करने की नीति में कोई बदलाव करती है तो पूर्व में एकत्र सूचनाएं हटा या समाप्त कर दी जाएंगी।

भारत ने 2020 के मध्य में टिकटॉक पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय तक भारत में टिकटॉक के कम से कम 20 करोड़ सक्रिय देसी उपयोगकर्ता थे। बच्चे भी विवाह, जन्मदिन पार्टी, या कुछ हल्की-फुल्की सामग्री साझा कर पैसे कमा रहे थे। टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने से इस पर सामग्री डालने वाले लोगों की जीविका पर असर तो जरूर हुआ मगर भारत के लोगों ने टिकटॉक का इस्तेमाल करना नहीं छोड़ा।

इसके उलट टिकटॉक पॉर्नहब के साथ उन 2 ऐप में शामिल है जो भारतीयों को इंटरनेट प्रतिबंध की काट निकालने की तरकीब बताते हैं। प्रतिबंध लगन के लगभग तीन साल बाद टिकटॉक पर आई नई सामग्री भारत में लगातार व्हाट्सऐप के जरिये साझा की जा रही हैं और यह टिकटॉक का इस्तेमाल नहीं करने वाले लोगों के लिए ये मुफ्त में उपलब्ध हैं।

यूक्रेन युद्ध ने इस ओर हमारा ध्यान खींचा है कि किस तरह सोशल मीडिया और वास्तव में मोबाइल फोन का लापरवाही से इस्तेमाल खतरे को आमंत्रण दे सकते हैं। मोबाइल या सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों के स्थान का पता आसानी लगाया सकता है और उन्हें नुकसान पहुंचा जा सकता है। मगर इनमें ज्यादातर खतरे ऐसे हैं जो चुपके से अपने पांव पसार रहे हैं।
भारत में टिकटॉक पर प्रतिबंध का बहुत असर नहीं हुआ हैं, हां इस पर सामग्री डालने वाले लोग जरूर छुप गए हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि

ब्रिटेन में सरकारी अधिकारियों पर टिकटॉक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का कुछ खास असर हुआ है या नहीं। अमेरिका भी टिकटॉक को प्रोजेक्ट टेक्सस (डेटा सुरक्षित करने से जुड़ी पहल) के जरिये अपनी नीतियों में बदलाव करने के लिए कह रहा है मगर यह उपाय पर्याप्त नहीं दिख रहा है। यह भी साफ नहीं है कि अमेरिका में नीति निर्धारक चीन की सरकार के विरोध की वजह से बाइटडांस पर दबाव डाल पाएंगे या नहीं।

मेरे ख्याल से इसका एक समाधान हो सकता है। अगर टिकटॉक की तरह ही खूबियों और बेहतर यूजर इंटरफेस वाला ऐप तैयार किया जाए तो शायद बात बन सकती है। इसे यूरोपीय संघ में रखा जाए जहां पर निजता सुरक्षा कानून श्रेष्ठ माने जाते हैं। हालांकि, टिकटॉक की तरह लोगों के तेजी से जुड़ने से मिलने वाले लाभ को दोहरा पाना मुश्किल जरूर होगा। मगर एक अरबपति ऐसा है जो इस तरह की पहल करना चाह रहा है। वह इसे एक संभावित अवसर के रूप में देख सकता है।