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दुनिया का राष्ट्रीय हित वैश्विक व्यापार पर भारी

अबू धाबी में हुआ सम्मेलन यह रेखांकित करता है कि विश्व व्यापार संगठन में भारत व्यापारिक मोर्चे पर तभी प्रगति करेगा जब अमेरिका इसमें दोबारा रुचि लेना शुरू करेगा।

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अजय श्रीवास्तव   
Last Updated- March 05, 2024 | 10:03 PM IST

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का 13वां मंत्री-स्तरीय सम्मेलन (एमसी13) अबू धाबी में 1 मार्च को संपन्न हो गया। इस सम्मेलन में कुछ खास प्रगति नहीं हुई। परंतु, इस सम्मेलन से जो निष्कर्ष सामने आया है उससे साफ है कि अमेरिका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का झुकाव अपनी राष्ट्रीय औद्योगिक रणनीतियों की तरफ बढ़ा है। इस झुकाव से कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों पर आगे बढ़ने में उनकी हिचकिचाहट दिख रही है। यह हिचकिचाहट एमसी13 में तय किए गए लक्ष्यों के साथ टकराव का रूप ले सकती है।

मंत्री-स्तरीय सम्मेलन में पांच दिन तक डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों ने ई-कॉमर्स, सेवा, कृषि, मत्स्य पालन, निवेश और विवाद समाधान पर चर्चा की। आइए, इन प्रत्येक विषयों पर विरोधाभासी लक्ष्यों एवं परिणामों और भारत के लिए इनके महत्त्व की विवेचना करते हैं।

ई-कॉमर्सः इस मोर्चे पर मुख्य विषय इस बिंदु के इर्द-गिर्द घूमता है कि क्या भारत जैसे देशों को डिजिटल उत्पादों जैसे फिल्मों, मोबाइल ऐप्लिकेशन, गेम, सॉफ्टवेयर, संगीत और वीडियो आदि पर आयात शुल्क लगाना चाहिए? वर्ष 1998 में डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश उभरते डिजिटल बाजार को प्रोत्साहित करने के लिए डिजिटल क्षेत्र में हो रही प्रगति पर आयात शुल्क नहीं लगाने पर सहमत हुए थे। तब से प्रत्येक दो वर्षों के लिए इस समझौते को आगे बढ़ाया जा रहा है।

विकसित देश डिजिटल प्रगति को तकनीकी क्षेत्र की अपनी कंपनियों- गूगल, एमेजॉन, फेसबुक, नेटफ्लिक्स- को लाभ पहुंचाने के लिए डिजिटल उत्पादों पर आयात शुल्क नहीं लगाने के पक्ष में रहे हैं। परंतु, इंडोनेशिया, भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों का तर्क है कि चूंकि, कारोबार अब ऑनलाइन माध्यम से भी किए जाने लगे हैं, इसलिए उन्हें परंपरागत राजस्व के मोर्चे पर नुकसान हो रहा है और डिजिटल व्यापार पर उनका नियंत्रण भी कमजोर हो रहा है। डब्ल्यूटीओ में एमसी13 ने 31 मार्च 2026 या डब्ल्यूटीओ की अगली बैठक तक (जो भी पहले हो) डिजिटल उत्पादों पर शुल्क नहीं लगाने का निर्णय लिया है।

सेवाः सेवाओं पर विभिन्न देशों के अलग-अलग नियम-कायदे इस खंड में अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए बड़ी चुनौती पेश करते हैं। विकसित देशों ने सेवाओं में व्यापार सहज एवं सरल बनाने के लिए व्यापक नियामकीय ढांचे स्थापित किए हैं। इनमें एपीएसी-ओईसीडी इंटीग्रेटेड चेकलिस्ट ऑन रेग्युलेटरी रिफॉर्म (2005) और ओईसीडी रेकमेंडेशन ऑन रेग्युलेटरी पॉलिसी ऐंड गवर्नेंस (2012) शामिल हैं।

अब विकसित देश चाहते हैं कि दूसरे देश भी इन्हें आत्मसात करें। इनमें दिलचस्पी दिखाने वाले डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों ने दिसंबर 2021 में डब्ल्यूटीओ से इतर जाकर बातचीत पूरी की और एमसी13 में सभी डब्ल्यूटीओ सदस्यों को डब्ल्यूटीओ कानून में इसे समाहित किए जाने पर राजी होने का आग्रह किया। ये विषय डब्ल्यूटीओ के 72 सदस्यों की अनुसूची में डब्ल्यूटीओ की सेवाओं में ‘अतिरिक्त प्रतिबद्धता’ के रूप में शामिल किए गए।

डब्ल्यूटीओ कानून में सेवाओं पर स्थानीय नियमन शामिल होना नए बिंदु जोड़ने का एक नया तरीका हो सकता है। इन्हें संयुक्त वक्तव्य पहल (जेएसआई) के नाम से जाना जाता है। जो जेएसआई शामिल करने पर विचार चल रहा है उनमें ई-कॉमर्स, निवेश प्रोत्साहन, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) और लिंग एवं व्यापार शामिल हैं। मगर भारत सहित कई देश जेएसआई के खिलाफ हैं।

इन देशों का मानना है कि नए विषयों पर तभी चर्चा शुरू होनी चाहिए जब डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्यों के बीच इन्हें लेकर सहमति बनती है। जेएसआई को लेकर सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं है। भारत का तर्क है कि यह रवैया केवल कुछ ही देशों के हितों पर ध्यान देता है और इससे डब्ल्यूटीओ अपने मुख्य लक्ष्य से भटक जाएगा।

कृषि: डब्ल्यूटीओ में चर्चा के दौरान भारत की मुख्य चिंता चावल एवं गेहूं जैसी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन कार्यक्रम (एमएसपी) के लिए स्थायी समाधान पाना था। डब्ल्यूटीओ के कृषि पर समझौता (एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर ओए) के अनुसार भारत का एमएसपी कार्यक्रम 10 प्रतिशत की स्वीकृत सब्सिडी सीमा पार कर जाता है। मगर सब्सिडी की गणना करने की एओए की विधि की यह कहकर आलोचना की जाती है कि यह पुरानी और त्रुटिपूर्ण है।

उदाहरण के लिए अगर भारत चावल के लिए 4 रुपये प्रति किलोग्राम सब्सिडी तय करता है तब मौजूदा बाजार मूल्य 20 रुपये प्रति किलोग्राम रहने की स्थिति में भी यह सब्सिडी की स्वीकृत सीमा से अधिक हो जाती है। इसका कारण यह है कि एओए की सब्सिडी की गणना 1986-88 के बीच की कीमतों पर आधारित है जिससे किसी भी एमएसपी कार्यक्रम के लिए इसका पालन करना आसान नहीं रह जाता है।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार विकासशील देशों से अनाज का आयात अगले 30 वर्ष में तीन गुना हो सकता है। इसे देखते हुए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा सहित खाद्यान्न का निर्यात करने वाले कई देशों ने कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क कम करने के लिए साथ-साथ चर्चा कराने पर जोर दिया।

भारत ने एमसी13 में एमएसपी से जुड़ी कानूनी चिंताओं का स्थायी समाधान खोजने की कोशिश की मगर इन विषयों पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। भारत कृषि को समर्थन देने वाली योजनाएं डब्ल्यूटीओ सम्मत उत्पादन सीमित करने वाले कार्यक्रमों की तरफ ले जा सकता है। डब्ल्यूटीओ में इन कार्यक्रमों को ‘ब्लू बॉक्स कहा जाता है। चीन ने भी ऐसा ही किया है। हम धनी देशों से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे दुनिया की कुल आबादी के छठे हिस्से के प्रति संवेदनशीलता दिखाएंगे।

मत्स्य पालन: कृषि की तरह ही मत्स्य पालन से जुड़े विषय भी बाजार तक पहुंच और जीविकोपार्जन के बीच टकराव का कारण बन रहे हैं। यूरोपीय संघ (ईयू) अफ्रीका महादेश के तटों से दूर गहरे समुद्र में मछलियां पकड़ने के लिए ऊंची सब्सिडी जारी रखना चाहता है, जबकि छोटे मछुआरों के लिए सब्सिडी पर कड़ी शर्तें लादना चाहता है। भारत विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) में मछलियां पकड़ने पर किसी तरह की पाबंदी के खिलाफ है।

भारत का तर्क है कि ये सब्सिडी छोटे स्तर पर मछलियां पकड़ने के कारोबार के अस्तित्व और खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी हैं। भारत ने धनी देशों से एसईजेड की सीमा से बाहर जाकर मछलियां पकड़ने पर दी जाने वाली सब्सिडी खत्म करने के लिए कहा है। भारत ने यह भी कहा है कि जहां तक विकासशील देशों की बात है तो यह सब्सिडी समाप्त करने के लिए उन्हें 25 वर्ष का समय दिया जाना चाहिए। एमसी13 में इस विषय पर कोई सहमति नहीं बन पाई।

निवेश: वर्ष 1996 में डब्ल्यूटीओ में एक विषय के रूप में निवेश को शामिल करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया गया था। इसका कारण यह है कि डब्ल्यूटीओ केवल व्यापार नियमों पर ही ध्यान केंद्रित करता है। एमसी13 में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने चीन द्वारा आगे किए जा रहे प्रस्ताव इन्वेस्टमेंट फैसिलिटेशन फॉर डेवलपमेंट (आईएफडी) एग्रीमेंट को डब्ल्यूटीओ में बहुपक्षीय समझौते के रूप में शामिल किए जाने का विरोध किया। इन दोनों देशों का कहना था जेआईएस होने के कारण आईएफडी को मंत्रियों की औपचारिक स्वीकृति प्राप्त नहीं है। इसी तरह, भारत ने इसी कारण का हवाला देते हुए यूरोपीय संघ की औद्योगिक नीति का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

विवाद निपटान सुधारः डब्ल्यूटीओ की विवाद निपटान प्रणाली काफी कमजोर हो गई है। यह प्रणाली नियम-कायदे लागू करने एवं व्यापार संबंधी विवाद दूर करने के लिए जरूरी है। इसका प्रमुख कारण यह है कि अमेरिका 2017 से डब्ल्यूटीओ की अपील निकाय में नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की राह में रोड़ा अटका रहा है। इसके पीछे अमेरिका का तर्क है कि यह निकाय अक्षम है और अपने कार्य क्षेत्र से बाहर जाकर काम कर रहा है। भारत एक पूर्ण क्रियाशील विवाद समाधान ढांचा दोबारा सक्रिय करने का हिमायती रहा है।

भारत का तर्क है कि डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देशों के हितों की रक्षा के लिए एक उचित एवं पारदर्शी प्रणाली की आवश्यकता है। यूरोपीय संघ ने विवाद निपटान के लिए अस्थायी उपाय का प्रस्ताव दिया है। पंरतु, एमसी13 की बैठक में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका क्योंकि निष्क्रिय अपील निकाय के साथ वर्तमान स्थिति अमेरिका के पक्ष में है। अगर यह निकाय सक्रिय रहता तो अमेरिका की महंगाई नियंत्रण अधिनियम जैसी नीतियों को डब्ल्यूटीओ में चुनौती दी जा सकती थी। एक समय था जब डब्ल्यूटीओ का विशेष महत्व हुआ करता था मगर अब इसकी प्रतिष्ठा धूमिल हो गई है। कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति तभी हो पाएगी जब अमेरिका पुनः सक्रिय रूप से डब्ल्यूटीओ में दिलचस्पी दिखाएगा है।

(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक हैं।)

First Published : March 5, 2024 | 10:03 PM IST