माइक्रोफाइनैंस संस्थाओं का अब देश के दूसरे हिस्सों मे भी तेजी से विस्तार हो रहा है।
अब तक उनकी कामयाबी की कहानी केवल दक्षिणी हिस्से में ही सुनाई देती थी, पर अब तो पूरब में भी वही कहानी दोहराई जा रही है। कम से कम ‘साधन’ की नई रिपोर्ट से यही लगता है।आप में से कुछ ही लोगों ने पश्चिम बंगाल में बागडोरा इलाके का नाम सुना होगा। उससे भी कम लोगों ने सुना होगा, यहां के भुजिया पानी गांव का नाम। वैसे, यह गांव एयरपोर्ट के पास ही स्थित है।
जो रिक्शा वाला आपको इस गांव तक ले जाएगा, ज्यादा उम्मीद वह इसी गांव का होगा। उससे भी ज्यादा उम्मीद इस बात की है कि वह रिक्शावाला या तो एसकेएस माइक्रोफाइनैंस या बंधन से सस्ते दर पर कर्ज लिया होगा। इस गांव का हरेक घर आपको इस बात की दास्तां सुनाएगा कि कैसे केवल 1,000 से लेकर 10,000 रुपए तक के कर्ज उनकी जिंदगी बदल डाली।
इनमें ज्यादातर लोग वे होंगे, जिनके पास कुछ दिनो पहले तक जीवन की बुनियादी चीजें तक नहीं थीं। इस गांव में अपने बेसहारा बच्चों के साथ रह रही उनकी विधवा मां से लेकर परचून की दुकान चलकर कमाई करने वाले साधारण से शख्स तक सबकी की मदद माइक्रोफाइनैंस संस्थाओं ने की है। रिक्शा चलाकर अपना पेट पालने वाले हेमंतो राय ने एसकेएस से अब तक 10 हजार रुपए उधार लिया है। उसे यह कर्ज 230 रुपए प्रति हफ्ते की दर से 50 सप्ताह में वापस करना है।
पहले तो उसने उधार से अपने पुराने रिक्शे को ठीक करवाया था, लेकिन जब बात नहीं बनी तो नया ही ले लिया। यह कर्ज उसकी बीवी को दिया गया था। उसका कहना है, ‘अब आप ही बताइए, कौन सा बैंक हमें लोन देता? उन्होंने हमारी काफी मदद की।’समाज के दबे कुचले तबकों तक पहुंचने वाली इस पूंजी का स्रोत यही संस्थाएं है, जिससे इस तबके का काफी भला हो रहा है। पश्चिम बंगाल में पहुंचने वाले यह पैसे एक और कहानी कहते हैं।
कहानी, पूरब से निकलते माइक्रोफाइनैंस के सूरत की। इस सूरज से सबसे ज्यादा फायदा उड़ीसा, बंगाल, बिहार और पूर्वोत्तर के राज्यों को रहा है। ‘साधन’ की इस रिपोर्ट का कहना है कि इन संस्थाओं से कर्ज लेने वाले लोगों की बढ़ती तादाद ही इनकी पूर्वी और उत्तर भारत में पैर पसरने की असल वजह है। उत्तर भारत में तो पिछले साल माइक्रोफाइनैंस संस्थाएं 84 फीसदी की दर से बढ़ रही हैं।
वहीं पूरब में भी इनके विकास की दर 82 फीसदी से ज्यादा की रही है।वैसे, 2006 में तो इनके विकास की दर काफी जबरदस्त थी। यह संस्थाएं दक्षिण भारत में काफी विकास कर चुकी हैं। आलम यह है कि अब वहां इनके और विकास की संभावनाएं काफी कम हो गई हैं। इसलिए तो वहां अब इनकी मजबूती का समय आ चुका है। वहां पिछले साल 56 फीसदी की विकास दर हुई थी।
विक्रम अकूला के नेतृत्व वाला एसकेएस आंध्र प्रदेश में शुरुआत होने के बाद से अब तक देश के 11 सूबों के 80 जिलों में फैल चुका है। वैसे, पश्चिम भारत में अब भी माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं का विकास अब भी होना है। वहां पिछले साल इनमें केवल 10 फीसदी का विकास हुआ था।
साधन की रिपोर्ट का यह भी कहना है कि माइक्रोफाइनैंस सेक्टर में तो छोटे खिलाड़ियों की ताकत दिन दुनी-रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ती जा रही है। इसी बात के लिए हाल में मशहूर पत्रिका ‘फोर्ब्स’ ने भी भारत की तारीफ की थी। इसने एक बात खास तौर पर कहा कि छोटे माइक्रोफाइनैंस संस्थाओं की उदभव की वजह से हालत काफी हद तक सुधरे हैं।
साधन के निदेशक मैथयू टिटस का कहना है कि उनकी संस्था की रिपोर्ट में भी इस बात को काफी अहमियत दी गई है। फोर्ब्स ने हाल ही में बंगाल की माइक्रोफाइनैंस संस्था बंधन को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा माइक्रोफाइनैंस संस्था का तमगा दिया है। वहीं माइक्रोक्रेडिट फाउंडेशन ऑफ इंडिया को 13वां रैंक दिया गया है।