पचास वर्ष पहले अगस्त के एक उमस भरे दिन मैं हॉन्गकॉन्ग से चीन की राजधानी पेइचिंग जा रहा था। एक कनिष्ठ राजनयिक के रूप में यह मेरा पहला काम था। हॉन्गकॉन्ग उस समय तक ब्रिटिश उपनिवेश था और हॉन्गकॉन्ग से कोई सीधी उड़ान नहीं थी। वहां से चीन जाने के लिए एक जलधारा पर बना लकड़ी का पुल पार करते हुए चीन की सीमा में प्रवेश करना पड़ता था। वहां लोवूसे एक स्थानीय ट्रेन यात्रियों को ग्वांगझाऊ ले जाती जहां से पेइचिंग के लिए ट्रेन या विमान का सफर किया जा सकता था।
लोवू धान के हरेभरे खेतों के बीच बसा था। लोवू स्टेशन के निकट एक बड़े से हॉल में लोगों को लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। वहां विदेशी पासपोर्ट धारकों को ग्वांगझाऊ के लिए ट्रेन की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। हमें राष्ट्रीयता के आधार पर टेबल आवंटित किए गए थे और साधारण भोजन दिया गया था। जब एक कनाडाई राजनयिक मेरी टेबल पर बैठने आया तो उन्हें तत्काल उनकी टेबल पर वापस भेज दिया गया।
गत सप्ताह मैं चीन-अमेरिका रिश्तों पर आयोजित एक सम्मेलन में भाग लेने हॉन्गकॉन्ग गया था परंतु मेरी इस यात्रा के कार्यक्रम में शेनझेन का सफर भी शामिल था। लोवू अब विस्तारित शेनझेन क्षेत्र का हिस्सा है और वहां के विशालकाय धान के खेतों की जगह ऊंची इमारतों के जंगल ने ले ली है। शेनझेन मेट्रो क्षेत्र की आबादी अब करीब 1.3 करोड़ हो चुकी है और यह लगातार बढ़ रही है।
शेनझेन नगर शासन के मुताबिक उसका मौजूदा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 238 अरब डॉलर है और चीन की प्रमुख हाइटेक कंपनियां वहां हैं। इनमें हुआवे, सॉफ्टवेयर और सोशल मीडिया क्षेत्र की अग्रणी कंपनी टेंसेंट, इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी बीवाईडी और ड्रोन निर्माता कंपनी डीजेआई शामिल हैं।
मैं डीजेआई और टेंसेंट की यात्रा करने में कामयाब रहा और वहां नजर आई तकनीकी श्रेष्ठता और नवाचार की भावना ने मुझे बहुत प्रभावित किया। शेनझेन उन चार विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) में से एक है जिनकी स्थापना चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति ने मई 1980 में की थी। यह कदम 1978 में तंग श्याओफिंग के नेतृत्व में सुधार और खुलेपन की नीति को अपनाने के बाद उठाया गया था।
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और कारोबारी केंद्र हॉन्गकॉन्ग से उसकी नजदीकी ने भी उसकी तेज कामयाबी में मदद की। सुधार के चार दशकों में चीन ने जो जबरदस्त आर्थिक सफलता हासिल की वह शेनझेन की कामयाबी पर ही आधारित थी। आज यह पूरी तरह हॉन्गकॉन्ग से जुड़ा नजर आता है। हॉन्गकॉन्ग पर 1997 में चीन का अधिकार हो गया था। मैं एक बस में एक्सप्रेसवे के माध्यम से एक घंटे से भी कम समय में शेनझेन पहुंच गया। सीमा पर कस्टम और आव्रजन संबंधी औपचारिकताएं बहुत तेजी से निपटा दी गईं।
वापसी के समय मैं शेनझेन के बाहरी इलाके शेकोऊ से एक फेरी के माध्यम से सीधे हॉन्गकॉन्ग अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे आया। मैं शेकोऊ में ही अपनी उड़ान के लिए चेक इन करने में सफल रहा और उसमें सवार होने से पहले ही आव्रजन और कस्टम की सारी औपचारिकताएं भी पूरी कर ली गईं। आधी सदी के दरमियान यह बहुत अभूतपूर्व परिवर्तन था।
जून 1989 में थ्येन आनमन में हुए कुख्यात दंगों में जब लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों ने राजधानी के मुख्य चौराहे पर प्रदर्शन किया था और सत्ता को तगड़ी चुनौती दी थी उसके बाद शेनझेन की प्रभावशाली प्रगति लगभग रुक सी गई थी। सरकार ने हिंसक बल प्रयोग करके इन दंगों को रोका। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिक रूढ़िवादी नेतृत्व ने तंग की सुधारवादी नीतियों को इस राजनीतिक और सामाजिक अशांति के लिए उत्तरदायी ठहराया।
शेनझेन जैसे एसईजेड की प्रतिष्ठा धूमिल हुई और उनके बंद होने का खतरा मंडराने लगा। तब 1992 में 87 वर्ष की आयु में तंग श्याओफिंग ने देश के दक्षिणी प्रांतों और एसईजेड की सुप्रसिद्ध यात्रा की। उन्होंने उनको प्रोत्साहित वे बाजार पर भरोसा करते हुए खुलेपन की नीतियों को जारी रखें। उन्होंने विदेशी पूंजी और तकनीक को आमंत्रित करते हुए निर्यात आधारित वृद्धि को बढ़ावा दिया।
इससे माहौल बदल गया और बाद में प्रधानमंत्री झू रोंग्जी के दूरगामी सुधारों की राह प्रशस्त हुई जिन्होंने 2001 में चीन को विश्व व्यापार संगठन में शामिल कराया। पार्टी के शीर्ष नेता च्यांग जेमिन शुरू में रूढ़िवादी पार्टी नेताओं के दबाव में थे लेकिन बाद में वह सुधारों के प्रवर्तन में तंग के साथ आ गए। आज तंग की दक्षिण यात्रा की स्मृति में शेनझेन के लियानहुआशान पार्क में उनकी कांसे की प्रतिमा लगाई गई है। उसके नीचे लगा शिलालेख च्यांग जेमिन द्वारा उल्लिखित है।
डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के बाद हॉन्गकॉन्ग और शेनझेन दोनों स्थानों पर बहुत अधिक असहजता महसूस की जा रही है।अमेरिका और चीन के बीच अभी भी 650 अरब रुपये से अधिक का कारोबार होता है जिसमें अधिशेष चीन के पक्ष में झुका हुआ है। ट्रंप ने चीन से होने वाले आयात पर 60 फीसदी शुल्क लगाने की बात कही है जो चीन के कारोबार पर बुरा असर डालेगा।
चीन के कुछ लोगों ने उम्मीद जताई है कि ईलॉन मस्क के अहम कारोबारी हित चीन में हैं और शयद वह ट्रंप को चीन के अनुकूल करने में मददगार साबित होंगे। अन्य लोग ट्रंप की ताइवान नीति को लेकर भी शंकालु हैं। यह जाहिर कर दिया गया है कि चीन ने ताइवान पर आक्रमण की कोई समय सीमा नहीं तय की है लेकिन अगर अमेरिका वहां यथास्थिति बदलने का प्रयास करता है तो संकट और यहां तक कि युद्ध की स्थिति भी बन सकती है।
ताइवान को लेकर 1972, 1979 और 1982 में अमेरिका और चीन के बीच की तीन विज्ञप्तियों का हवाला देते हुए चौथी विज्ञप्ति का सुझाव आया जो इस बात की पुष्टि कर सकती है कि अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता को मान्यता नहीं देता और वह उस पर चीन के संप्रभुता के दावे को भी चुनौती नहीं देता। ट्रंप प्रशासन के अधीन ऐसा होता नहीं दिखता।
हॉन्गकॉन्ग और चीन के कई कारोबारियों से बातचीत के बाद यह अनुमान लगता है कि हाल के महीनों में चीन में निजी कारोबार के लिए माहौल खराब हुआ है। कारोबारी सौदों की अब अधिक जांच हो रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी सामान्य कारोबारी गतिविधियों को प्रभावित कर रही हैं। सरकारी उपक्रमों का खुलकर समर्थन किया जा रहा था और निजी कारोबारों को सरकारी उपक्रमों द्वारा खरीदने की घटनाएं बढ़ी थीं। कुछ अमेरिकी कारोबारियों ने यह शिकायत की थी कि सामान्य जांच परख और मूल्यांकन जैसे काम जो एक समय सामान्य होते थे वे भी अब जोखिम भरे हो चुके हैं।
मुझे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ पदाधिकारियों से बातचीत करने का अवसर मिला था जो पार्टी के अन्य देशों के दलों से संबंधों के लिए जवाबदेह हैं। यह विभाग 100 से अधिक देशों के 600 राजनीतिक दलों से रिश्ते रखता है। इनमें भारत के अन्य दलों के साथ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी भी शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की कजान में हुई हालिया बैठक और पूर्वी लद्दाख से सेनाओं को पीछे बुलाने को लेकर हुए समझौते स्वागतयोग्य हैं। यह उम्मीद भी पैदा हुई कि द्विपक्षीय आर्थिक और वाणिज्यिक रिश्ते सामान्य होंगे। इस बात को काफी तरजीह दी गई कि ब्रिक्स प्लस, ट्रंप के अनिश्चित कार्यकाल में स्थिरता लाने में मदद करेगा और इस दौरान भारत-चीन रिश्ते अहम होंगे। भारत को लेकर चीन के बयानों में भी बदलाव आया है भले ही उन बातों का लब्बोलुआब अब भी पहले जैसा ही हो।
(लेखक विदेश सचिव रह चुके हैं)