इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती
सभी महत्त्वपूर्ण वैश्विक कंपनियां बहुराष्ट्रीय हैं। कई बड़ी भारतीय कंपनियों ने भी विदेशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) संबंधी गतिविधि शुरू की है। परंतु अभी भी यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां क्षमताएं और नियम-कायदे प्रारंभिक स्तर पर हैं। वैश्विक कंपनियों को भारत में सेवा उत्पादन का उपयोग करते देखना एफडीआई की भूमिका पर प्रकाश डालता है। वैश्विक कंपनियों ने भारतीय श्रम शक्ति का लाभ उठाने का अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए हरसंभव तरीका अपनाया है।
वे भारतीय सेवा कंपनियों को दूरवर्ती अनुबंध के माध्यम से काम पर रखते हैं। वे वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) और सीमित जगहों पर एफडीआई करते हैं। वे भारत में जीसीसी का इस्तेमाल एक ऐसे मंच के रूप में करते हैं जिनकी मदद से वे भारतीय सेवा कंपनियों को दिए जाने वाले अनुबंधों की बातचीत और निगरानी करते हैं। वैश्वीकरण का लाभ लेने के लिए अनुबंध और एफडीआई के ऐसे ही मिश्रण की आवश्यकता होती है।
भारतीय कंपनियों को एफडीआई से फायदा क्यों हो सकता है? सफल एफडीआई पहल से निर्यात बढ़ाने में मदद मिलती है, परिचालन को लेकर वैश्विक आशावाद उत्पन्न होता है और घरेलू प्रतिस्पर्धा मजबूत होती है। इससे विश्व बाजार तक पहुंच मजबूत होती है और भारतीय अर्थव्यवस्था में धीमेपन के दौर में कंपनी का जोखिम कम होता है। भारतीय माहौल की एक विशिष्टता जो वैश्विक कंपनियों में नहीं पाई जाती है वह है भारतीय कराधान और पूंजी नियंत्रण के साथ कम संबद्धता के कारण होने वाला लाभ। यह एफडीआई में प्रवेश की तयशुदा लागत के लिए भुगतान करने में मददगार साबित होता है।
दो गुना दो वर्गीकरण योजना की स्थापना मददगार है। भारतीय कंपनियां दो तरह की होती हैं: एक तो वे जो ऐसे उत्पाद बनाती हैं जो वैश्विक उपभोक्ताओं को सीधे बेचे जा सकते हैं जैसे बाल बियरिंग आदि। दूसरी वे जो भारतीय परिदृश्य में गहराई से शामिल होती हैं। यानी परिचालन क्षमता वाली ऐसी कंपनियां जो भारतीय नीतिगत माहौल और परिदृश्य में रची बसी होती हैं। और गंतव्य देश दो प्रकार के होते हैं: विकसित देश और शेष देश। उच्च निर्यात तैयारी वाले उद्योग और एफडीआई: वैश्वीकरण का सबसे सहज मार्ग उन कंपनियों के लिए उपलब्ध है जो ऐसे उत्पादों पर काम करती हैं जो वैश्विक ग्राहकों को बिक्री के लिए सीधे उपलब्ध होते हैं।
इन कंपनियों के लिए निर्यात का सफर और एफडीआई कारोबारी विस्तार की दृष्टि से असीमित संभावनाएं लाता है। वे ऐसी वैश्विक कंपनी बनने की आकांक्षा कर सकती हैं जो कम लागत के कारण चुनिंदा कामों को भारत में रखती हैं। भारतीय कारोबार की दुनिया में इन क्षमताओं का उभार भारत के आर्थिक भविष्य के लिए बहुत मायने रखता है। अगर 100 भारतीय कंपनियां बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में तब्दील होती हैं, उनकी बैलेंस शीट का आकार 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाता है और उनके राजस्व का 50 फीसदी से अधिक हिस्सा भारत से बाहर से आता है तो इससे देश की जीडीपी बदल जाएगी।
प्रबंधन के तौर तरीके और संगठनात्मक संस्कृति जो भारत में फलती फूलती है उसे विधि के शासन के समक्ष कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। विकसित देशों में परिचालन अक्सर सख्त होता है। इन कंपनियों के लिए आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) से बाहर के देश भी बाजार हो सकते हैं लेकिन विकसित देशों की तुलना में बाजार का आकार छोटा है।
भारत केंद्रित प्रबंधन गैर ओईसीडी देशों में परिचालन में खास प्रभावी हो सकता है लेकिन नेतृत्व को ऐसी तात्कालिक विजय से बचना चाहिए क्योंकि उनका मुख्य काम है ओईसीडी देशों में परिचालन और बिक्री करना सीखना। स्थानीय कंपनियों के साथ दूरस्थ अनुबंध गैर ओईसीडी देशों की बाजार संभावनाओं का लाभ उठाने का एक अहम जरिया है, वह भी बिना उनकी गड़बड़ी वाली संस्थागत व्यवस्थाओं में परिचालन सीखे तथा विधि के शासन की कमी के बीच।
भारतीय राज्य के साथ अधिक संपर्क वाले राज्य: उन भारतीय कंपनियों के लिए हालात थोड़ा अधिक दिक्कतदेह हैं जो देश के परिदृश्य में घुलीमिली हैं। वे ऐसे उद्योगों में हैं जहां उच्च सरकारी हस्तक्षेप होता है, या ऐसे उद्योगों में जहां भारत सरकार केंद्रीय नियोजन करती है। वे भारतीय माहौल में परिचालन से लाभान्वित हो सकती हैं या फिर वे ऐसे क्षेत्रों में परिचालित हो सकती हैं जहां भारतीय राज्य महत्त्वपूर्ण ग्राहक है।
इन सभी कंपनियों के लिए भारत में उनकी कामयाबी के सूत्र विदेशों में उनकी राह का रोड़ा भी बन सकते हैं। उदाहरण के लिए भारत में एक सफल बैंक जिसने रिजर्व बैंक की केंद्रीय नियोजन प्रणाली के तहत मुनाफा कमाने की क्षमता हासिल की हो, विदेशी प्रतिस्पर्धा से सुरक्षित हो और सरकारी क्षेत्र के एकाधिकार वाले क्षेत्रों की भरपाई कर रहा हो, वह अमेरिका में उन अमेरिकी प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर पाएगी जिनमें ऐसी विसंगतियां नहीं हों तथा जो भारत में जीसीसी के माध्यम से कम लागत वाले उत्पादों हासिल करने में प्रभावी रूप से कामयाब रही हों।
जब ये कंपनियां ओईसीडी देशों में कारोबार करती हैं तो यह जोखिम होता है कि उनकी संगठनात्मक संस्कृति, जो भारत में उनके अनुभवों से संचालित होती हैं वे वहां लोगों को नाराज कर सकती हैं या नियम भंग कर सकती हैं। उन्हें ओईसीडी देशों में परिचालन के लिए सचेत प्रयास करने होंगे ताकि वे स्थानीय कारोबारी संस्कृति का अनुकरण कर सकें।
ओईसीडी से इतर देशों में परिचालित कंपनियों की बात करें तो उन देशों में कानून का शासन अधिक सीमित हैं और यह भारत में काम करने के समान है। परंतु टिकाऊ कारोबार के लिए रिश्ते बनाने की बात करें तो राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच वहां भारत की तुलना में यह कठिन है। ऐसे में इन कंपनियों के लिए भी गैर-ओईसीडी देश में परिचालन की सही रणनीति यही होगी कि वे साझेदारी मॉडल पर भरोसा करें।
यह वैसा ही है जैसे कि वैश्विक कंपनियां अकेले कारोबार करने के बजाय भारत में कारोबारी साझेदार चुनती हैं। इस प्रकार वे राजनीतिक जोखिम का प्रबंधन करती हैं।
रणनीति का प्रश्न: अंशधारकों, बोर्ड सदस्यों और वरिष्ठ प्रबंधकों को इन सवालों के बारे में रणनीतिक ढंग से विचार करना चाहिए। एफडीआई में कई बड़े लाभ हैं लेकिन इसके लिए रणनीतिक सोच आवश्यक है। ऐसा करके कई रुचिकर चयन किए जा सकते हैं।
जैसे कि शायद एक निजी भारतीय रक्षा विनिर्माता भारतीय राज्य को बिक्री बंद करके ‘भारतीय राज्य के साथ अधिक संपर्कों वाले उद्योगों’ की श्रेणी से बाहर निकल सकेगा। पोर्टफोलियो रणनीतिकार भी इन थीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस दौरान उन भारतीय कंपनियों पर जोर दिया जा सकता है जो ओईसीडी देशों में निर्यात और एफडीआई के लिए तैयार हैं।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)