रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकऑयल पर अमेरिका द्वारा लगाए गए हालिया प्रतिबंधों से भारत की निजी क्षेत्र की दो तेलशोधक कंपनियों रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) और नायरा एनर्जी पर असर पड़ सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरियां आम तौर पर व्यापारियों के माध्यम से रूसी तेल खरीदती हैं, ऐसे में फिलहाल उन पर असर पड़ने की आशंका नहीं है। मगर इन प्रतिबंधों से भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 2.7 अरब डॉलर (23,490 करोड़ रुपये) बढ़ सकता है।
मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज का रूसी कंपनी रोसनेफ्ट से प्रतिदिन लगभग 5 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदने का दीर्घकालिक करार हुआ है जबकि नायरा एनर्जी में तो इस रूसी तेल दिग्गज की ही 49 फीसदी हिस्सेदारी है। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों का रूस के साथ तेल खरीद का सीधे तौर पर कोई करार नहीं है और वे ज्यादातर मध्यस्थों के माध्यम से रूसी तेल खरीदती हैं। मात्रा के हिसाब से भारत की तेल खरीद में रोसनेफ्ट और लुकऑयल की हिस्सेदारी 60 फीसदी है।
सार्वजनिक क्षेत्र की एक रिफाइनरी के कार्याधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरियों को सरकार की ओर से रूस से कच्चे तेल की खरीद कम करने या रोकने का कोई निर्देश नहीं मिला है। लेकिन अनिश्चितताएं निश्चित रूप से चुनौतियां पेश करती हैं। उन्होंने कहा, ‘रूसी तेल पर छूट वैसे भी अब खत्म हो रही है। फायदा बहुत मामूली रह गया है और हर तरफ चुनौतियां बढ़ रही हैं। हमें कहां से तेल खरीदना है और कहां से नहीं, इसका निर्णय कंपनी का होता है लेकिन हम खुद संशय में हैं। स्थिति इतनी तेजी से बदल रही है कि कोई भी निर्णय तुरंत नहीं लिया जा सकता है।’
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और मंगलूर रिफाइनरी ऐंड पेट्रोकेमिकल्स शामिल हैं जबकि निजी क्षेत्र की रिफाइनरियों में आरआईएल और नायरा प्रमुख हैं। रूसी तेल खरीद मामले में जानकारी के लिए तेल मंत्रालय और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ ही आरआईएल को हमने ईमेल किया, मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
रूस की वित्तीय क्षमता को कमजोर करने के मकसद से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 22 अक्टूबर को रोसनेफ्ट और लुकऑयल पर प्रतिबंध लगा दिया। ट्रंप ने कहा कि भारत साल के अंत तक रूसी तेल का आयात लगभग शून्य करने जा रहा है। इस बीच अमेरिकी वित्त विभाग के ऑफिस ऑफ फॉरेन ऐसेट्स कंट्रोल (ओएफएसी) ने कंपनियों को प्रतिबंधित रूसी तेल उत्पादकों के साथ चल रहे सौदे को समाप्त करने के लिए 21 नवंबर तक का समय दिया है।
रिस्टैड एनर्जी में भू-राजनीतिक विश्लेषण के प्रमुख जॉर्ज लियोन ने कहा, ‘रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादकों पर हाल ही में लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंध रूस के खिलाफ अमेरिका के दबाव अभियान में महत्त्वपूर्ण और अभूतपूर्व हैं। प्रतिबंधों की घोषणा के बाद तेल की कीमतों में आई तेजी से बताती है कि बाजार में यह डर बैठ गया है कि रूस से कच्चे तेल के निर्यात में भारी गिरावट आ सकती है।’ अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद गुरुवार को तेल के दाम करीब 5 फीसदी बढ़ गए। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स दोपहर में 2.98 डॉलर बढ़कर 65.57 डॉलर प्रति बैरल हो गया जबकि वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट क्रूड फ्यूचर्स 3.01 डॉलर बढ़कर 61.51 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था।
भारत वर्तमान में रूसी कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है और अपनी जरूरत का करीब 40 फीसदी तेल रूस से मंगा रहा है।
केंद्र सरकार ने अभी तक राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हुए रूसी तेल की खरीद कम करने के अमेरिकी दबाव का सामना करने के अपने रुख को बरकरार रखा है। हालांकि हाल ही में लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों से रूसी तेल की खरीद जारी रखने में गंभीर चुनौतियां आ सकती हैं।
इक्रा में उपाध्यक्ष एवं सह-प्रमुख (कॉरपोरेट रेटिंग्स) प्रशांत वशिष्ठ ने कहा, ‘इस तरह के लेनदेन की सुविधा प्रदान करने वाला कानूनी रूप से प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहा है। इसलिए बैंक ऐसे भुगतान को मना कर सकते हैं क्योंकि उनका अमेरिकी, यूरोपीय बैंकिंग तंत्र के साथ कारोबार होता है जिसमें जोखिम आ सकता है।’
भारत ने अक्टूबर के पहले पखवाड़े में रूस से 18 लाख बैरल प्रतिदिन तेल की खरीद की। रूस से कुल तेल आयात में से 50 फीसदी से अधिक निजी कंपनियां रिलायंस और नायरा खरीदती हैं जबकि बाकी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है। मैरीटाइम इंटेलिजेंस फर्म कैपलर के आंकड़ों के अनुसार निजी कंपनियों ने सितंबर में रूस से 10.2 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चा तेल खरीदा।
कैपलर में लीड रिसर्च एनालिस्ट (रिफाइनिंग एवं मॉडलिंग) सुमित रिटोलिया ने कहा,’हमारा मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां ज्यादातर तीसरे पक्ष के माध्यम से रूस से तेल खरीदती हैं, ऐसे में तत्काल उन पर सीमित असर पड़ेगा। लेकिन आरआईएल के रोसनेफ्ट के साथ दीर्घावधि करार को देखते हुए कंपनी पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।’