इस वर्ष महामारी के अलावा यदि कोई अन्य महत्त्वपूर्ण घटना घटी है तो वह है अत्यंत प्रतिष्ठित रही तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों फेसबुक, एमेजॉन, ऐपल, नेटफ्लिक्स और गूगल (फैंग) को लेकर बदला रवैया। विभिन्न सरकारों ने इन कंपनियों के आक्रामक कारोबारी व्यवहार, कर वंचना और आंकड़ों के दुरुपयोग आदि के मामलों से निपटने की शुरुआत कर दी है।
इंटरनेट के जमाने में ये कारोबार अनिवार्य जरूरतें तैयार करते हैं और महामारी के बाद बदले हुए समय में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है। उदाहरण के लिए तमाम कारोबारों के प्रभावित होने के बावजूद ऑनलाइन शॉपिंग में इजाफा हुआ है। आरोप है कि ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि कंपनियों ने बाजार में अपने दबदबे का दुरुपयोग किया। निवेशक इसके परिणामस्वरूप आ रही समृद्धि के चलते विरोध नहीं कर रहे। सन 2020 में इन फैंग कंपनियों के शेयरों की कीमत 50 प्रतिशत तक बढ़ी है। इससे पहले तीन वर्ष में इनमें 75 फीसदी इजाफा हुआ था। एमेजॉन, ऐपल और अल्फाबेट (गूगल की मालिक) का आकार लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच चुका है और फेसबुक भी उसी राह पर है। एसऐंडपी 500 सूचकांक में इन पांच बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी आधे से अधिक है।
इतनी भारी संपदा के साथ ताकत आना लाजिमी है और फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग को पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली गैर निर्वाचित व्यक्ति माना जा चुका है। वह एक से अधिक बार राष्ट्रीय चुनावों की ‘शुद्धता’ को बचाने का इरादा जता चुके हैं। यह अपने आप में विडंबनापूर्ण है क्योंकि खुद फेसबुक पर घृणा फैलाने वाले भाषण और झूठी खबरों को रोकने का दबाव रहा है। फेसबुक चुनावी विज्ञापनों को लेकर अमेरिकी संसद की जांच के दायरे में रहा है और वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी खबर में कहा गया है कि भारत में उसकी कथित रूप से भाजपा से मिलीभगत रही है।
अब तक निष्क्रिय रही सरकारें अब पेशकदमी कर रही हैं। दो माह पहले अमेरिकी न्याय विभाग ने गूगल के उन सौदों की जांच शुरू की जो उसने ऐपल (भले ही उसकी मिलीभगत न हो) समेत अन्य कंपनियों के साथ किए ताकि प्रतिद्वंद्वी खोज इंजनों का वितरण रोका जा सके। इस सप्ताह टैक्सस ने गूगल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की। आरोप है कि उसने फेसबुक के साथ सौदेबाजी कर इंटरनेट विज्ञापनों की जगह की नीलामी से छेड़छाड़ की। इससे पहले जून में यूरोपीय संघ ने गूगल पर 2.7 अरब डॉलर का रिकॉर्ड जुर्माना लगाया था। यह जुर्माना इसलिए लगाया गया था क्योंकि कंपनी अपनी शॉपिंग सर्च सेवा को लाभ पहुंचाने के लिए खोज के नतीजों को प्रभावित कर रही थी। संघ ने एमेजॉन पर तीसरे पक्ष के वाणिज्यिक आंकड़ों के अनुचित इस्तेमाल की जांच भी की। चूंकि इन कंपनियों ने अपना मुनाफा हासिल करने में कम कर दर वाले देशों का इस्तेमाल किया इसलिए यूरोपीय संघ इन कंपनियों से अधिक कर लेने पर विचार कर रहा है। इसके अलावा इन कंपनियों द्वारा भविष्य में की जाने वाली गड़बडिय़ों के लिए उनके वैश्विक सालाना राजस्व के एक हिस्से के रूप में जुर्माना वसूला जा सकता है। फेसबुक इसलिए भी निशाने पर है क्योंकि वह प्रतिस्पर्धी गेम और सेवाओं की पेशकश करके प्रतिद्वंद्वी कंपनियों का दम निकाल रही है।
यह स्पष्ट नहीं है कि इनके खिलाफ नियामकीय कदम कितने सफल होंगे और क्या अमेरिका फेसबुक द्वारा व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के अधिग्रहण को निरस्त करेगा। सभी कंपनियों का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। गूगल यूरोपीय संघ के जुर्माने के खिलाफ अपील कर रही है लेकिन उसने आयरलैंड की खामियों का इस्तेमाल बंद कर दिया है। जबकि फेसबुक सीमा पार डेटा स्थानांतरण के खिलाफ निर्देश का मुकाबला कर रहा है। इस बीच एमेजॉन के बारे में जानकारी है कि वह सीमा पार डेटा के मुक्त प्रवाह के लिए प्रस्तावित ई-कॉमर्स समझौते का इस्तेमाल करके बाजार पर अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी कर रही है। भारत जैसे देशों की सरकारों ने इसका विरोध करते हुए डेटा स्थानांतरण को लेकर नियम बनाए हैं।
उधर इन कंपनियों का मानना है कि वे कृत्रिम मेधा की मदद से जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का हल पेश कर रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं को डर है कि नए क्षेत्रों में इनका बढ़ता दबदबा खतरे को जन्म दे रहा है। भारत में इस पर बहुत सीमित बहस है जबकि लगभग सभी फैंग कंपनियों ने देश के ताकतवर कारोबारियों के साथ अलग-अलग समझौते कर लिए हैं। यह सवाल दिलचस्प है कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर डेटा की सुरक्षा को लेकर सरकार के कदम ने फैंग को जियो के साथ अरबों डॉलर के समझौते के लिए प्रेरित किया?
