जनवरी 2022 में देश में उपभोक्ता रुझानों में जो धीमा और स्थिर सुधार दर्ज किया गया था, वह अप्रैल में भी जारी रहा। अप्रैल माह में उपभोक्ता रुझान सूचकांक (आईसीएस) तीन फीसदी की गति से बढ़ा। यह जनवरी 2022 के बाद से सूचकांक में हुए कम एक अंक के इजाफे के अनुरूप ही रहा। हकीकत तो यह है कि यह वृद्धि हालिया अतीत की मासिक बढ़ोतरी से धीमी रही है। जनवरी में सूचकांक 4 फीसदी बढ़ा था, फरवरी में यह 5 फीसदी, मार्च में 3.7 फीसदी और अप्रैल में महज 3 फीसदी बढ़ा।
उपभोक्ता रुझान में महीना दर महीना स्थिर गति से सुधार दिखना अच्छा है लेकिन सुधार की दर अपेक्षाकृत कम रही है और यह और अधिक कम होती जा रही है। यह राहत की बात है कि इस वर्ष अप्रैल में बीते दो अप्रैलों की तरह कोई आपदा नहीं आई। लेकिन पारंपरिक ढंग की चुनौतियों ने अपना सर उठाया है। बढ़ती मुद्रास्फीति, उधारी दर तथा बढ़ती बेरोजगारी दर ने आम परिवारों के रुझान पर असर डाला है। शायद ये पुरानी समस्याएं आम परिवारों की भावनाओं को क्षति पहुंचा रही हैं। महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन ने आम परिवारों को जो नुकसान पहुंचाया था उसकी भरपायी हो रही है। औसत पारिवारिक आय भी लॉकडाउन के पहले के स्तर पर पहुंच रही है। दो वर्ष पहले की तुलना में उनकी स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है। वर्तमान आय तथा भविष्य की आय की संभावनाओं को लेकर धारणा, लॉकडाउन के पहले के झटके की तुलना में खामोश बनी रही।
आय महामारी के पहले के स्तर पर लौट रही है और आगे चलकर यह उससे ऊपर के स्तर पर भी जाएगी। ऐसे में यह अहम है कि आम परिवारों की अपनी आय तथा भविष्य की आय को लेकर अवधारणा में भी सुधार आए। टिकाऊ आर्थिक सुधार के लिए यह आवश्यक है। इस संदर्भ में देखें तो नयी चुनौतियां महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। अगर मान लिया जाए कि कोई नया आर्थिक झटका नहीं लगेगा तो आगे चलकर उपभोक्ता मूल्यों का दायरा, ब्याज दरें तथा रोजगार ही यह तय करेगा कि आम परिवारों की अवधारणा तथा उपभोक्ताओं का रुझान कैसा रहेगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जिंस कीमतें तेज बनी हुई हैं और केंद्रीय बैंक उच्च मुद्रास्फीति की संभावनाओं के हिसाब से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ऐसे में आने वाले महीनों में आशा यही है कि मुद्रास्फीति ऊंची बनी रहेगी, ब्याज दरें बढ़ेंगी और रोजगार में अपेक्षित वृद्धि नहीं होगी। ऐसे में यह संभव है कि उपभोक्ता रुझानों में होने वाली वृद्धि वर्तमान एक अंक वाली धीमी वृद्धि तक सीमित रहे। माना जाता है कि मुद्रास्फीति, ब्याज दरें तथा रोजगार आदि उपभोक्ताओं के रुझान पर असर डालते हैं लेकिन रुझानों के आकलन के लिए अपेक्षाकृत प्रत्यक्ष तरीके का इस्तेमाल किया जाता है जो है अपनी वर्तमान और संभावित आय को लेकर परिवारों की अवधारणा, गैर जरूरी चीजों पर खर्च करने की संभावना तथा भविष्य के बारे में उनका अनुमान। उपभोक्ता रुझानों का सूचकांक वर्तमान और भविष्य की बेहतरी को लेकर इन धारणाओं को एकजुट करता है। आईसीएस में मोटे तौर पर दो घटक होते हैं- वर्तमान आर्थिक स्थितियों का सूचकांक (आईसीसी) और उपभोक्ता अपेक्षाओं का सूचकांक (आईसीई)। जनवरी 2022 से आईसीएस में जो सुधार हुआ है वह मोटे तौर पर आईसीसी की बदौलत है। यह आम परिवारों की अपनी वर्तमान आय तथा गैर जरूरी चीजों पर खर्च करने की क्षमता पर आधारित है जिसके चलते उपभोक्ता रुझान में सुधार दर्ज किया जा रहा है। यही दो कारक आईसीसी का निर्माण करते हैं। भविष्य को लेकर परिवारों की धारणा में भी सुधार हो रहा है लेकिन उस गति से नहीं। भविष्य की आय को लेकर परिवारों की धारणा अथवा अल्पावधि तथा दीर्घावधि की आर्थिक संभावनाओं में भी अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। ये दो ऐसे कारक हैं जो आईसीई की गणना में काम आते हैं। 2022 के शुरुआती चार महीनों में आईसीसी में 24 प्रतिशत का इजाफा हुआ। इसके विपरीत आईसीई बमुश्किल 12 फीसदी बढ़ा। अर्थव्यवस्था में सुधार और आय के पुराने स्तर पर बहाल होने के दरमियान ही आम परिवारों का एक बड़ा हिस्सा अपनी वर्तमान आय में इस सुधार को देख पा रहा है। अप्रैल 2022 में एक वर्ष पहले की तुलना में 12.2 प्रतिशत परिवारों ने आय में वृद्धि की बात कही। यह आम परिवारों के औसत के अनुरूप ही है जिन्होंने हाल के महीनों में आय वृद्धि की बात कही है। फरवरी 2022 से उच्च आय की बात कहने वाले परिवारों की तादाद पहले की तुलना में तेजी से बढ़ी है। इसी प्रकार आय में कमी बताने वाले परिवार घटे हैं।
अभी हाल तक आंकड़ों में आम परिवार की आय में नजर आने वाला सुधार उन परिवारों की समृद्धि, गैर जरूरी चीजों पर व्यय करने आदि के रूप में सामने नहीं आता था। अप्रैल 2022 में आखिरकार ऐसा हुआ। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद के लिए वर्तमान समय को बेहतर मानने वाले परिवार मार्च 2022 के 10.5 फीसदी से बढ़कर अप्रैल 2022 में 12.2 फीसदी हो गए। सुधार की प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए मिजाज में यह सुधार अहम है।
अब आईसीई के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि वह बराबरी करे। आईसीई तीन सवालों से निकलता है- अगले वर्ष परिवारों की आय को लेकर धारणा, अगले एक वर्ष में अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को लेकर धारणा और अगले पांच वर्ष में अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन। इनमें से परिवार अपनी आय को लेकर काफी आशान्वित हैं। 12.7 फीसदी परिवार मानते हैं कि अगले वर्ष उनकी आय आज की तुलना में बेहतर होगी। हालांकि केवल 12.2 प्रतिशत परिवार यह भी मानते हैं कि उनकी आय बीते एक वर्ष में बेहतर हुई है। असली समस्या अर्थव्यवस्था में विश्वास को लेकर है। केवल 11.2 फीसदी परिवार मानते हैं कि अगले वर्ष अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर रहेगी और केवल 11.6 फीसदी लोग यह मानते हैं कि अगले पांच वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन निरंतर बेहतर रहेगा। यह संभव है कि बढ़ती मुद्रास्फीति, ब्याज दर और बेरोजगारी दर, भारतीय अर्थव्यवस्था के आत्मविश्वास पर असर डाल रहे हों।