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रिजर्व बैंक ने इस साल बढ़ाया निगरानी का दायरा

ग्राहकों के हित को सर्वोपरि रखते हुए केंद्रीय बैंक ने उन पर पूरे साल सख्ती दिखाई, जो नियमों का अक्षरश: पालन नहीं कर रहे थे। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

Last Updated- December 27, 2024 | 10:09 PM IST
Reserve Bank of India

साल 2024 अब आखिरी पड़ाव पर है, इसलिए देखते हैं कि भारत के वित्तीय क्षेत्र के लिए यह साल कैसा रहा। नीतिगत दरों में साल भर कोई बदलाव नहीं हुआ और यह 6.5 प्रतिशत बनी रही। किंतु भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की अक्टूबर और दिसंबर में हुई आखिरी दो बैठकों में कुछ हरकत देखी गई क्योंकि आर्थिक वृद्धि और महंगाई का समीकरण बदलने लगा था। साल भर सख्ती दिखाते आए रिजर्व बैंक ने अक्टूबर में अपना नीतिगत रुख ‘तटस्थ’ कर लिया और कुछ भी नया नहीं करने का फैसला किया। इसके फौरन बाद दिसंबर में उसने बैंकों का नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) घटा दिया ताकि बाजार में और पैसा आ सके।

गुजरते साल की घटनाओं और रुझानों पर विचार करने से पहले हमें कुछ आंकड़ों पर विचार करना चाहिए। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर 2023 में 5.69 प्रतिशत थी। जनवरी 2024 में यह कम होकर 5.10 प्रतिशत रह गई और जुलाई में तो गिरकर 3.6 प्रतिशत पर टिक गई। पिछले पांच साल में यह सीपीआई महंगाई का दूसरा सबसे कम आंकड़ा था और रिजर्व बैंक के सहजता वाले दायरे में काफी नीचे आ रहा था। लेकिन खाद्य कीमतें बढञने के साथ ही अक्टूबर में यह 14 महीने के सबसे ऊंचे आंकड़े 6.2 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह आंकड़ा केंद्रीय बैंक के महंगाई लक्ष्य को लांघ गया था। नवंबर में यह एक बार फिर घटकर 5.47 प्रतिशत रहा।

देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि की रफ्तार भी लगातार धीमी होती रही है। वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मार्च तिमाही के दौरान 7.76 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जो जून तिमाही में घटकर 6.5 प्रतिशत रह गई और सितंबर तिमाही में तो लुढ़ककर केवल 5.36 प्रतिशत पर टिक गई। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था में लगातार तीसरी तिमाही में धीमी वृद्धि रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था, बैंकिंग और वित्त का संकेत देने वाले दूसरे पैमाने क्या कह रहे हैं?

10 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड 2023 में 7.17 प्रतिशत पर बंद हुई थी। पिछले शुक्रवार (20 दिसंबर) को यह 38 आधार अंक नीचे 6.79 प्रतिशत पर बंद हुई। पूरे साल की बात करें तो 22 अप्रैल को यील्ड सबसे ज्यादा 7.245 प्रतिशत तक गई और 16 दिसंबर को सबसे कम 6.65 प्रतिशत रही। एक आधार अंक प्रतिशत का सौवां हिस्सा होता है। बॉन्ड की यील्ड बढ़ती है तो उसकी कीमत घटती है और यील्ड घटने पर कीमत बढ़ती है।

2024 में अमेरिका के 10 साल के बॉन्ड की यील्ड भी 3.88 प्रतिशत से बढ़कर 4.55 प्रतिशत हो गई। इससे भारत और अमेरिका के 10 साल के बॉन्ड की यील्ड में 224 आधार अंक का अंतर रह गया, जो दिसंबर 2023 में 330 आधार अंक था। इस समय यह अंतर दो दशक में सबसे कम आंकड़े के आसपास है। इससे विदेशी निवेशकों की भारत में दिलचस्पी कम हो सकती है क्योंकि अमेरिका में उन्हें बॉन्ड पर ज्यादा रिटर्न मिल रहा है।

रुपये और डॉलर की विनिमय दर कैसी रही है? भारतीय मुद्रा पिछले साल 83.21 प्रति डॉलर पर बंद हुई थी। इस साल डॉलर की कीमत 11 मार्च को सबसे कम 82.76 रुपये रही और इस शुक्रवार यानी 27 दिसंबर को सबसे अधिक 85.54 रुपये हो गई। इस साल अभी तक डॉलर की औसत कीमत 83.64 रुपये के आसपास रही है। 2023 के आखिरी शुक्रवार को देश का विदेशी मुद्रा भंडार 623 अरब डॉलर था। इस साल 27 सितंबर को यह सबसे अधिक 704.9 अरब डॉलर तक पहुंचा और उसके बाद से घट ही रहा है। यह भंडार 13 दिसंबर तक घटकर 644.4 अरब डॉलर रह गया क्योंकि विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव रोकने के लिए रिजर्व बैंक डॉलर बेच रहा है।

निफ्टी 50 पिछले साल 21,731 पर बंद हुआ था। इस साल के आखिरी शुक्रवार यानी 27 दिसंबर को यह 23,813 पर बंद हुआ। इस साल यह सूचकांक 27 सितंबर को सबसे अधिक 26,277 अंक तक पहुंचा था और 24 जनवरी को यह सबसे कम 21,137 अंक पर बंद हुआ। ब्रेंट क्रूड के दाम पिछले साल दिसंबर में 77.04 डॉलर प्रति बैरल थे। 12 अप्रैल 2024 को भाव चढ़कर 92.18 डॉलर तक पहुंच गया और पिछले हफ्ते लगभग 72.50 डॉलर पर बंद हुआ। इस साल 10 सितंबर को ब्रेंट क्रूड का दाम सबसे कम 68.68 डॉलर प्रति बैरल था।

पिछले वर्ष के अंत तक बैंकिंग प्रणाली ने कुल 159.6 लाख करोड़ रुपये के कर्ज दिए थे। इस साल 29 नवंबर तक उनके द्वारा दिए गए कर्ज की कुल रकम बढ़कर 175 लाख करोड़ रुपये हो गई। इसी दौरान कुल जमा रकम 200.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 220 लाख करोड़ रुपये हो गई है। मगर इस साल बैंकिंग क्षेत्र की जमा और ऋण में वृद्धि की रफ्तार बहुत कम हो गई है।

अंत में वित्तीय प्रणाली की सेहत का जायजा भी लेते हैं। नवीनतम आंकड़े तो इस हफ्ते के अंत तक ही आएंगे, जब भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी होगी। बैंकिंग प्रणाली की कुल गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) सितंबर 2023 में 3.2 प्रतिशत थीं, जो मार्च 2024 में घटकर 2.8 प्रतिशत रह गईं। इस दौरान प्रोविजनिंग के बाद शुद्ध एनपीए 0.8 प्रतिशत से घटकर 0.6 प्रतिशत रह गया। मगर पूंजी पर्याप्तता अनुपात 16.8 प्रतिशत ही रहा। इसी बीच गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का कुल एनपीए भी 4.6 प्रतिशत से घटकर 4 प्रतिशत रह गया और परिसंपत्ति पर रिटर्न 2.9 प्रतिशत से बढ़कर 3.3 प्रतिशत हो गया। उनके पूंजी पर्याप्तता अनुपात में मामूली गिरावट आई और यह 27.6 प्रतिशत से घटकर 26.6 प्रतिशत रह गया।

बहरहाल 2024 में रिजर्व बैंक का ज्यादा ध्यान निगरानी करने और सतर्कता बरतने पर रहा है। उसने नियमों का अक्षरश: पालन नहीं करने वालों पर कड़ी नजर रखी है। ग्राहकों के हित को सबसे ऊपर रखते हुए केंद्रीय बैंक लोकतांत्रिक रहा है। उसने कार्रवाई करते समय बड़ी या छोटी कंपनियों के बीच भेदभाव नहीं किया है और दोनों के साथ एक जैसा बरताव किया है।

पीयर-टु-पीयर (पी2पी) उधारी देने वाले प्लेटफॉर्म जब जमा लेने वाली एनबीएफसी की तरह काम करने लगे तो रिजर्व बैंक ने उन्हें सही सबक सिखाया। उनमें से कुछ प्लेटफॉर्म सामूहिक निवेश योजनाएं भी चलाने लगे थे, जहां कर्ज देने वालों से पैसा इकट्ठा कर लिया जाता था और फिर वह पैसा उधार मांगने वाले तमाम लोगों को दिया जाता था। जब नियामक को पता चला कि कई नियमों का उल्लंघन करने के साथ ही पी2पी उधारी प्लेटफॉर्म मध्यस्थ की तरह काम नहीं कर रहे हैं बल्कि कर्ज को निवेश योजना की तरह पेश कर रहे हैं और नकदी के विकल्प दे रहे हैं तब उसे दखल देना पड़ा।

अगर भारत का पी2पी बाजार भी चीन की राह पर चलने लगे तो किसी को ताज्जुब नहीं होगा। 2007 और 2020 के बीच चीन का पी2पी बाजार बुलबुले की तरह दिखा। बाजार एकाएक चढ़ने लगा मगर उसके भागीदारों ने सूचना देने वाले मध्यस्थों के बजाय छद्म बैंक की तरह काम करना शुरू कर दिया और मूलधन की गारंटी भी देने लगे तो यह बुलबुले की तरह फूटकर खत्म हो गया।

ज्यादा वक्त नहीं बीता है, जब रिजर्व बैंक ने देश के सबसे बड़े निजी बैंक, एक बहुत बड़े सरकारी बैंक, एक भारीभरकम एनबीएफसी और कुछ अन्य के खिलाफ कार्रवाई की थी। उसने इन सभी को कुछ योजनाओं में नए ग्राहक जोड़ने से रोक दिया था। इस साल बैंकिंग नियामक ने सफाई का यह अभियान नए उत्साह के साथ चलाया। अप्रैल में उसने बड़े निजी बैंक को ऑनलाइन और मोबाइल बैंकिंग के जरिये नए ग्राहक जोड़ने तथा नए क्रेडिट कार्ड जारी करने से रोका। एक पेमेंट बैंक 15 मार्च को बंद हो गया। उससे पहले मार्च के पहले हफ्ते में केंद्रीय बैंक ने निगरानी से जुड़ी चिंताओं का हवाला देकर एक गोल्ड लोन कंपनी पर रोक लगा दी।

रिजर्व बैंक ने एक एनबीएफसी को भी शेयर और डीबेंचर के बदले किसी भी तरह का कर्ज देने से रोका। अक्टूबर में ऐसा ही आदेश जारी कर उसने चार एनबीएफसी को नए कर्ज मंजूर करने और बांटने से रोक दिया गया। उसे पता चला कि ये एनबीएफसी कर्ज के बदले ज्यादा ब्याज वसूल रहे हैं और कर्ज देते समय कर्जदार की आय तथा मासिक किस्त चुकाने की क्षमता भी नियमानुसार नहीं आंक रहे हैं। इतना ही नहीं वे ग्राहकों को नया कर्ज लेकर पुराना कर्ज चुकाने के लिए भी लुभा रही थीं।

कुछ मामलों में रिजर्व बैंक अपने आदेश की समीक्षा कर कंपनियों को काम दोबारा शुरू करने की इजाजत दे चुका है। बाकी कंपनियां राहत का इंतजार कर रही हैं। मगर इतना साफ है कि दो एनबीएफसी को बंद होते देख और कुछ बैंकों को लगभग बंद होते देखने के बाद नियामक ने निगरानी करने का अपना तरीका बदल लिया है। क्या यह सिलसिला अगले साल भी जारी रहेगा? क्या फरवरी में दर घटाई जाएंगी? और ऐसा होता है तो दर कटौती का सिलसिला लंबा चलेगा या जल्दी थम जाएगा? देखते हैं कि रिजर्व बैंक के नए गवर्नर अपनी प्राथमिकताएं कैसे तय करते हैं।

First Published - December 27, 2024 | 10:09 PM IST

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