अब अधिकांश निवेशक काफी हद तक समझ चुके हैं कि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने महंगाई के खतरे का गंभीरता से आकलन नहीं किया था। अधिकांश विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों के संबंध में भी अलग-अलग सीमा तक यही कथन लागू हो सकता है। पूरी दुनिया के लिए महंगाई एक समस्या बन चुकी है और यह जल्द समाप्त होती नहीं दिख रही है। विगत 12 महीनों में महंगाई से जुड़े अनुमान लगातार कम रहे थे और प्रत्येक आंकड़े में इसमें संशोधन कर इसके और अधिक ऊंचे स्तर पर रहने की बात कही गई है। अमेरिका में यह प्रारूप विशेषकर लागू होता है। इससे यह खतरनाक आशंका उत्पन्न हो जाती है कि महंगाई के संबंध में वर्तमान अनुमान सटीक साबित नहीं हो रहा है। उदाहरण के लिए यह काफी हैरान करने वाला है कि ठीक 12 महीने पहले 2022 की पहली तिमाही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई (सीपीआई) 2 प्रतिशत से थोड़ी अधिक रहने का अनुमान जताया गया था। मगर अब यह आंकड़ा 8 प्रतिशत के इर्द-गिर्द रह सकता है। यानी अनुमान एक बड़े अंतर से चूक गया है। महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए फेडरल रिजर्व को ब्याज दरें बढ़ानी होंगी और अनुमानों के अनुरूप कदम उठाने होंगे।
मध्य मार्च में फेडरल रिजर्व ब्याज दरें पहले ही 25 आधार अंक बढ़ा चुका है और बाजार 2022 में 170-180 आधार अंकों की बढ़ोतरी की और उम्मीद कर रहा है। चूंकि 2022 में अब केवल छह समीक्षा बैठकें और होनी हैं इसलिए कम से कम 50 आधार अंकों की एक या इससे अधिक बार बढ़ोतरी हो सकती है। ब्याज दरों में इन बढ़ोतरी के अलावा 2022 में बहीखाते का आकार छोटा होगा क्योंकि फेडरल रिजर्व ने बॉन्ड खरीदना बंद कर दिया है। बहीखाते के आकार में यह कमी ब्याज दरों में एक और 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी के समतुल्य होगी।
वर्तमान समय ब्याज दरों में तेज बढ़ोतरी का दौर भले ही लग रहा है मगर वित्तीय इतिहास के लिहाज से यह वृद्धि पर्याप्त साबित नहीं हो सकती है। जब खुदरा महंगाई आठ प्रतिशत थी तो फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू की थी। इसके बावजूद एक वर्ष में केवल 200 आधार अंकों की वृद्धि की उम्मीद दिख रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बढ़ोतरी का केवल एक दौर ऐसा रहा है जिसमें शुरुआत में खुदरा महंगाई 8 प्रतिशत से अधिक थी। उस चक्र में एक वर्ष में ब्याज दरें 600 आधार अंकों तक बढ़ी थीं।
दूसरे सभी मौकों पर ब्याज दरों में पहली बढ़ोतरी के समय सीपीआई चार प्रतिशत या इससे कम थी। यह सच है कि आधार प्रभाव और ईंधन एवं खाद्य वस्तुओं की कीमतों के मद्देनजर आठ प्रतिशत सीपीआई की बात वास्तविकता से थोड़ी अधिक है मगर तब भी प्रमुख व्यक्तिगत उपभोग व्यय (पीसीई) पांच प्रतिशत से अधिक है। पिछले 90 दिनों से पीईसी श्रेणी में 94 प्रतिशत वस्तु एवं सेवाओं की कीमतों में इजाफा हो रहा है। फेडरल रिजर्व ने भी अपने अनुमान में कहा है कि प्रमुख पीसीई 2024 में भी दो प्रतिशत (तय लक्ष्य) से नीचे आने की उम्मीद नहीं दिख रही है।
महंगाई के खतरे की गंभीरता को भांपते हुए अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह केवल अति उदारवादी रवैये से पीछे हटने के बजाय मौद्रिक नीति को सीमित दायरे में ले जाएगा। केंद्रीय बैंक को लगता है कि नीतिगत दर 2022 के अंत तक करीब दो प्रतिशत के करीब पहुंच सकती है और बाद में 2023 के अंत में 2.75 प्रतिशत का स्तर छू सकती है और 2024 में पूरे साल इसी स्तर पर रहेगी। 2.75 प्रतिशत दर केंद्रीय बैंक के दीर्घ अवधि की तटस्थ दर 2.30-2.409 प्रतिशत के अनुमान से अधिक है। दरों को लेकर अनुमान यह संकेत देता है कि फेडरल रिजर्व समझ रहा है कि जान बूझकर अर्थव्यवस्था को सुस्त कर और मौद्रिक नीति कड़ी कर मांग को नुकसान पहुंचाने से महंगाई नियंत्रित की जा सकती है। फेडरल रिजर्व को लगता है कि ब्याज दरें केवल सामान्य बनाने भर से महंगाई नियंत्रित होने वाली नहीं है। दरों में बढ़ोतरी के अलावा कई निवेश बैंकों को लगता है कि फेडरल रिजर्व के बहीखाते के आकार में कमी 2023 में तीन से चार दर वृद्धि के समतुल्य होगी।
इस कड़े रुख को देखते हुए बाजार और परिसंपत्तियों पर क्या असर होगा? अगर पिछले अनुभवों की बात करें तो शुरुआती 12 महीनों में बाजार में बहुत कुछ नहीं होगा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दरों में बढ़ोतरी के 13 दौर रहे हैं और पहली बार दर बढऩे के बाद 11 महीने बाद मंदी आई थी जबकि मंदी आम तौर पर पहली बढ़ोतरी के करीब तीन वर्षों बाद आती है। दर बढ़ोतरी के चार दौर ऐसे रहे हैं जब मंदी 50 महीनों से अधिक समय बाद आई थी। हालांकि यह अवधि थोड़ी अलग है और दर बढ़ोतरी का मौजूदा दौर ऐसे समय में शुरू हुआ है जब अर्थव्यवस्था कमजोर दिख रही है। अमेरिका में उपभोक्ता धारणा के अनुसार निकट भविष्य में मंदी आने की आशंका 50 प्रतिशत तक है।
फेडरल बाजार और अर्थव्यवस्था को बिना अधिक नुकसान पहुंचाए कदम उठाना चाहता है मगर इसकी गुंजाइश बहुत कम लगती है। महंगाई में तेजी के बाद फेडरल रिजर्व को अर्थव्यवस्था की सुस्त चाल के बाद भी दरों में इजाफा करना पड़ रहा है। रूस और यूक्रेन में युद्ध और आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं ने मामला और बिगाड़ दिया है। क्या अमेरिका में नीति निर्धारक अर्थव्यस्था को नुकसान पहुंचाए बिना महंगाई नियंत्रित कर सकते हैं? या फिर अर्थव्यवस्था को बचाने के चक्कर में महंगाई ऊंचे स्तर पर पहुंच जाएगी? विकल्प का चयन काफी कठिन है जो कम से कम बाजार में काफी अनिश्चितता का कारण बनेगा।
दीर्घ अवधि के बॉन्ड पर प्रतिफल को भी विरोधाभासी रुझानों का सामना करना पड़ रहा है। कमजोर आर्थिक हालात से वास्तविक प्रतिफल कम हो रहे हैं जबकि महंगाई से जुड़ी आशंका मजबूत होती जा रही है। इस समय अमेरिका में 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि के बॉन्ड पर प्रतिफल 2.45 प्रतिशत का स्तर पार कर गया है और संभवत: और ऊपर जा रहा है। सच्चाई यह है कि आज भी सक्रिय निवेशकों ने देखा है कि 1982 से 10 वर्ष के बॉन्ड पर प्रतिफल का रुझान नीचे रहा है। विपरीत परिस्थितियों में फेडरल रिजर्व बाजार में हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं रहा है।
इस बार समस्या यह है कि क्या आठ प्रतिशत महंगाई के समय में फेडरल रिजर्व हस्तक्षेप करने और बाजार को राहत पहुंचाने में सफल रहेगा? दर बढ़ोतरी के पिछले सभी दौर में फेडरल रिजर्व को महंगाई और इसे नियंत्रित करने की अपनी छवि को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं थी। यह बात फिलहाल सच नहीं है। अमेरिका में इन दिनों नीति निर्धारकों के लिए अधिक स्वतंत्रता नहीं बची है। वे महज चुटकी बजाकर महंगाई की समस्या दूर नहीं कर सकते हैं। हमें आने वाले समय में परिसंपत्ति बाजार में अधिक अनिश्चितता और बाजार को बचाने से फेडरल रिजर्व को दूर रहते देखना पड़ सकता है। करीब 40 वर्ष पहले बाजार को इतना भरोसा था कि फेडरल रिजर्व का समर्थन उनके साथ है मगर अब यह बात पुख्ता तौर पर नहीं कही जा सकती है। अब ऐसी बात नहीं रह गई है, कम से कम दर बढ़ोतरी के इस दौर में इसकी संभावना नहीं है।
(लेेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)
