केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने गत सप्ताह राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी तय करने को लेकर तकनीकी जानकारियां मुहैया कराने और जरूरी अनुशंसाएं करने के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया। इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ के अजित मिश्रा की अध्यक्षता में इस विशेषज्ञ समूह का गठन तीन वर्ष की अवधि के लिए किया गया है। इसका अर्थ यह है कि सरकार के निकट भविष्य में न्यूनतम मजदूरी का स्तर तय करने की संभावना नहीं है जबकि नई वेतन संहिता में ऐसा करने को कहा गया है। सन 2019 की वेतन संहिता के अनुसार केंद्र सरकार को कामगारों के न्यूनतम जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए मजदूरी की सीमा तय करनी चाहिए। यह राज्यों के लिए भी दर तय कर सकती है ताकि वे केंद्र की तय दर से कम भुगतान न करें।
बहरहाल एक और समिति की स्थापना के पीछे का तर्क स्पष्ट नहीं है। सरकार ने जनवरी 2017 में अनूप सत्पथी की अध्यक्षता में भी एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट 2019 में सौंपी और उसने यह अनुशंसा की थी कि जरूरत को ध्यान मेंं रखते हुए जुलाई 2018 की स्थिति से 375 रुपये रोजाना अथवा 9,750 रुपये प्रति माह न्यूनतम मजदूरी तय होनी चाहिए। समिति ने सुझाव दिया कि न्यूनतम मजदूरी का संबंध कौशल या पेशे से नहीं है। समिति ने यह अनुशंसा भी की कि शहरी कामगारों के लिए अतिरिक्त आवास भत्ते का इंतजाम करना चाहिए। राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी के अतिरिक्त समिति ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों के लिए स्थानीय कारकों पर आधारित अलग-अलग न्यूनतम मजदूरी होनी चाहिए। समिति ने कहा कि विभिन्न राज्यों में आजीविका की अलग-अलग लागत को देखते हुए ऐसा करना उचित होगा। इस दिशा मेंं अधिक प्रगति नहीं हुई क्योंकि सरकार ने 2019 में न्यूनतम मजदूरी में नाम मात्र की बढ़ोतरी की। बहरहाल, कुछ श्रम संगठनों ने अवश्य ऊंचे न्यूनतम वेतन की मांग की।
इस संदर्भ में विशेष समिति के लिए सही संतुलन साधना आवश्यक होगा। यदि न्यूनतम मजदूरी बहुत अधिक तय की जाती है तो इससे नियोक्ता ज्यादा श्रमिकों को नियुक्त करने से हिचकिचाएंगे और उत्पादन के लिए अधिक पूंजी आधारित तकनीकतलाश करेंगे। बहरहाल यदि यह बहुत कम तय की जाएगी तो कामगारों के लिए आजीविका मुश्किल होगी। परंतु सैद्धांतिक रूप से देखें तो न्यूनतम मजदूरी बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए और एक न्यूनतम सीमा से अधिक वेतन निर्धारित करने का अधिकार राज्यों को होना चाहिए। अधिक पारदर्शिता बरतने के लिए सरकार जितनी जल्दी इस प्रक्रिया को पूरा करे उतना अच्छा होगा। कोविड-19 के कारण व्याप्त विसंगतियों ने बड़ी तादाद में कंपनियों को प्रभावित किया है। अर्थव्यवस्था में सुधार होने के साथ ही मजदूरी पर स्पष्टता आने से कंपनियों को योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। इससे उन कामगारों को भी आश्वस्ति मिलेगी जो अपने घर का बहीखाता दुरुस्त करने का प्रयास कर रहे हैं।
भारत बड़ी तादाद में मौजूद श्रमिकों का लाभ श्रम आधारित विनिर्माण तथा निर्यात के क्षेत्र में उठाने में नाकाम रहा है। इसकी एक वजह जटिल श्रम कानून भी रहे हैं। यही कारण है कि भारतीय कारोबार अंतरराष्ट्रीय बाजारों से प्रतिस्पर्धा करने लायक क्षमता नहीं हासिल कर सके। सरकार ने श्रम संहिताओं के जरिये इन कानूनों को सरल बनाकर अच्छा किया है। यह बात अहम होगी कि इस क्षेत्र के नियमों को सरल रखा जाए ताकि कंपनियों को अधिक श्रमिकों को काम पर रखने और उत्पादन बढ़ाने का प्रोत्साहन मिले। इससे श्रम बाजार और अधिक औपचारिक होगा। इससे श्रमिकों के अधिकारों का संरक्षण भी सुनिश्चित होगा।
