मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने बुधवार को चालू वित्त वर्ष की अपनी अंतिम बैठक में नीतिगत रीपो दर में 25 आधार अंक का इजाफा करके इसे 6.5 फीसदी कर दिया।
स्टैंडिंग डिपॉजिट सुविधा और मार्जिनल स्टैंडिंग सुविधा दरों को भी इसी के अनुरूप समायोजित करके क्रमश: 6.25 फीसदी और 6.75 फीसदी कर दिया गया।
यह कदम जहां अपेक्षा के अनुरूप ही था, वहीं केंद्रीय बैंक के संचार से यह बात स्पष्ट रूप से सामने नहीं आई कि समिति मौजूदा स्तर पर रुक जाएगी। हालांकि कई विश्लेषकों को उम्मीद थी कि ऐसा संकेत देखने को मिल सकता है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि केंद्रीय बैंक अपने विकल्प खुले रखना चाहता है। वह अभी भी मुद्रास्फीति के स्तर को लेकर बहुत सहज नहीं है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर नवंबर और दिसंबर में तय दायरे के ऊपरी स्तर से नीचे रही। मोटे तौर पर ऐसा इसलिए हुआ कि सब्जियों की कीमतों में तेज गिरावट देखने को मिली। मूल मुद्रास्फीति का स्तर अभी भी ऊंचा है और तय दायरे के ऊपर है।
बहरहाल, दरें तय करने वाली समिति का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर घटकर 5.3 फीसदी रह जाएगी जबकि 2022-23 में यह दर 6.5 फीसदी थी।
अगले वर्ष की किसी भी तिमाही में दरों के 5 फीसदी से नीचे जाने की आशा नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि वर्ष के दौरान दर 4 फीसदी के मुद्रास्फीति के लक्ष्य से काफी ऊपर बनी रहेगी।
रिजर्व बैंक का मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान बाजार विश्लेषकों के अनुमान से थोड़ा अधिक है और एमपीसी की आगामी बैठकों में उसे संशोधित करके कम किया जा सकता है। माना जा रहा है कि 2023 में दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुद्रास्फीति में कमी आएगी।
हालांकि यूक्रेन युद्ध अभी भी वैश्विक जिंस कीमतों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। वृद्धि के मामले में रिजर्व बैंक का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24 में 6.4 फीसदी की दर से विकसित होगी।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने चालू वर्ष के बारे में अनुमान जताया है कि इस वर्ष वृद्धि दर 7 फीसदी रहेगी। यह अनुमान भी वास्तविकता से परे नजर आता है।
उदाहरण के लिए केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि 2023-24 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.8 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करेगी जो काफी अधिक है जबकि बाकी तिमाहियों में दरों में कमी आने का अनुमान है। संभव है कि 2023-24 के लिए वृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों के पूर्वानुमानों को भविष्य में संशोधित करके कम किया जाए।
भविष्य में दरों संबंधी कदमों की बात करें तो एमपीसी ने अपने विकल्प खुले रखे हैं। वह फिलहाल दरों में इजाफा रोककर यह देखना चाहेगी कि दरों में अब तक किया गया इजाफा मुद्रास्फीति को किस प्रकार प्रभावित करता है। इस सप्ताह की बैठक में समिति के दो सदस्यों ने दरों में इजाफे का विरोध किया।
हालांकि असहमति का कारण तब पता चलेगा जब बैठक का ब्योरा जारी किया जाएगा लेकिन संभव है कि एमपीसी के सदस्य दरों को वर्तमान स्तर से ज्यादा करने के पहले अब तक किए गए इजाफे का प्रभाव आंकना चाहते हों। यह बात ध्यान देने लायक है वास्तविक नीतिगत दर अगले वित्त वर्ष के दौरान सकारात्मक रहेगी।
ऐसे में एमपीसी के लिए यह अहम होगा कि वह वास्तविक नीतिगत दर का स्तर निर्धारित करे जो मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति का लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप हो। मुद्रास्फीति के उभरते हालात के साथ ही यह भविष्य के नीतिगत कदमों पर भी असर डालेगा।
इसके अलावा चालू खाते का घाटा कम होने की आशा है लेकिन रिजर्व बैंक को बाहरी मोर्चे पर सतर्क रहना होगा। मुद्रा कीमतों में अहम बदलाव भी मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को प्रभावित करेगा।