प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
मार्जिन विस्तार का स्वर्ण युग (गोल्डन एज ऑफ मार्जिन एक्सपेंशन या गेम) एक ऐसा सिद्धांत था जिसे अल्टीमीटर कैपिटल के ब्रैड गर्स्टनर ने विभिन्न ट्वीट और पॉडकास्ट के जरिये प्रचलित किया। उन्हें खासतौर पर अक्टूबर 2022 में मेटा को लिखे खुले पत्र के लिए जाना जाता है जिसमें उन्होंने शेयर बाजार में कमजोर चल रही कंपनी से कहा था कि कंपनी को फिट बनने, लागत कम करने और अपने मूल काम पर ध्यान देने की जरूरत है। इस सलाह पर अमल करके कंपनी पिछले तीन साल में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले टेक्नॉलजी शेयरों में शामिल है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआई में भरोसा करने वाले तथा ओपनएआई के निवेशक गर्स्टनर मानते हैं कि अब वक्त आ गया है कि सभी बड़ी टेक कंपनियां और मोटे तौर पर सभी कंपनियां अपनी उत्पादकता बढ़ाने के लिए एआई का इस्तेमाल करें। उन्हें लगता है कि एआई के प्रभावी इस्तेमाल से उत्पादकता में काफी इजाफा होगा क्योंकि कंपनियों को कर्मचारियों की तादाद कम करने में मदद मिलेगी जबकि राजस्व बढ़ेगा।
एआई ने पहले ही ग्राहक सेवा और प्रोग्रामिंग में अपनी काबिलियत साबित कर दी है और जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी परिपक्व होगी और उद्यम इसके साथ अधिक सहज होते जाएंगे, उसका इस्तेमाल समय के साथ बढ़ता जाएगा। हर राेज हमें कोई न कोई नया ऐप्लीकेशन देखने को मिलता है और स्वास्थ्य क्षेत्र से लेकर रक्षा तक हर जगह इनका इस्तेमाल हो रहा है। एआई को अपनाने और इस्तेमाल करने की लागत भी तेजी से कम हो रही है। लार्ज लैंग्वेज मॉडलों की बात करें तो छह मॉडलों में से कम से कम तीन ओपन सोर्स हैं।
उत्पादकता और मार्जिन की बात करें तो इसके प्रमाण के रूप में गर्स्टनर बताते हैं कि कैसे 7 बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर अपने कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी कम कर दी है। वह एक चार्ट दिखाते हैं जो बताता है कि 2011 से 2021 के बीच इन कंपनियों के कर्मचारी सालाना 25 फीसदी की दर से बढ़ रहे थे। वर्ष 2020 में 45 फीसदी की वृद्धि के साथ यह उच्चतम स्तर पर पहुंचा। उस समय कोविड ने उपभोक्ताओं के व्यवहार को बदल दिया था। लेकिन बीते तीन सालों में यह वृद्धि घटकर केवल 2 फीसदी रह गई है।
बहरहाल, विगत तीन महीनों में सात बड़ी कंपनियों का राजस्व अभी भी 15-20 फीसदी की दर से बढ़ रहा है जबकि इस बीच कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ी है। इसके चलते मार्जिन विस्तार की गुंजाइश बढ़ी। पिछली तिमाही में ही अल्फाबेट का राजस्व 14 फीसदी, मेटा का 22 फीसदी और माइक्रोसॉफ्ट का 18 फीसदी बढ़ा। परिचालन मार्जिन की बात करें तो अल्फाबेट का परिचालन मार्जिन 32.5 फीसदी, मेटा का 43 फीसदी और माइक्रोसॉफ्ट का 45 फीसदी रहा। इन सभी में इजाफा हुआ। इन कंपनियों द्वारा अपना पूंजीगत व्यय अनुमान 75-80 अरब डॉलर तक बढ़ाने तथा शोध एवं विकास लागत बढ़ाने के बावजूद उनका परिचालन मार्जिन बढ़ा। कॉरपोरेट बोर्डरूम इस बदलाव को लेकर पूरी तरह सजग हैं, और अधिकांश सर्वेक्षणों से यह स्पष्ट होता है कि शीर्ष प्रबंधन का मानना है कि उनकी कंपनियां एआई के उपयोग से उत्पादकता में कम से कम 20 फीसदी तक वृद्धि देख सकती हैं। अधिकतर प्रबंधकों का मानना है कि भविष्य में उन्हें कम कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।
कर्मचारियों की संख्या में इस कमी का क्या असर होगा? अब यह स्पष्ट है कि हर कंपनी को एआई टूल्स को अपनाना होगा। उन्हें अधिक उत्पादक बनना होगा वरना वे नाकाम हो जाएंगी। वही कंपनियां विजेता साबित होंगी जिनके पास मूल्य तय करने की क्षमता होगी और जिनका कद इतना बड़ा होगा कि उन्हें अपनी लागत बचत को पूरी तरह ग्राहकों के साथ साझा नहीं करना होगा।
यदि कंपनियां इन लागत बचतों में से कुछ को बनाए रख सकें और मार्जिन विस्तार दिखा सकें, तो उनके वैल्यूएशन में सुधार होगा और उन्हें मजबूत निवेशक समर्थन प्राप्त होगा। हालांकि, ऐसी मूल्य निर्धारण क्षमता कुछ ही कंपनियों के पास होती है। अधिकांश कंपनियां इन लागत बचतों को मूल्य कटौती के माध्यम से प्रतिस्पर्धा में गंवा देंगी। यदि पूरा उद्योग अधिक उत्पादक बन रहा है, तो यह किसी तरह से नहीं हो सकता कि कंपनियां इन बचतों को अपने पास रख पाएंगी। संभावना तो यह है कि एआई का उपयोग एक मूलभूत आवश्यकता बन जाएगा यानी सिर्फ प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए भी इसे अपनाना अनिवार्य होगा।
यह संभव है कि हमें तमाम उद्योगों और उत्पादों में अपस्फीति का सामना करना पड़े। इससे ग्राहकों को लाभ होगा और मुद्रास्फीति में कमी आएगी। ऐसे में हमें उन कंपनियों पर दांव लगाना होगा जिनके पास कीमतों में लचीलापन हो ताकि कीमतों में कमी के बावजूद मात्रा ज्यादा होने से मुनाफा बढ़ सके। बाजार मात्रा आधारित वृद्धि को अत्यधिक महत्त्व देंगे, क्योंकि अधिकांश लोगों का मानना होगा कि एआई-प्रेरित अपस्फीति के युग में, मूल्य निर्धारण को एक रणनीतिक साधन के रूप में इस्तेमाल करने की क्षमता केवल कुछ चुनिंदा कंपनियों के पास होगी विशेष रूप से उन कंपनियों के पास जिनका ग्राहकों पर मजबूत नियंत्रण है।
अच्छी निवेश रणनीति यह हो सकती है कि भारी तयशुदा खर्च या भारी भरकम एसजीऐंडए बजट वाली कंपनियों पर दांव लगाया जाए। यह भी एक तथ्य है कि यदि आप एक स्थापित कंपनी हैं और किसी एआई-आधारित स्टार्टअप से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, तो यह चुनौतीपूर्ण होगा। स्टार्टअप की लागत संरचना पारंपरिक कंपनियों से मूल रूप से अलग होती है।
उदाहरण के तौर पर, अल्फाबेट को ओपनएआई से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। ये दोनों कंपनियां लार्ज लैंग्वेज मॉडल के क्षेत्र में प्रमुख खिलाड़ी हैं। अल्फाबेट के पास जेमिनी है और ओपनएआई के पास चैटजीपीटी। अल्फाबेट में लगभग 1,80,000 कर्मचारी हैं, जबकि ओपनएआई के पास केवल 7,000 कर्मचारी हैं। ऐसे में कौन-सी संस्था अधिक चुस्त होगी और किसकी ओवरहेड लागत कम होगी? यदि कोई स्टार्टअप शुरुआत से ही एआई टूल्स का उपयोग करके अपना व्यवसाय और स्टाफ संरचना तैयार करता है, तो वह संरचनात्मक लागत लाभ प्राप्त कर सकता है।
इसका श्रम शक्ति में शामिल हो रहे युवाओं पर भी गहरा असर होगा। अधिकांश विकसित देशों में नए कॉलेज स्नातकों के लिए बेरोजगारी दर आबादी के औसत से अधिक है। शुरुआती नौकरियों में एआई जगह बना रहा है। इससे सामाजिक तनाव बढ़ेगा। अधिकांश युवाओं को नौकरियां नहीं मिलेंगी जबकि एआई के जानकारों को मुंहमागी कीमत मिल सकती है।
एआई के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि की चर्चा के बीच, भारतीय आईटी सेवा उद्योग की दिशा भी केंद्र में आ गई है। यह अच्छी तरह स्थापित हो चुका है कि कोडिंग में एआई का उपयोग स्पष्ट रूप से प्रभावी है। यह प्रोग्रामर्स की उत्पादकता को कम से कम 25-30 फीसदी तक बढ़ा देता है। ऐसे में एंटरप्राइज ग्राहक यह अपेक्षा करेंगे कि इस 25 फीसदी उत्पादकता का लाभ उन्हें मिले। यदि ग्राहक अपने कर्मचारियों की संख्या घटा रहे हैं, तो क्या वे अब भी 2,000 लोगों वाली आईटी सेवा परियोजनाओं में रुचि लेंगे? बहरहाल, मेरा विश्वास है कि हमारे आईटी सेवा क्षेत्र के दिग्गज अनुकूलनशील हैं और वे एआई के उपयोग और उसे अपनाने के इर्दगिर्द नई सेवा श्रेणियां विकसित करने के रास्ते खोज लेंगे, फिर भी यह संभव है कि कुछ वर्षों तक हमें एक अस्थायी अंतराल का सामना करना पड़े, जहां नई सेवाएं मौजूदा व्यवसाय में आई गिरावट की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगी।
हर कंपनी को एआई टूल्स का उपयोग करना होगा और अपनी कारोबारी प्रक्रिया को बुनियादी रूप से बदलना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वे बच नहीं सकेंगी। देश के कारोबारी जगत में इसका संकेत नजर आने लगा है। जो कंपनियां शुरू में इसे अपना रही हैं वे मजबूत लागत नियंत्रण दिखा रही हैं और उनका राजस्व अच्छा है। हर किसी को ऐसा ही करना होगा।
(लेखक अमांसा कैपिटल से जुड़े हैं)