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परिवारों का आशावादी नजरिया सजगता से भरपूर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 12:16 AM IST

माहौल में एक तरह की उम्मीद व्याप्त है। शायद यह आर्थिक परिदृश्य में आए बदलाव की झलक है। हाल में आए आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में फिर से जान आ रही है। कर संग्रह, विदेश व्यापार, बिजली उत्पादन जैसे तमाम कारक इस वित्त वर्ष में अभी तक लगातार तेजी दिखा रहे हैं। रोजगार के हालात एवं उपभोक्ताओं की धारणाएं भी सितंबर के महीने में नाटकीय रूप से सुधरीं। अक्टूबर में भी यह सिलसिला जारी है। गत 10 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में उपभोक्ता धारणा में 9.8 फीसदी की असामान्य बढ़त देखी गई। हमें ध्यान में रखना होगा कि पिछले साल की तुलना में उपभोक्ता धारणा में औसत साप्ताहिक परिवर्तन 0.6 फीसदी हुआ है जबकि माध्य परिवर्तन 0.5 फीसदी का है। इस लिहाज से पिछले हफ्ते में उपभोक्ता धारणा में करीब 10 फीसदी की उछाल इस लिहाज से उल्लेेखनीय है कि इसके पहले के तीन महीनों में भी लगातार सुधार होता रहा है। वृहत-अर्थशास्त्रीय संकेतकों में नजर आई तेजी परिवारों की मनोदशा में हो रहे सुधार के अनुकूल ही है। कुछ तो ऐसा है जो भारतीय उपभोक्ताओं के लिए काम कर रहा है। फिर भी इस त्योहारी मौसम में उपभोक्ताओं में एक तरह की सजगता देखी जा रही है।
उपभोक्ता धारणा सूचकांक में सितंबर में 7.9 फीसदी का अच्छा सुधार आया था। इसके पहले अगस्त में यह 1.7 फीसदी और जुलाई में 11.1 फीसदी बेहतर हुआ था। इस तरह जुलाई से लेकर सितंबर के दौरान उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 21.9 फीसदी की असरदार बढ़त देखी गई।
सूचकांक में आई इस उछाल के लिए काफी हद तक परिवारों के मौजूदा आर्थिक हालात में आया सुधार जिम्मेदार है, न कि भविष्य में हालात बेहतर होने की उम्मीद। कुल सूचकांक में मौजूदा हालात और भावी प्रत्याशा दोनों शामिल होते हैं। उपभोक्ता धारणा सूचकांक में सुधार के पीछे मौजूदा हालात का ज्यादा योगदान होना उम्मीद से ज्यादा असलियत है। सितंबर में मौजूदा आर्थिक हालात का सूचकांक अगस्त के स्तर की तुलना में 11.9 फीसदी उछला था। उसी समय उपभोक्ता प्रत्याशा सूचकांक 5.7 फीसदी ही बढ़ा था। सितंबर तिमाही में मौजूदा हालात सूचकांक 29.8 फीसदी बढ़ा जबकि प्रत्याशा सूचकांक में 17.7 फीसदी की तुलनात्मक रूप से कम वृद्धि ही दर्ज की गई।
उपभोक्ता धारणा सूचकांक में सितंबर में हुए सुधार का प्रमुख कारण यह था कि अधिक परिवारों ने साल भर पहले की तुलना में अपनी आमदनी बढऩे की बात कही। सर्वे में शामिल 8 फीसदी परिवारों ने कहा कि साल भर पहले की तुलना में उनकी आय बढ़ी है जबकि अगस्त में ऐसा कहने वाले परिवारों का अनुपात सिर्फ 4.6 फीसदी था। अप्रैल 2020 से शुरू हुए आर्थिक उठापटक के इस दौर में यह पहला मौका था जब सात फीसदी से अधिक प्रतिभागियों ने साल भर पहले की तुलना में आमदनी बढऩे की बात कही। इसके साथ यह भी महत्त्वपूर्ण है कि अप्रैल 2020 के बाद पहली बार ऐसा कहने वाले परिवारों का अनुपात 40 फीसदी से कम रहा कि उनकी आय साल भर पहले की तुलना में कम हुई है। इस तरह आय बढऩे का दावा करने वाले परिवारों का अनुपात बढ़ा है जबकि आय कम होने का उल्लेख करने वाले परिवार घटे हैं।
हालांकि आमदनी में आए इस सुधार का असर टिकाऊ उपभोक्ता सामान खरीदने की परिवारों की मंशा पर उतना नहीं पड़ा। यह तथ्य इस लिहाज से निराशाजनक है कि देश भर में त्योहारों का मौसम शुरू हो रहा है। सितंबर में सिर्फ 4.3 फीसदी परिवारों ने ही कहा था कि यह वक्तटिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद खरीदने के लिए बेहतर है। वहीं 51 फीसदी परिवारों की राय में यह समय खरीदारी के लिहाज से सितंबर 2020 की तुलना में बुरा है।
साल भर पहले सितंबर 2020 में सिर्फ 5 फीसदी परिवारों ने कहा था कि उनकी आय एक साल पहले की तुलना में बढ़ी है। लेकिन सितंबर 2021 में यह अनुपात बढ़कर 8 फीसदी हो गया। हालांकि सितंबर 2020 में टिकाऊ उपभोक्ता सामान खरीदने के लिए माकूल समय मानने वाले परिवार जहां 5.7 फीसदी थे वहीं सितंबर 2021 में ऐसा सोचने वाले परिवार महज 4.3 फीसदी ही थे। इसका मतलब है कि आय बढऩे का असर इस साल विवेकाधीन खरीदारी में नहीं नजर आ रहा है।
शायद यह इसका संकेत है कि आय में वृद्धि परिवारों के लिए खर्च करने की एक जरूरत हो सकती है लेकिन एक समुचित परिस्थिति नहीं। एक साल पहले की तुलना में विवेकाधीन उत्पादों पर खर्च बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने वाली आय वृद्धि की सीमा अब बढ़ गई है। सितंबर तक परिवारों की आय में वृद्धि की परिघटना का प्रसार टिकाऊ उत्पादों की खरीद का इरादा बढ़ा पाने तक नहीं हो पाया था। सितंबर तक भविष्य को लेकर कोई उत्साह भी नहीं दिखाई दिया।
लेकिन इन दोनों परिप्रेक्ष्य में तस्वीर 10 अक्टूबर को खत्म हफ्ते में सुधरी नजर आई। इस हफ्ते में उपभोक्ता प्रत्याशा सूचकांक 10.4 फीसदी तक उछल गया जो कि असाधारण है। अगस्त 2020 के बाद से ऐतिहासिक औसत 0.5 और माध्य 1 है। इस असाधारण बढ़त में बड़ा योगदान यह अपेक्षा मजबूत होने का है कि अर्थव्यवस्था का समग्र प्रदर्शन आने वाले एक साल और अगले पांच वर्षों में बेहतर रहेगा। हालांकि इस उम्मीद का परिवारों की आय बढऩे के रूप में अभी असर उतना नहीं दिख रहा है। टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद की मंशा में भी हल्का सुधार ही हुआ है।
हमें हालात सुधरते हुए दिख रहे हैं। आमदनी बढऩे की बात करने वाले परिवारों की संख्या बढ़ी है। इसके साथ ही आने वाले समय में अर्थव्यवस्था के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करने वाले परिवारों की संख्या भी बढ़ी है। लेकिन यह बढ़त अधूरी भी रह सकती है। इसकी वजह यह है कि परिवारों की आय बढऩे की उम्मीद एवं उपभोक्ता सामान की खरीद को लेकर उत्साह में सुधार नहीं हुआ है। साफ है कि माहौल में आशावाद होने के बावजूद अभी हिचकिचाहट भी दिख रही है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)

First Published : October 14, 2021 | 11:14 PM IST